साइंसकारी: ऐसे काम करता है लाई डिटेक्टर टेस्ट, ये तरीके इस्तेमाल होते हैं
क्या लाई डिटेक्टर टेस्ट से हर बार सच का पता लग जाता है?
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वेब सीरीज होमलैंड में पॉलीग्राफ टेस्ट का एक सीन. (फोटो- Cliqueclack)
कहना गलत-गलत तो छुपाना सही-सही
पॉलीग्राफ के नाम और काम करने के तरीके से शुरुआत करते हैं. पॉली का मतलब होता है अनेक (एक से ज़्यादा). पॉलीग्राफ में अनेक सिग्नल दर्ज किए जाते हैं. ये एक डिवाइस है, जो शरीर में आने वाले कई बदलावों को रिकॉर्ड करता है. किसी भी पॉलीग्राफ टेस्ट में बेसिकली तीन-चार सिग्नल्स को देखा जाता है. 1. हार्ट रेट/ब्लड प्रेशर2. रेस्पिरेशन (सांस लेने और छोड़ने वाली प्रक्रिया)3. पर्सपिरेशन (पसीना आना) इस टेस्ट के पीछे धारणा ये है कि अगर कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है, तो उसमें ये शारीरिक बदलाव देखने को मिलेंगे. ये टेस्ट डायरेक्टली झूठ को नहीं पकड़ता. झूठ बोलने से पैदा होने वाले डर, घबराहट या नर्वसनेस को पकड़ता है.

प्रोसेस समझिए
ऐसा नहीं होता है कि कमरे में घुसते से ही संदिग्ध के इर्द-गिर्द पट्टे और वायर से लपेटकर मशीन चालू कर देते हैं. ये प्रोसेस बहुत आराम से टाइम लेकर की जाती है. पॉलीग्राफ अटैच करने से पहले एक प्री-टेस्ट होता है. इसमें एग्ज़ामिनर आराम से उस व्यक्ति को पूरी टेक्निक समझाते हैं और पहले ही उसको टेस्ट के सारे सवाल बता देते हैं. ये चौंकाने वाली बात है कि टेस्ट होने से पहले ही सारे सवाल बता दिए जाते हैं. फिर टेस्ट का मतलब ही क्या निकला? ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि कोई सरप्राइज़ एलिमेंट न रहे. क्या है अचानक से कोई सवाल पूछने पर सामने वाला घबरा सकता है और इससे पॉलीग्राफ की रीडिंग गड़बड़ा सकती है. तो एलिमेंट ऑफ सरप्राइज़ पॉलीग्राफ की रीडिंग पर प्रभाव न डाले, इसलिए सवाल पहले से ही बता दिए जाते हैं. आमतौर पर एग्ज़ामिनर टेस्ट से पहले पॉलीग्राफ मशीन का एक डेमो भी देते हैं. जिसमें ये दिखाया जाता है कि पॉलीग्राफ मशीन कितने अच्छे से झूठ पकड़ लेती है और टेस्ट ले रहे व्यक्ति को समझाया जाता है कि झूठ बोलोगे तो पकड़े जाओगे. इन औपचारिकताओं के साथ प्रीटेस्ट इंटरव्यू खत्म होता है और मेन प्रोसेस शुरु होती है. अब अलग-अलग सेंसर्स को व्यक्ति के शरीर से जोड़ा जाता है. और सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू होता है. इस टेस्ट में सिर्फ ऑब्जेक्टिव क्वेस्चन ही पूछे जाते हैं. ऐसे सवाल जिनका जवाब सिर्फ हां या ना में दिया जा सकता है. पॉलीग्राफ टेस्ट में सिर्फ क्राइम या घटना से जुड़े सवाल नहीं होते. इनमें कुछ इधर-उधर के सवाल भी पूछे जाते हैं. ये दरअसल एक टेक्नीक होती है. पॉलीग्राफ टेस्ट में कई टेक्नीक यूज़ होती हैं. सबसे कॉमन टेक्नीक का नाम है - कंट्रोल क्वेस्चन टेस्ट(CQT). कंट्रोल उदय, कंट्रोल!
