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बुद्ध की प्रतिमाएं तोड़ने वाला तालिबान अब उनकी मूर्तियां बचाने में क्यों लगा है?

क्यों तालिबान का इन मूर्तियों से अचानक प्रेम जाग गया?

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अफगानिस्तान में बुद्ध की प्रतिमाओं के अवशेष. (फोटो: एपी)
28 मार्च 2022 (Updated: 28 मार्च 2022, 16:41 IST)
Updated: 28 मार्च 2022 16:41 IST
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अफगानिस्तान में एक समय बुद्ध की कई प्रतिमाएं ध्वस्त करने वाला तालिबान अब उनकी मूर्तियों का संरक्षण कर रहा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि तालिबान को इसमें कमाई का स्रोत नजर आ रहा है. दरअसल, अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से करीब 40 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में चट्टानों को काटकर कई दशक पहले महात्मा बुद्ध की प्रतिमाएं बनाई गई थीं. अब तालिबान के लड़ाके इन प्रतिमाओं की चौतरफा सुरक्षा कर रहे हैं. इन मूर्तियों के सैकड़ों मीटर नीचे विश्व का सबसे बड़ा तांबे का भंडार है. बताया जाता है कि तालिबान इस उम्मीद में बैठा है कि वह इस तांबे को बेंचकर बड़ी रकम जुटाएगा और अपने देश को आर्थिक संकट से उबारेगा. कौन खरीदेगा ये तांबा? न्यूज़ एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान के तालिबानी शासक इस उम्मीद में बैठे हैं कि तांबे के इतने बड़े भंडार को चीन खरीदेगा. मालूम हो कि अफगानिस्तान पर हथियारों की दम पर कब्जा करने के चलते कई देशों ने तालिबान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगा रखा है, इस वजह से उनका व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है. करीब दो दशक पहले जब इस्लामिक कट्टरपंथी तालिबान सत्ता में आया था, तो उसने बामियांन इलाके में स्थित बुद्ध की कई प्रतिमाओं को विस्फोटक लगाकर ध्वस्त कर दिया था. तालिबान ने कहा था कि वे मूर्ति पूजा के विरोधी हैं और इसलिए इन मूर्तियों को खत्म किया जाना चाहिए. लेकिन, अब तालिबान के नेता मेस अयनाक (Mes Aynak) तांबे की खान के पास बौद्ध मठों के अवशेषों को संरक्षित करने में लगे हैं. तालिबान के सुरक्षा प्रमुख हाकुमुल्लाह मुबारिज ने कहा कि ऐसा करने से उन्हें अरबों रुपये का चीनी निवेश प्राप्त होगा. मुबारिज ने कहा,
'हम इन्हें बचा रहे हैं, क्योंकि इन्हें बचाना हमारे और चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.'
अफगानिस्तान में खनिज का बहुत बड़ा भंडार है, लेकिन लगातार युद्ध और हिंसा के चलते इनका खनन नहीं किया जा सका. एपी की रिपोर्ट के मुताबिक इन खनिजों की कीमत करीब एक ट्रिलियन डॉलर (76 लाख 11 हजार करोड़ रुपये या 761.06 खरब रुपये) है, जो कि इस देश को एक मजबूत आर्थिक स्थिति प्रदान कर सकता है. इस समय ईरान, रूस और तुर्की जैसे कई देश अफगानिस्तान में निवेश करने की कोशिश में हैं. हालांकि, चीन इस रेस में सबसे आगे है. मेस अयनाक क्षेत्र पूरी तरह से तालिबान के नियंत्रण में है. तालिबान ने काबुल की सत्ता पर काबिज होने के कुछ ही महीने बाद इस संबंध ने चीन के साथ बातचीत शुरु की थी. अफगानिस्तान के खनन और पेट्रोलियम मंत्रालय में निदेशक ज़ियाद रशीदी ने चीनी कंपनियों - एमसीसी, चाइना मेटालर्जिकल ग्रुप कॉरपोरेशन और जियांग्शी कॉपर लिमिटेड - द्वारा बनाए गए एक कंसोर्टियम से संपर्क किया था. इस कंसोर्टियम और अफगान मंत्रालय के बीच पिछले छह महीनों में दो बैठकें हुई हैं, जिसमें खनन का काम फिर से शुरु करने की बात की गई है. यदि चीन के साथ अफगान सरकार का करार हो जाता है, तो वह इस क्षेत्र में प्रोजेक्ट लगाने वाला पहला देश बन जाएगा. तमाम अध्ययनों से पता चला है कि इस क्षेत्र में करीब 1.2 करोड़ टन खनिज पदार्थ हैं. हामिद करजई सरकार ने की थी शुरुआत साल 2008 में अफगानिस्तान की हामिद करजई सरकार ने चीनी कंपनी एमसीसी के साथ 30 साल का एक करार किया था, जिसको मेस अयनाक से उच्च स्तर का तांबा निकालने का काम दिया गया था. हालांकि इस करार को पूरी तरह जमीन पर नहीं उतारा जा सका. शुरु में ही चीन को लॉजिस्टिकल और कॉन्ट्रैक्ट संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2014 में सभी चीनी स्टाफ को उस जगह को छोड़ना पड़ा, क्योंकि तब वहां हिंसा शुरू हो गई थी. फ्रेंच वैज्ञानिकों ने खनिजों का पता लगाया था करीब दो हजार साल पहले मेस अयनाक में बौद्ध शहर बसाया गया था. लेकिन इस समय उसके सिर्फ कुछ अवशेष बचे हुए हैं, जो करोड़ों रुपये के खनिज सेमेटे हुए है. 1960 के दशक में पहली बार फ्रेंच भूवैज्ञानिकों ने इन खनिजों का पता लगाया था. इस क्षेत्र को सिल्क रूट का एक महत्वपूर्ण स्टॉप माना जाता है, जो कई शताब्दी पहले व्यापार का एक महत्वपूर्ण रास्ता हुआ करता था. 1970 के दशक के आखिर में सोवियत हमले के बाद रूस ने तांबे के भंडार का पता लगाने के लिए मेस अयनाक में कई सुरंगे खोदी थीं. इन्हें बाद में आतंकी संगठन अल-कायदा ने अपने ठिकानों के रूप में इस्तेमाल किया. इनमें से कई ठिकानों पर साल 2001 में अमेरिका ने बमबारी की थी. इसके बाद साल 2004 में यहां कई पुरातत्वविद आए, तो उन्हें अपनी जांच में यहां चार बौद्ध मठ, प्राचीन तांबे की वर्कशॉप और एक किले का पता चला था. इससे यह स्पष्ट हुआ कि यहां एक प्रमुख बौद्ध शहर था, जो पश्चिम से आने वाले व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था.

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