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Meme का जन्म सोशल मीडिया से नहीं साइंस से हुआ, DNA वाले 'जीन' से है गहरा नाता

meme का मतलब सिर्फ चुटकुलों तक सीमित नहीं है. इस शब्द को ब्रिटिश साइंटिस्ट Richard Dawkins ने दिया था. जो 'The Selfish Gene' और 'The God Delusion' जैसी किताबों के लिए जाने जाते हैं.

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the selfish gene meme
meme का gene से भी नाता है! (सांकेतिक तस्वीर)
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राजविक्रम
7 मई 2024 (Updated: 7 मई 2024, 03:07 PM IST)
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मीम (meme) के शिल्पियों के नायाब नमूने तो हम सब रोज ही देखते हैं. नेता नगरी से लेकर प्रेम वार्ता तक, लगभग हर जगह मीम ने अपना वर्चस्व बना लिया है. आलम ये है कि पहले लोग वर्तमान, भविष्य या भूत में जीते थे. आज मीम युग में जीते नजर आते हैं. कोई भी काम करते हुए, उसके मीम परिणाम का ख्याल मन में रहता है. मसलन कहीं घूमने निकले हैं, तो यादें बनाने से पहले मीम बनाए जाते हैं. लेकिन ये मीम शब्द आया है, ब्रिटिश जीव वैज्ञानिक रिचर्ड डॉकिंस (Richard Dawkins) की किताब ‘द सेल्फिश जीन’ (The Selfish Gene) से और इसका बॉयोलॉजी वाले जीन (gene) से भी नाता है!

साल था 1976, देश में आपातकाल लगा हुआ था. प्रेस की सेंसरशिप की बातें हो रही थीं. जिसके विरोध में अखबारों में खाली पन्ने निकाले जा रहे थे. इसी साल ब्रिटेन में एक किताब छपी, नाम था ‘द सेल्फिश जीन.’ जीन (gene) मतलब कह सकते हैं DNA का कामकाजी हिस्सा. इसके बारे में आगे बात करेंगे.

वापस किताब पर आते हैं. करीब पांच दशक पहले आई इस किताब के, 11 अध्याय में एक जाना पहचाना नाम मिलता है, ‘मीम’. M E M E- ‘मीम’. परंपरागत तौर पर M E M E ‘मेमे’ होना चाहिए. लेकिन रिचर्ड इसका उच्चारण ‘gene’ यानी जीन जैसा बताते हैं. खैर मीम का इस्तेमाल तो आपने किया ही होगा. लेकिन क्या इसके असल मायनों से आप वाकिफ हैं?

मीम से पहले जीन जानते हैं

Gene को हम DNA की बुनियादी इकाई मान सकते हैं. मतलब DNA अगर मकान है, तो जीन उसकी ईंट हैं. अब इस जीन का काम क्या होता है. अगर सरल शब्दों में समझें तो कह सकते हैं कि ये एक तरह की खाने की रेसिपी है, रेसिपी जिनमें खाना बनाने के कायदे लिखे रहते हैं. ऐसे ही जीन में प्रोटीन वगैरह बनाने की जानकारी होती है. हालांकि सभी जीन प्रोटीन नहीं बनाते, वो अलग मामला है.

बहरहाल जीन का एक और काम होता है, वो है वंशानुगत जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाना. जानकारी जैसे मां की आंखें नीली हैं, तो बच्चे की नीली होंगी या नहीं. कमोवेश ये सब जानकारी भी जीन के जरिए, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाती है. जानकारी, जो माता-पिता से बच्चों तक पहुंचती हैं. ये जानकारी भेजना संभव हो पाता है. क्योंकि जीन अपनी नकल बना सकते हैं. किसी फोटो कॉपी की तरह. 

