The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Tarikh Maratha Empire Crisis when Conspiracy hatched to Murder Peshwa Narayan Rao by his own Uncle

कैसे 18 साल के पेशवा की हत्या का षड्यंत्र रचा गया था?

पेशवा नारायण राव की शनिवार वाड़ा में घुसकर हत्या कर दी गई थी

Advertisement
Img The Lallantop
मराठा साम्राज्य के नए-नए पेशवा बने नारायण राव की सुमेर सिंह गर्दी ने हत्या कर दी थी. इस षड्यंत्र में उनके अपने ही चाचा का हाथ था (तस्वीर: Wikimedia Commons)
pic
कमल
2 मार्च 2022 (Updated: 2 मार्च 2022, 10:03 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

साल 1773. अगस्त महीने की 30 तारीख. मराठा साम्राज्य को नया पेशवा मिले सिर्फ 10 महीने हुए थे. और नए पेशवा की उम्र भी मात्र 18 साल थी. रोज़ की तरह उस दिन भी पेशवा तड़के सुबह उठे और 108 सीढ़िया चढ़कर ऊंची पहाड़ी पर बने पार्वती मंदिर में पूजा करने पहुंचे. मंदिर से लौटते हुए उनके मामा ‘सरदार रास्ते’ का घर पड़ता था. सो पेशवा नारायण राव वहां रुके और जागीर और तनख्वाह आदि का हिसाब-किताब करने लगे. इसी बीच पेशवा को भूख लग आई. तो उन्होंने मामा से ये कहते हुए विदा ली कि अब दोपहर के भोजन के बाद बाकी मसले हल करेंगे. इसके बाद पेशवा नारायण राव शनिवारवाड़ा चले गए. वहां दिन का भोजन किया और फिर थोड़ी देर आराम करने वास्ते लेट गए.

शनिवारवाड़ा में उस रोज कुछ और ही खेल चल रहा था. नींद में डूबे पेशवा को अपने शयन कक्ष के बाहर कुछ शोर सुनाई दिया. उन्होंने सेवक को बुलाकर कारण पूछा तो पता चला सुमेर सिंह गर्दी अपने कुछ लोगों के साथ शनिवारवाड़ा में घुस गया है. ये जानकर नारायण राव पार्वती बाई के पास पहुंचे. पार्वती बाई ने नारायण राव से छिप जाने को कहा. तब नारायण राव देवघर की ओर भागे. वहां उनके चाचा रघुनाथ राव पूजा कर रहे थे. नारायण राव ने उनसे आसारा मांगा. बोले, 'जान बचा लो चाचा'.

नारायण राव को नहीं पता था कि ये सब रघुनाथ राव के इशारे पर ही हो रहा था. इससे पहले की पेशवा को ये समझ आता, तभी वहां सुमेर सिंह गर्दी आ पहुंचा. और उसने नारायण राव की हत्या कर दी. मराठा साम्राज्य में इससे पहले भी षड्यंत्र रचे गए थे. पेशवाओं की हत्या हुई थी. लेकिन मराठा साम्राज्य के क़ेंद्र शनिवारवाड़ा में हुई ये हत्या किसी अपने ने ही करवाई थी. यहां से घटनाक्रम ने वो मोड़ लिया कि बात मराठा साम्राज्य के ख़ात्मे पर जाकर रुकी.


पानीपत के बाद

पानीपत की लड़ाई में मराठों की हार हुई. इस हार से पेशवा बालाजी राव को इतना गहरा धक्का पहुंचा कि वो अवसाद में चले गए. इसी हालत में 23 जून, 1761 को उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद मराठा साम्राज्य की बागडोर उनके बेटे माधव राव ने संभाली. माधव राव की उम्र तब सिर्फ 16 साल थी. इसलिए बालाजी राव के भाई रघुनाथ राव को उनका संरक्षक बनाया गया.


