‘एक चुम्मा तू मुझको उधार दई दे…चाहे बदले में यूपी बिहार लई ले.’ साल था 1996. एक हिंदी फ़िल्म आई. नाम था छोटे सरकार. इसी फ़िल्म का गाना था ‘एक चुम्मा तू मुझको उधार दई दे…’ हीरो बने थे गोविंदा, और हिरोइन थीं शिल्पा शेट्टी.

1997 में पाकुड़, जो अब झारखंड में है, सीजेएम की कोर्ट में गोविंदा और शिल्पा के ख़िलाफ़ दर्ज हुआ था केस. कहा ये गया कि ये गाना अश्लील होने के साथ ही बिहार-यूपी की अवमानना करता है. अवमानना बोले तो बेइज्ज़ती.

# हुआ क्या था?
केस किया था मोहिनी मोहन तिवारी ने. सीजेएम ने सख्त संज्ञान लेते हुए गोविंदा और शिल्पा को सेक्शन 294 (अश्लीलता) और सेक्शन 500 (अवमानना) के तहत नोटिस जारी किया. लेकिन नोटिस ठीक पतों पर तामील नहीं हो सकी. मतलब वो नोटिस कोर्ट से चला तो, लेकिन रास्ता भटक गया. अब जब हीरो हिरोइन को नोटिस मिला ही नहीं तो वो कोर्ट में क्यों ही आते?
कोर्ट ने बाद में जारी किया नॉन बेलेबल वारंट. यानि वो वारंट जिसमें ज़मानत ही नहीं होगी. ये वाला नोटिस ठीक पते पर पहुंचा. हीरो हिरोइन के तोते उड़े, तो 2001 में दोनों पहुंचे हाई कोर्ट. वहां गोविंदा और शिल्पा शेट्टी ने कोर्ट से कार्रवाई रोकने की रिक्वेस्ट की.
कोर्ट का नोटिस पहुंचने में चार साल लगे और फैसला आने में लग गए 23 साल. ये बात जांचने में कि इस गाने में कुछ आड़ा तिरछा है कि नहीं, कोर्ट को 23 साल लग गए.
# क्रिएटिव तो हिंदी फ़िल्में शुरुआत से रही हैं
गोविंदा वाली ‘छोटे सरकार’ फ़िल्म का एक सीन है. ठीक गाने से पहले. नायक अर्थात गोविंदा, नायिका अर्थात शिल्पा शेट्टी के साथ छेड़ छाड़ कर रहा है. नायिका लेती है शॉर्ट कट. पूछती है डाइरेक्ट कि ‘क्या चाहिए’
अब क्रिएटीविटी देखिए भाई सा’ब. ऐसे ही थोड़े कहते हैं ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’.
नायक उससे भी तगड़ा शॉर्ट कट लेते हुए कहता है ‘चुम्मा’. और फिर नायक अर्थात गोविंदा ये भी कहता है कि एक चुम्मा ही तो मांग रहा हूं और वो भी उधार. उधार का मतलब समझती हो? आज दोगी तो कल वापस कर दूंगा.
मल्लब क्रिएटीविटी सरपट दौड़ रही है लिखने वाले की.
आगे नायिका कहती है ‘ये सब उधार वाले काम में मैं यकीन नहीं करती, जो करती हूं नगद करती हूं’.
इसी सीन के बाद चट्ट से गाना आता है ‘एक चुम्मा तू मुझको उधार दई दे… चाहे बदले में यूपी बिहार लई ले’

# लेकिन बॉलिवुड ने ये उधार कैसे चुकाया
96 में आई इस फ़िल्म का ये वाला गाना एक तरह का ‘आर्टिस्टिक लोन’ था. माने ‘कलात्मक उधार’. और इस उधार को चुकाया हिंदी फ़िल्मों ने आगे आने वाले बरसों में. और ऐसा चुकाया कि जनता ने पिच्चर हॉल में ‘भाग भाग डी के बोस डी के बोस डी के बोस’ भी सुना. गाने के नाम पर.
बॉलिवुड ने खुल के गाया कि ‘लैला तेरी ले लेगी’. और कवियों की कल्पना यहीं नहीं थमी. नाचने वालों के लिए ये भी लिखा गया कि ‘नाचो सारे जी फाड़ के’…जी फाड़ के. ये कौन सा ‘जी’ है जिसे नाचने के लिए फाड़ना ज़रूरी है, ये तो कवि ही जाने.
‘कुंडी मत खड़काओ राजा’ सुनकर कोई सयाना खटमल चुनरी में घुसकर ‘रिंग रिंग रिंगा’ करने लगा. भीगे होंठ देखकर प्यासा दिल गाने लगा ‘मैं हूं विमेनाइज़र, मुझसे अकेले में मत मिल’
# मिला और भी किसी को कुछ है
राहत. मुश्किल से मिलती है. गोविंदा और शिल्पा शेट्टी को मिल गई है. याचिका दर्ज होने के 23 साल बाद आख़िरकार गोविंदा और शिल्पा को इस मामले में राहत मिली. जस्टिस अमिताभ गुप्ता ने गोविंदा और शिल्पा के हक़ में फैसला सुनाया. जस्टिस गुप्ता ने फैसले में कहा कि फिल्म स्टारों पर आम नियम लागू नहीं होता क्योंकि फिल्म को सेंसर बोर्ड ने सिनेमोटोग्राफी एक्ट, 1952 के तहत पास किया था.
जस्टिस गुप्ता ने निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया है. 23 साल बाद ही सही कोर्ट ने चुम्मे से केस हटा दिया है. अब चुम्मा चुम्मा दे दे चुम्मा.
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