चोर की दाढ़ी में तिनका
ज़्यादातर पॉलीग्राफ टेस्ट में कंट्रोल क्वेस्चन टेस्ट यूज़ होता है. लेकिन इसके अलावा एक और टेक्निक है. जिसका नाम है गिल्टी नॉलेज टेस्ट (GKT). जापान जैसे देश पॉलीग्राफ टेस्ट में इस टेक्नीक का इस्तेमाल करते हैं. इस टेस्ट में ऐसे क्वेस्चन पूछे जाते हैं, जिनमें टेस्ट से जुड़ी बारीक जानकारी शामिल होती है. ऐसे सवाल सुनने पर सिर्फ उसी व्यक्ति के अंदर प्रतिक्रिया होगी, जिसे वो डीटेल्स पता हैं. जैसे कि किसी चोर से पूछा जाए, क्या चोरी हुई रकम 50,000 थी, या 47,000? या किसी हत्यारे से पूछा जाए, क्या मर्डर के लिए 7 mm बुलेट यूज़ हुई थी या 9 mm? अगर उस व्यक्ति को केस से जुड़े ये फैक्ट नहीं पता हैं, तो कोई पॉलीग्राफ में कोई खास रिस्पॉन्स देखने को नहीं मिलेगा. लेकिन अगर उसे ये ‘गिल्टी नॉलेज’ है, तो पॉलीग्राफ का रिस्पॉन्स ये बता देगा. गिल्टी नॉलेज टेस्ट को ज़्यादा जगहों पर यूज़ नहीं किया जाता क्योंकि इसमें एक दिक्कत है. ये तभी काम आ सकती है, जब सवाल पूछने वाले को भी वो स्पेसिफिक चीज़ें पता हों, जो दोषी जानता है. और इस टेस्ट से वो आदमी भी बचकर निकल सकता है, जिसने क्राइम को अंजाम तो दिया है, लेकिन उसे क्राइम के बारे में इतनी डीटेल नहीं मालूम हों.पॉलीग्राफ का पर्दाफाश
जब से पॉलीग्राफ का आविष्कार हुआ है, तब से ये कॉन्ट्रोवर्सी का केंद्र रहे हैं. कॉन्ट्रोवर्सी इसी बात पर है कि इसे लाई डिटेक्टर यानी झूठ पकड़ने वाली मशीन कैसे कहा जा सकता है? पॉलीग्राफ टेस्ट में मुख्यत: डर, घबराहट और नर्वसनेस के लक्षण पकड़े जाते हैं. कई बार सच बोलने वाला व्यक्ति भी घबरा सकता है और झूठा व्यक्ति कूल रहकर सफेद झूठ बोल सकता है. इसलिए इसे झूठ पकड़ने वाली मशीन कहना कितना सही है, इस पर मत बंटे हुए हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि प्रॉपर ट्रेनिंग के साथ इस टेस्ट को मात दी जा सकती है. कई ऐसी किताबें और वेबसाइट्स हैं, जो बताती हैं कि इस टेस्ट को कैसे बीट किया जा सकता है. मार्केट में कई तरह के ऐसे सेडेटिव्स और एंटीपर्सपिरेंट्स आते हैं, जो पॉलीग्राफ को चकमा देने में मददगार बताए जाते हैं. इसके अलावा कई ट्रिक्स भी हैं, जिनके ज़रिए अपने शरीर के रिस्पॉन्स को बदला जा सकता है. और पॉलीग्राफ को कन्फ्यूज़ किया जा सकता है. उदाहरण के लिए जूते में कील फंसाने वाली ट्रिक को देखिए. कुछ लोग टेस्ट के दौरान जूते में कील फंसाकर ले जाते हैं. जब उनसे सवाल पूछे जाते हैं, तो वो अपना पैर उस कील पर दबा देते हैं. इससे उनके शरीर में बदलाव होते हैं और पॉलीग्राफ की रीडिंग डगमगा जाती है. इसी तरह अपनी जीभ या होठ काटकर पॉलीग्राफ को बेवकूफ बनाने वाली ट्रिक्स भी बताई जाती हैं.
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