Antitled Design
पानीपत की लड़ाई के बाद पेशवा बालाजी बाजी राव अवसाद में चले गए और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई (तस्वीर: wikimedia Commons)

शुरुआत में तो सब कुछ सही रहा लेकिन फिर चाचा भतीजे में अनबन शुरू हो गई. रघुनाथ राव एक अच्छे सेनापति थे. लेकिन खुद को पेशवाई का असली हक़दार मानते थे. धीरे-धीरे माधव राव ने अपनी कोशिशों से मराठा साम्राज्य को दुबारा पहले वाली प्रतिष्ठा पर पहुंचा दिया. लेकिन फिर रघुनाथ राव और पेशवा के बीच युद्ध नीति को मतभेद उपज गए. रघुनाथ राव ने पेशवा की इच्छा के विपरीत काम करना शुरू कर दिया. पेशवा ने रघुनाथ राव से शांति साधने की कोशिश की लेकिन येन- केन प्रकरेण रघुनाथ राव पेशवा को गद्दी से हटाने की कोशिश करते रहे.

अंत में पेशवा माधव राव और रघुनाथ राव के बीच एक युद्ध किया. जिसमें रघुनाथ राव की हार हुई. 10 जून 1768 के रोज रघुनाथ राव को कैद कर लिया गया. रघुनाथ राव रिश्ते में पेशवा के चाचा लगते थे. इसलिए कोई कड़ी सजा ना देते हुए उन्हें शनिवार वाड़ा में नजर बंद करवा दिया गया. इसके बाद पेशवा माधव राव ने मराठा सरदारों को एक किया और एक बार फिर से दिल्ली को मराठा साम्राज्य के अधीन कर लिया. अपने कार्यकाल में पेशवा माधव राव अति लोकप्रिय हुए.

1770 में पेशवा को क्षय रोग ने पकड़ लिया और वो बिस्तर से लग गए. अपनी मृत्यु निकट देख पेशवा माधव राव ने रघुनाथ राव से रिश्ते सुधारने की सोची और उनको रिहा कर दिया. इसके बाद उन्होंने पूरे परिवार के सामने रघुनाथ राव को शपथ दिलवाई कि वो परिवार की रक्षा करेंगे और पेशवा के छोटे भाई नारायण राव का साथ देंगे. इसके ठीक दो साल बाद पेशवा माधव राव की मृत्यु हो गई. और उनके छोटे भाई नारायणराव को पेशवा की गद्दी पर बिठाया गया.


पेशवा की हत्या का षड्यंत्र

इधर नारायण राव पेशवा बने, उधर रघुनाथ राव ने दुबारा अपनी चालें चलना शुरू कर दीं. मजबूरी में पेशवा नारायण राव ने रघुनाथ राव को दुबारा शनिवार वाड़ा में हाउस अरेस्ट करवा दिया. इससे रघुनाथ राव इतने खफा हुए कि किसी भी कीमत पर नारायण राव से बदल लेने को तैयार हो गए.मौक़ा देखकर रघुनाथ राव ने सुमेर सिंह गर्दी से हाथ मिलाया. गर्दी पेशवा के गार्ड समूह का लीडर हुआ करता था. रघुनाथ राव ने उसे 10 लाख रुपए और तीन किलों की सूबेदारी देने का वादा किया.


Antitled Design (3)
पेशवा नारायण राव (तस्वीर: Wikimedia Commons)

यहां से कहानी में एक फ़ोर्क आता है. एक ज़िक्र ये आता है कि रघुनाथ राव ने ही नारायण राव को मरवाया था. लेकिन एक दूसरा कथानक भी है. जिसके अनुसार रघुनाथ राव न जब सुमेर सिंह गर्दी से हाथ मिलाया तो एक पन्ने पर उसके लिए एक संदेश भिजवाया. जिस पर बाकी डिटेल्स के साथ अंत में लिखा था, ‘ह्याला धरावा’ यानी ‘पकड़ लो’. ये पन्ना रघुनाथ राव ने अपनी पत्नी आनंदी बाई को दिया.

