दिल्ली की सड़कें.
सड़कों पर JNU के स्टूडेंट्स.
स्टूडेंट्स के कंधों पर फीस का भार.
और उनकी पीठ पर पुलिस की लाठियां.
कई दिनों से JNU खबरों में है. मीडिया के साथ-साथ पूरे देश का ध्यान JNU के प्रोटेस्ट पर है. नतीजा ये निकला कि शिक्षा पर एक बहस खड़ी हो गई है. एक ज़रूरी बहस. लेकिन इस बहस में बहुत बार JNU के सामने IIT को खड़ा कर दिया जाता है. स्टैंडर्ड सा आर्ग्यूमेंट ये कि
JNU के स्टूडेंट्स राजनीति करते हैं. IIT के स्टूडेंट्स पढ़ाई में ध्यान लगाते हैं. कभी देखा है उन्हें कोई प्रोटेस्ट-ब्रोटेस्ट करते?
इस आर्ग्यूमेंट के जवाब में हम आपको IIT गुवाहाटी के प्रोटेस्ट के बारे में बताएंगे. जिस प्रोटेस्ट पर किसी का ध्यान नहीं गया.

17 नवंबर की रात को JNU से 2000 कि.मी. दूर IIT गुवाहाटी में स्टूडेंट्स ने प्रोटेस्ट किया. पहले तय हुआ कि एक साइलेंट मार्च निकाला जाएगा. लेकिन बच्चे साइलेंट रह नहीं पाए. तालियां पीट-पीट कर चिल्लाने लगे ‘जस्टिस फॉर बी के राय‘.
ये बी के राय कौन हैं?
ये स्टूडेंट्स अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं. ये अपने एक प्रोफेसर के लिए लड़ रहे हैं. वो प्रोफेसर जो इनके लिए लड़ता है. IIT में होने वाले करप्शन के खिलाफ लड़ता है. और अब उन्हें इस लड़ाई का ‘इनाम’ मिला है.
बृजेश कुमार राय. यही वो प्रोफेसर हैं, जिनके लिए ‘पढ़ाई करने वाले’ IIT के बच्चे अपने हॉस्टल के कमरों से सड़कों पर उतर आए. क्योंकि उन्हें खबर मिली कि प्रोफेसर बृजेश कुमार राय को IIT से टर्मिनेट किया जाएगा.
बृजेश कुमार राय IIT गुवाहाटी के EEE डिपार्टमेंट(Electronics and Electrical Engineering) में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.
इसके अलावा प्रोफेसर राय की एक पहचान ये है कि वो RTI फाइल करते हैं. इंस्टीट्यूट से खूब सारे सवाल करते हैं. कोर्ट में केस लड़ते हैं. और IIT में होने वाले करप्शन पर खुल कर बोलते हैं.
EEE डिपार्टमेंट के बच्चे बिजली की पढ़ाई करते हैं. और प्रोफेसर राय बिजली पढ़ाने के साथ-साथ लोगों को शॉक देते हैं.

