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भारत सरकार ने स्वीकार किया, IIM के प्रमुख अयोग्य हैं, फिर भी नौकरी दे दी गई

अंडरग्रैजुएट कोर्स में सेकंड डिविज़न पाकर बने थे प्रमुख, अब हो रही जांच!

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आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा. (फोटो साभार: वेबसाइट)
17 मार्च 2022 (Updated: 17 मार्च 2022, 07:25 IST)
Updated: 17 मार्च 2022 07:25 IST
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भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), रोहतक के प्रमुख धीरज शर्मा को गलत तरीके से नियुक्त किया गया था और इस पद पर काबिज होने के लिए उनके पास पर्याप्त योग्यता नहीं थी. भारत सरकार ने कई बार इनकार करने के बाद पहली बार इस सच को स्वीकार किया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा मंत्रालय ने बीते सोमवार, 14 मार्च को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक हलफमाना दायर किया. इसमें कहा गया कि अंडरग्रेजुएट कोर्स में सेकंड डिविजन पाने के बावजूद धीरज शर्मा को आईआईएम-रोहतक का निदेशक बना दिया गया था. आईआईएम में निदेशक के पद पर नियुक्त होने के लिए बैचलर्स या अंडरग्रैजूएट में फर्स्ट क्लास की डिग्री होनी चाहिए. सरकार ने शर्मा द्वारा पांच साल कार्यकाल पूरा किए जाने के बाद इस सच को स्वीकार किया है. आलम ये है कि उन्हें दूसरे कार्यकाल के लिए भी नियुक्त किया गया है. पूरा मामला क्या है? धीरज शर्मा की इस नियुक्ति में अनियमितताएं हैं, ये मामला सितंबर 2021 में ही उठा था. आरोप लगे थे कि धीरज शर्मा ने नियुक्ति के लिए अपनी अंडरग्रेजुएट की डिग्री पेश नहीं की थी. जबकि मंत्रालय ने इसे लेकर उन्हें तीन बार पत्र लिखा था. और चलते-चलते ये पूरा विवाद 2022 तक चला आया है, जब धीरज शर्मा को दूसरे कार्यकाल के लिए भी नियुक्त किया गया है. 31 जनवरी 2018 को लागू किए गए नए आईआईएम एक्ट के तहत संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) ने 28 फरवरी 2022 को इसकी मंजूरी दी थी. इस कानून के तहत देश के सभी 20 बिजनेस स्कूल्स को निदेशक, चेयरपर्सन्स और बोर्ड मेंबर को नियुक्त करने की शक्तियां दी गई हैं. इससे पहले आईआईएम निदेशकों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी करती थी. कैबिनेट ने ही 10 फरवरी 2017  को शर्मा को आईआईएम-रोहतक का निदेशक बनाया था, जिसे अब सरकार ने माना है कि वह गलत था. खास बात ये है कि भारत सरकार ने पहले खुद कोर्ट में ये दावा किया था कि धीरज शर्मा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका सही नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए. उन्होंने पिछले साल फरवरी महीने में दायर किए अपने पहले हलफनामे में कहा था कि शर्मा की नियुक्ति तय प्रक्रिया के तहत की गई है और इसे सही करार दिया जाना चाहिए. धीरज शर्मा का पत्र! धीरज शर्मा ने इस साल नौ फरवरी को अपना कार्यकाल पूरा होने पर शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा था कि वे एक हलफनामा भेजेंगे, जिसमें उनकी शिक्षा का पूरा विवरण होगा. शर्मा ने दावा किया था कि उन्होंने साल 1997 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बैचलर्स की डिग्री, साल 1999 में बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री, साल 2006 में लुसियाना टेक यूनिवर्सिटी से डॉक्टर्स की डिग्री प्राप्त की है. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने ये दस्तावेज नहीं भेजे और मंत्रालय को 17 फरवरी को आईआईएम-रोहतक से उनकी डिग्री प्राप्त हुई थी. मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा,
'डॉ. धीरज शर्मा को बैचलर्स की डिग्री में सेकंड डिविजन प्राप्त हुआ है, जो कि आईआईएम रोहतक के निदेशक पद पर काबिज होने के लिए जरूरी योग्यता के अनुरूप नहीं है.'
हलफनामे में यह भी कहा गया है कि मंत्रालय अब जांच कर रहा है कि किस तरह शर्मा को नियुक्त किया था और इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं. इस मामले में याचिका दायर करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता अमिताव चौधरी ने कहा है,
'सच सामने आ गया है, मैं खुश हूं. हालांकि ये काफी चिंताजनक है कि सरकार ने इतने लंबे समय बाद ये स्वीकार किया है कि धीरज शर्मा इस पद के लिए योग्य नहीं थे. यह स्पष्ट है कि जानबूझकर इस सच को छिपाया गया.'

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