इस लेजेंड के अनुसार आनंदी बाई अपने पति को पेशवा ना बनाए जाने से और भी ख़फ़ा थी. वो किसी भी तरह रघुनाथ राव को पेशवा बनते देखना चाहती थी. उन्हें लगा कि जब तक पेशवाई का वारिस जिंदा है तब तक उनके पति को पेशवाई नहीं मिल सकती. आनंदीबाई ने रघुनाथ राव के दिए पन्ने को बदलकर उसमें ‘ह्याला मरावा’ यानी 'मार दो' लिखवा दिया.

यही संदेश गर्दी के पास पहुंचा. और वो खेल ख़त्म करने के इरादे से शनिवार वाड़ा पहुंचा. वहां नारायण राव जान बचाने के लिए रघुनाथ राव के पास पहुंचे. और उनसे मदद मांगी. लेकिन रघुनाथ राव वहीं खड़े रहे. उनके हिसाब से गर्दी सिर्फ़ पेशवा को गिरफ़्तार करने वाला था.

रघुनाथ राव ने सोचा कि नारायण राव बेवजह नाटक कर रहे हैं. तभी सुमेर गर्दी पीछा करते हुए वहां पहुंचा और उसने पेशवा नारायण राव की गर्दन पर कटार रख दी. अब रघुनाथ राव को समझ में आया कि मामला सीरियस है. उन्होंने सुमेर से रुकने को कहा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सुमेर के लिए हत्या या हमला दोनों एक ही बात थी. दोनों केस में उसे मृत्युदंड ही मिलना था. इसलिए उसने रघुनाथ राव की एक ना सुनी और 18 साल के पेशवा की हत्या कर डाली.


कंपनी बहादुर की ज़ोर आज़माइश

जैसे ही ये बात बाहर आई, पूरे मराठा साम्राज्य में शोक और सन्नाटे की लहर दौड़ गई. रघुनाथ राव ने तुरंत पेशवाई पर दावा ठोका. लेकिन मराठा सरदारों ने उनका साथ देने से इनकार कर दिया. कुछ लोगों की मदद से रघुनाथ राव ने खुद को पेशवा तो घोषित कर दिया. लेकिन तब तक नाना फड़नवीस ने 12 लोगों को मिलाकर बारभाई संसद का गठन कर लिया था. ये संसद रघुनाथ राव को उनके किए की सजा देने के लिए बनाई गई थी. उन्होंने रघुनाथ राव के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हुए उनसे युद्ध किया. युद्ध में रघुनाथ राव की हार हुई और वो सूरत की ओर निकल गए.


Antitled Design (4)
नाना फड़नवीस और पेशवा रघुनाथ राव (तस्वीर: Wikimedia Commons)