पूरी बात पता करने के लिए हमने प्रोफेसर बृजेश कुमार राय से बात की. और इस बातचीत का निचोड़ हम आपको बता रहे हैं.
इस सज्जन को क्या तकलीफ है?
बीके राय ने IIT बॉम्बे से अपनी Ph.D. की पढ़ाई पूरी की. जून, 2011 में IIT गुवाहाटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर ज्वाइन किया. राय बताते हैं कि 8 साल बीत चुके हैं और वो अब तक असिस्टेंट प्रोफेसर ही हैं. उनके साथ वाले प्रोफेसर उनसे आगे निकल चुके हैं.
उनके मुताबिक उनकी क्वालिफिकेशन और रिसर्च में कोई कमी नहीं है. लेकिन उन्हें प्रमोट किया ही नहीं जाता. इंटरव्यू तक के लिए लिस्ट में उनका नाम नहीं आता. कारण? कारण है उनके सवाल पूछने की आदत. और उनके सीनियर्स को ये कतई पसंद नहीं कि कोई छौना प्रोफेसर सवाल करे.
कई साल तक इन्होंने सीधे सवाल किए. जब इनके सवाल नज़रअंदाज़ किए जाने लगे तो राय ने अपने राइट का इस्तेमाल किया. राइट टू इन्फॉर्मेशन. RTI. 2015 में इन्होंने पहली RTI फाइल की. ये RTI एक फर्ज़ी M.Tech डिग्री के सिलसिले में थी.
एक M.Tech स्टूडेंट बीच में पढ़ाई छोड़कर नौकरी करने चला गया. इसके बावजूद उसके सुपरवाइज़र ने उसका थीसिस डिफेंस तैयार कर दिया. राय ने शिकायत की. कमिटी बैठी. और स्टूडेंट के खिलाफ एक्शन लिया गया. लेकिन सुपरवाइज़र के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया. राय ने कई बार इस सिलसिले में पूछताछ की. जब कोई जवाब नहीं आया तो RTI फाइल कर दी.
ये पहली RTI थी. 2015 से अबतक प्रोफेसर राय 200 से ज़्यादा RTI फाइल कर चुके हैं. और 100 से ज़्यादा RTI फाइल करने में दूसरों की मदद की है.

राय बताते हैं कि जब मैंने ये RTI फाइल की तो लोगों में ये बात फैल गई. इसके बाद एडमिनिस्ट्रेशन के दूसरे लोग इन्हें छुपकर मेल करने लगे. इन मेल्स के ज़रिए इन्हें और बहुत सारी बातों का पता चलने लगा.
एक तरफ इन्हें मेल आते थे. दूसरी तरफ परेशान किया जाने लगा. प्रोफेसर राय का दावा है कि जिन करपशन्स की पोल वो खोल रहे थे, उनके तार IIT के डायरेक्टर तक जुड़े हुए हैं.
सस्पेंशन, हाईकोर्ट और वापसी
प्रोफेसर राय के खिलाफ पहले भी डिसिप्लिनरी एक्शन लिया जा चुका है. उनके मुताबिक, उन्हें परेशान करने के लिए उनके खिलाफ कई केसेस को इकट्ठा किया जाता है. और शो-कॉस नोटिस यानी कारण बताओ नोटिस भेज दिया जाता है. उन्हें कई बार ऐसे शो-कॉस नोटिस आ चुके हैं.
ये पहली बार नहीं है जब राय को हटाया जा रहा है. इससे पहले दिसंबर, 2017 में भी उन्हें सस्पेंड किया जा चुका है. इन्होंने अपने ऊपर लगे चार्जेस के बारे में बताते हुए कहा –
इन्हें औरों से ज़्यादा कोर्स अलॉकेट किए जा रहे थे. इन्होंने कोर्स अलॉकेशन पॉलिसी के बारे में पूछा तो कोई जवाब नहीं मिला. कई मेल किए. किसी मेल का जवाब नहीं आया. विरोध में इन्होंने ट्यूटोरियल क्लास लेना बंद कर दिया.
एक और चार्ज इनकी एक फैकल्टी से हुई झड़प को लेकर था. जिसे राय बताते हैं कि एक मामूली सी बहस हुई थी. और शिकायत दर्ज हुई कि इन्होंने झड़प की है.
ऐसे और कई चार्जेस लगाकर पहले राय को शो-कॉस नोटिस दिया गया. फिर सस्पेंड कर दिया. इस सस्पेंशन के खिलाफ राय ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में केस लड़ा. और कोर्ट ने राय के पक्ष में फैसला सुनाया. अक्टूबर, 2018 में इन्हें इंस्टीट्यूट में वापस लिया गया.

