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क्रैश हुए हेलिकॉप्टर का ब्लैक बॉक्स मिला, जानिए इसमें कौन-कौन से राज़ छिपे होते हैं

ब्लैक बॉक्स आकाश और पाताल में भी नष्ट नहीं होता

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ब्लैक बॉक्स की तलाशी में एक किलोमीटर के दायरे में छानबीन हो रही थी. (फोटो साभार आज तक)
9 दिसंबर 2021 (Updated: 9 दिसंबर 2021, 09:39 IST)
Updated: 9 दिसंबर 2021 09:39 IST
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तमिलनाडु के कुन्नूर में हादसे का शिकार हुए हेलिकॉप्टर ( Mi-17VH helicopter) का ब्लैक-बॉक्स बरामद हो गया है. हर हवाई दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा तलाशे जाने वाले इस बक्से का असली नाम फ्लाइट रिकॉर्डर है. इसमें पायलट और एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (ATC) के बीच बातचीत से लेकर हादसे से ऐन पहले का अहम डेटा दर्ज होता है. इस डेटा की मदद से दुर्घटना के असली कारणों का पता लगाया जा सकता है. बुधवार 8 दिसंबर को कुन्नूर में हादसे में भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका और 11 अन्य सैन्यकर्मियों का निधन हो गया था. एक किलोमीटर के दायरे में चला तलाशी अभियान हादसे की जांच कर रही सैन्य टीमों ने हेलिकॉप्टर के मलबे और उपकरणों की खोज के लिए एक किलोमीटर के दायरे में सघन तलाशी अभियान चलाया था. इसी दौरान हेलिकॉप्टर का ब्लैक-बॉक्स मिला. इसका मिलना इस मायने में अहम है कि किसी भी दुर्घटना के कारणों का पता लगाने में इसका डेटा सबसे प्रमाणिक माना जाता है. हालांकि, बुधवार को हुई दुर्घटना को लेकर ज्यादातर एक्सपर्ट्स का आकलन है कि यह पहाड़ी इलाके में खराब मौसम और कम विजिबिलिटी की वजह से हुई होगी. बहुत कम लोग ही तकनीकी चूक पर भरोसा कर रहे हैं. लेकिन अभी तक आधिकारिक रूप से कोई नतीजा सामने नहीं आया है. जनरल रावत की सैन्य और रणनीतिक हैसियत के मद्देनजर किसी साजिश से भी साफ इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में कारणों पर सरकार और सैन्य प्रशासन की ओर से फूंक-फूंककर बयान दिए जा रहे हैं. क्या होता है ब्लैक-बॉक्स? इसके नाम के साथ ब्लैक भले ही लगा हो, लेकिन यह बक्सा आम तौर पर नारंगी रंग का होता है. यह स्टील और टाइटेनियम से बनी एक रिकॉर्डिंग डिवाइस है. इसमें कई तरह के सिग्नल, बातचीत और तकनीकी डेटा रिकॉर्ड होते रहते हैं. इसमें दो तरह के रिकॉर्डर होते हैं. फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR). पहला रिकॉर्डर विमान या हेलिकॉप्टर की ऊंचाई, हवा की स्पीड और ईंधन का स्तर जैसी कई चीजों को हर सेकेंड रिकॉर्ड करता है. इसकी रिकॉर्डिंग स्टोरेज क्षमता 24 घंटे से ज्यादा होती है. दूसरा रिकॉर्डर यानी सीवीआर कॉकपिट में होने वाली बातचीत और अन्य आवाजें  भी रिकॉर्ड करता है. ब्लैक-बॉक्स नष्ट क्यों नहीं होता? इसका ऊपरी खोल मोटे स्टील, टाइटेनियम और हाई टेंपरेचर इंसुलेशन से बना होता है. यह इतना मजबूत होता है कि बड़ी से बड़ी टक्कर में भी यह जमीन, आसमान या समंदर की गहराइयों तक में सुरक्षित बचा रह रह सकता है. यह सैकड़ों डिग्री तापमान झेल सकता है. खारे पानी में भी वर्षों बिना गले-सड़े कायम रह सकता है. बॉक्स के भीतर के उपकरण समुद्र की सैकड़ों फीट गहराई से भी सिग्ननल भेज सकते हैं. यह पानी में एक महीने तक सिग्नल भेज सकता है. यानी दुर्घटना के एक महीने तक की अवधि में इसे आसानी से ढूंढ निकाला जा सकता है. यह बीकन बैटरी से चलता है, जो पांच साल तक डिस्चार्ज नहीं होती. ब्लैक बॉक्स से आगे क्या? दुनिया भर के फ्लाइट टेक्निशियंस ब्लैक-बॉक्स का विकल्प ढूंढने में लगे हैं. कोशिश यह भी है कि ब्लैक बॉक्स की जगह सभी रिकॉर्डिंग रियल टाइम में सीधे ग्राउंड स्टेशन पर होती रहे. एयर-टू-ग्राउंड सिस्टम की मदद से समय रहते दुर्घटना भी टाली जा सकती है. ब्लैक बॉक्स से निकलने वाले डेटा के विश्लेषण में हफ्ते दो हफ्ते लग जाते हैं, जबकि रियल टाइम रिकॉर्डिंग में यह काम जल्द से जल्द हो सकता है. हालांकि, दुनिया भर की वायुसेनाएं और एविएशन कंपनियां ऐसा करने से कतरा रही हैं, क्योंकि एयर-टू-ग्राउंड सिग्नल भी फूल-प्रूफ नहीं होता. अगर ऐन मौके पर सिग्नल में कोई दिक्कत आ जाती है, तो बड़ा डेटा गंवाने का खतरा बना रहेगा.

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