रघुनाथ राव के गद्दी खाली करने बाद पूना में एक और बड़ा सवाल खड़ा हुआ. वो ये कि अब पेशवा का वारिस कौन बनेगा. नारायण राव की पत्नी गंगाबाई तब गर्भवती थी. अप्रैल 1774 में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया. जिसका नाम माधव राव द्वितीय रखा गया. और नाना फड़नवीस ने उसे पेशवा की गद्दी पर बिठाकर राजकाज का काम खुद संभाल लिया. मराठा साम्राज्य पर संकट आया तो उनके दुश्मनों को इसमें अपने लिए मौक़ा दिखा. बम्बई ब्रिटिश काउंसिल तब बम्बई के पोर्ट का इस्तेमाल ब्रिटिश EIC (ईस्ट इंडिया कंपनी) के व्यापार के लिए कर रही थी. मराठाओं की फ़्रेंच EIC से नज़दीकी देखते हुए, वो भी मौक़े की तलाश में थे. उन्होंने मोहरा बनाया रघुनाथ राव को. रघुनाथ राव खुद भी किसी साझेदार की तलाश में थे. ताकि पेशवाई दुबारा हासिल कर सकें.
उन्होंने ब्रिटिश EIC से मदद मांगी. जिसके बाद आज ही के दिन यानी 2 मार्च, 1775 के रोज़ रघुनाथ राव सूरत पहुंचे. अगले चार दिन दोनों तरफ़ से कोशिशें हुई कि संधि में ज़्यादा फ़ायदा उन्हें मिले. ब्रिटिश के आसपास बड़ी जागीर हासिल करने की फ़िराक में थे. अंत में रघुनाथ राव बम्बई के पास साल्सेट द्वीप और वसाई की जागीर अंग्रेजों को देने को राज़ी हो गए. और बदले में तय हुआ कि ब्रिटिश EIC रघुनाथ राव को पेशवा बनने में मदद करेगी. इस संधि को सूरत की संधि के नाम से जाना जाता है. मराठा और ब्रिटिश EIC के बीच संधि संधि की शर्तें मानने के बाद रघुनाथ राव ने ब्रिटिश ट्रूप्स से पुणे पर मार्च करने को कहा. 15 मार्च, 1775 को कर्नल कीटिंग के नेतृत्व में ब्रिटिश ट्रूप्स सूरत से पूना की ओर रवाना हुए. लेकिन सिर्फ़ 3 दिन बाद यानी 18 मार्च को हरिपंत फड़के ने उन्हें बीच में ही रोक लिया. इस जंग में ब्रिटिश ट्रूप्स की ज़बरदस्त हार हुई और उन्हें वापस लौटना पड़ा. कलकत्ता में मौजूद ब्रिटिश काउंसिल को इस हार की खबर लगी तो गवर्नर जनरल वॉरन हेस्टिंग बहुत नाराज़ हुए. उन्होंने बम्बई काउंसिल को हड़काते हुए निर्देश दिया कि पूना पर हाथ डालना अभी जोखिम भरा है. इसके बाद कलकत्ता काउंसिल ने सूरत की संधि को रद्द कर दिया. रघुनाथ राव को लगा कि अब ना ख़ुदा मिलेगा ना विसाल-ए-सनम.
Antitled Design (2)
वॉरन हेस्टिंग और रघुनाथ राव (तस्वीर: Wikimedia Commons)


उन्होंने ब्रिटिश EIC से दुबारा मदद मांगने की कोशिश की. लेकिन काउंसिल ने उन्हें सिर्फ़ कुछ पेंशन का आश्वासन देकर वापस लौट जाने को कहा. पुणे में बारभाई संसद ने रघुनाथ राव के आने की अच्छी तैयारी कर रखी थी. रघुनाथ राव को उनकी गैर मौजूदगी में ही फांसी की सजा सुना दी गई थी. इसे देखते हुए रघुनाथ राव ने सूरत से बाहर जाने से इनकार कर दिया. अगले साल यानी 1776 में रघुनाथ राव ने पुर्तगालियों से संधि की कोशिश की. लेकिन वहां से भी कोई मदद नहीं मिली. अगले कुछ साल ब्रिटिश EIC की पेंशन में जीते हुए साल 1783 में रघुनाथ राव की मृत्यु हो गई.
उधर सूरत की संधि को रद्द करने के बाद कलकत्ता काउंसिल ने कर्नल उपटन को पुणे भेजा. दोनों पक्ष संधि के राज़ी हुए. मार्च 1776 में मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश EIC के बीच पुरंदर की संधि हुई. जिसके तहत तय हुआ कि मराठा फ़्रेंच EIC से डील नहीं करेंगे और बदले में ब्रिटिश सवाई माधव राव को नए पेशवा के रूप में एक्सेप्ट करेंगे. एक साल बाद ही पुरंदर की संधि भी टूट गई. नाना फड़नवीस ने फ़्रेंच EIC को व्यापार की इजाज़त दी. और इसी के साथ प्रथम ऐंग्लो-मराठा वॉर की शुरुआत हो गई.

Advertisement