प्रोफेसर राय कहते हैं कि उनके शो-कॉस नोटिस में कई ऊल-जुलूल चार्जेस होते हैं.
एक चार्ज तो प्रोजेक्ट के टाइटल के कारण लगा है. फाइनल ईयर इंजीनियरिंग के प्रोजेक्ट का टाइटल. राय ने एक प्रोजेक्ट फ्लोट किया था जिसका टाइटल था ‘IT Solutions to solve corruption in IITs’. इसे इंस्टीट्यूट की इमेज खराब करने ज़रिया बताकर इन्हें शो-कॉस नोटिस थमा दिया गया.
उन्हें कई बार दूसरों के हवाले से रिज़ाइन करने को भी कहा जाता है. राय कहते हैं कि ये स्टैंडर्ड तरीका है. पहले चार्जेस लगाए जाते हैं. फिर शो-कॉस नोटिस आता है. और रिज़ाइन करने का दबाव बनाया जाता है. कुछ प्रोफेसर इस टैक्टिक से कॉलेज छोड़कर जा भी चुके हैं.
अब क्यों निकाला जा रहा है?
इस बार उनके ऊपर जो चार्जेस लगे हैं उसमे सबसे बड़ा कीवर्ड है ISRO. पूरा मामला प्रोफेसर राय ने हमे बताया –
IIT गुवाहाटी में ISRO का एक प्रोजेक्ट होना था. एडवर्टाइज़मेंट डाला गया. क्राइटीरिया के मुताबिक एक जन को सिलेक्ट किया गया. जिसे सिलेक्ट किया गया उसने काम छोड़ दिया. 9 महीने बाद फिर से एडवर्टाइज़मेंट आया. लेकिन इस बार सिलेक्शन क्राइटिरिया में क्वालिफिकेशन का लेवल घटा लिया गया.
राय ने सवाल खड़े करना शुरू किया. पहले डीन ऑफ रिसर्च एंड डेवेलपमेंट को मेल किया. फिर डायरेक्टर को मेल किया. कोई जवाब नहीं मिला तो राय ने ISRO को मेल करके इस बारे में जानकारी दी. ISRO ने बृजेश कुमार राय का मेल IIT गुवाहाटी के डायरेक्टर को आगे भेज दिया.

अब प्रोफेसर राय के ऊपर चार्ज ये है कि उन्होंने प्रोजेक्ट की जानकारी को मीडिया या पब्लिक डोमेन में रिलीज़ किया है. जो कि फैकल्टी नॉर्म्स के मुताबिक अलाउड नहीं है. राय का कहना है कि उन्होंने मीडिया को नहीं ISRO को ये बात बताई है. ये ISRO का ही प्रोजेक्ट है. इसलिए ये मीडिया वाल चार्ज ही गलत लगाया गया है.
प्रोटेस्ट कब शुरू हुआ?
प्रोफेसर राय को ISRO वाले मैटर समेत कई और चार्जेस लगाकर शो-कॉस नोटिस दिया गया था. उन्हें ये नोटिस 1 नवंबर को दिया गया था. इस नोटिस के मुताबिक बृजेश राय सर्विस के लिए फिट नहीं हैं. और उन्हें आगे की सर्विस के लिए डिस्कवालिफाई किया जाना चाहिए. 14 नवंबर को उन्हें BOG यानी Board of Governers के सामने अपनी सफाई रखने को कहा गया था.

अभी उनका ऑफिशियल टर्मिनेशन लेटर नहीं आया है. लेकिन BOG की इस मीटिंग के बाद प्रोफेसर राय को उनके एक अंदरूनी आदमी ने बताया कि बोर्ड ने उन्हें टर्मिनेट करने का फैसला लिया है. राय ने कहा कि इससे पहले वो मेरी ई-मेल सर्विस बंद करते, मैंने इंस्टीट्यूट में सबको मेल करके ये जानकारी दी.
उनका कहना है कि वो अकेले ही इस लड़ाई को लड़ते आए हैं. बहुत कम लोग उनके साथ आए. प्रोफेसर्स ने पीछे से ही सपोर्ट किया. कोई खुलकर सामने नहीं आया. इस भावुक से मेल को पढ़कर 17 नवंबर को स्टूडेंट्स प्रोटेस्ट पर उतर आए. उनकी तख्तियों पर लिखा था ‘जस्टिस फॉर बीके राय’.

प्रोफेसर राय ने कहा कि अब उनका इस इंस्टीट्यूट में रुकना तो मुश्किल ही है लेकिन वो न्याय और हक के लिए कोर्ट में केस ज़रूर लड़ेंगे.
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