बच्चों के यौन शोषण और बलात्कार की घटनाओं की खबरों में और घटनाओं में कमी नहीं है. केंद्र सरकार सोच रही है इनमें कमी लाने का. शायद इसलिए इन घटनाओं से जुड़े क़ानून में बदलाव किये जाने की योजना है. अब ऐसे मामलों में अपराधियों को फांसी देने की तैयारी है.
कल प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो यानी PIB – वो वेबसाइट/संस्था जो सरकार से जुडी खबरों और फैसलों की जानकारी देती है – ने इस संशोधन के बारे में जानकारी दी.
बुधवार यानी 10 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की मीटिंग हुई. इस मीटिंग में पॉक्सो (POCSO) एक्ट – जिसका पूरा नाम Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) है – में बच्चों-नाबालिगों के साथ बलात्कार या यौन शोषण के मामलों और कठिन सजा लाने पर सहमति बनी. सजा की अवधि तो बढ़ाई ही गयी है, इन मामलों में फांसी की सजा भी अब दी जाएगी.
बच्चों से जुड़े पोर्न यानी Child Pornography पर रोक लगाने के लिए फाइन लगाने और जेल भेजने का भी संशोधन इस कानून में किया जाएगा.
सरकार ने यह भी बताया है कि इससे क्या फायदा होगा? कहना है कि इससे सरकार बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा में कमी लाने में सफल हो सकती है, क्योंकि कड़े कानूनों से अपराधियों के हौसले पस्त होंगे. सरकार का यह भी कहना है कि कानून में इस संशोधन से यौन अपराध और उसमें मिलने वाली सजा के बारे में स्थिति थोड़ी साफ़ होगी.
इसके पहले भी देश में होने आले यौन अपराधों में मौत की सजा देने की मांग उठती रही है. अदालतों ने भी इन मामलों में अक्सर फांसी की सज़ा सुनाई है, लेकिन अक्सर वह सज़ा “रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर” केसों में ही दी जाती है.
साल 2012 में पॉक्सो एक्ट प्रकाश में आया था. वजह साफ़ थी. बच्चों को यौन शोषणों और बलात्कार की घटनाओं से बचाना. ताकि देश के बच्चे सुरक्षित रह सकें. इस कानून की ख़ासियत है कि इसे सिर्फ बच्चों तक सीमित रखा गया है, लेकिन बच्चों के सेक्स यानी लिंग तक सीमित नहीं किया गया है. यानी यौन अपराध किसी लड़के के साथ हो रहे हैं, या लड़की के साथ, या किसी थर्ड जेंडर के बच्चे के साथ, सज़ा सभी के साथ अपराध करने वालों को बराबर होगी.
इस कानून का यह भी ध्येय था कि 18 साल से कम आयु का हर नागरिक अच्छे मानसिक और शारीरिक स्थिति में रह सके. लेकिन घटनाएं थीं कि किसी स्थिति में रुकने का नाम नहीं ले रही थी, इसलिए हमेशा से इस कानून को और कठोर करने की बहसें होती रही थीं.
इसके पहले 28 दिसंबर 2018 को भी प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में मीटिंग हुई थी, जिसमें POCSO एक्ट में भी इन्हीं बदलावों पर कैबिनेट की सहमति बनी थी. बिल संसद में गया लेकिन संसद आम चुनाव के पहले मई 2019 में भंग हो गयी, जिससे इस बिल को सहमति नहीं मिल सकी. अब हो सकता है ये कि ये बिल फिर से लोकसभा और राज्यसभा में जाएगा, जहां से पास होने के बाद इसके क़ानून में तब्दील होने का रास्ता साफ़ हो जाएगा.
लल्लनटॉप वीडियो : झारखंड: तबरेज की लींचिंग के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन हुई जमकर हिंसा