टेक्निकल भाषा में इसे इमिटेशन (imitation) कहते हैं. अब रिचर्ड डॉकिंस का कहना है कि जीवों में जब ये जानकारी जनन के जरिए पहुंचती है. तब ‘जीन’ को इसका जरिया माना जा सकता है. लेकिन हम इंसानों में कुछ जानकारी समाज के जरिए भी पहुंचती है. इस जानकारी को साझा करने वाली इकाई को क्या नाम दिया जाए? तभी पिक्चर में आया मीम.

मीम का आगाज 

डॉकिंस लिखते हैं कि इंसानों के बारे में एक सबसे असामान्य चीज जो है, कल्चर (संस्कृति). कल्चर की परिभाषा में नहीं पड़ते हैं. सरलता से समझें तो, ऐसे कुछ कायदे जिन्हें कुछ लोग मानते हैं. समाज का जिन पर यकीन है. भले एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बुनियादी जानकारी जीन्स के जरिए जाती हैं. लेकिन क्रिकेट पर बात करने, सचिन की डबल सेंचुरी पर बात करने वगैरह की जानकारी जीन्स के जरिए नहीं जाती है. भले ही पिता जी को क्रिकेट के सारे आंकड़े रटे हों, बच्चे को पैदा होते ही नहीं पता होंगे.

आनुवांशिक (genetic) जानकारी जिस इकाई से ट्रांसफर होती है, उसका नाम तो हम जानते हैं. रिचर्ड के सामने समस्या ये थी कि कल्चरल जानकारी जिस बुनियादी इकाई से ट्रांसफर की जाती है, उसका नाम क्या रखा जाए. तब ख्याल आया ग्रीक शब्द 'Mimeme'. जिसका मतलब कह सकते हैं, नकलची, कॉपी कैट. 

लेकिन रिचर्ड को ये शब्द थोड़ा छोटा करना था. जीन जैसा कुछ, तो उन्होंने सुझाया कि ‘mimeme’ को क्यों न ‘meme’ बना दिया जाए. वो कहते हैं, मेमोरी या याद से भी इसे जोड़ा जा सकता है. मलतब जो चीज जानकारी याद रखे. लेकिन रिचर्ड ने जो उदाहरण इसके लिए दिए, उनमें आज के चुटकुलों वाले मीम शामिल नहीं थे. रिचर्ड ने धुन, आइडिया, तकिया कलाम, फैशन, बर्तन बनाने की कला इन सब चीजों की जानकारी को मीम के जरिए ट्रांसफर होने वाला बताया. मीम, जो एक दिमाग से दूसरे दिमाग तक जानकारी का ट्रांसफर करते हैं.

इस बारे में रिचर्ड के साथ काम करने वाले एन. के. हम्फ्री बताते हैं. कि मीम को एक सजीव संरचना मानना चाहिए. ना कि सिर्फ किसी बात का रूपक. वो कहते हैं कि

जब मेरे दिमाग तक कोई मीम पहुंचता है, तब वो किसी परजीवी की तरह होता है. जो मेरे दिमाग का इस्तेमाल करके खुद को बढ़ाता है. और मैं उसे किसी और से कहने-सुनने के लिए मजबूर हो जाता हूं. जैसे कोई वायरस हो.

अब किसी मीम के उदाहरण से इसे सरलता से समझें, तो जैसे किसी फिल्म के डायलॉग की तस्वीर के ऊपर, कोई बात लिखकर उसका मीम बनाया गया. और फिर वो मीम बार-बार ट्रांसमिट किया गया, दोहराया गया. कॉपी किया गया. किसी जीन की तरह. इससे थोड़ा बहुत रिचर्ड डॉकिंस के मीम की तरह समझा जा सकता है. आज के मीम भी कल्चर के कुछ आइडिया फैलाने में मदद कर सकते हैं. लेकिन रिचर्ड ने मीम का जो आइडिया दिया था, उसमें सिर्फ सोशल मीडिया में शेयर होने वाले मीम नहीं हैं. उनके मायने थोड़ा गहरे हैं.

वीडियो: सोशल लिस्ट: एस्ट्राज़ेनेका ने कोविशील्ड का साइड इफ़ेक्ट स्वीकारा, बनने लगे मीम्स

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