गल्फ में लाखों भारतीय मजदूरों को 'गुलाम' बनाने वाला कफाला सिस्टम क्या है? जिसे सऊदी ने खत्म कर दिया
सऊदी अरब ने अपने देश में कफाला सिस्टम को खत्म करने का ऐलान किया है. यह ऐसी व्यवस्था थी, जिसके जरिए विदेशी कामगारों की सऊदी अरब में एंट्री होती थी.
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दो दिन पहले की बात है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के रहने वाले अंकित का सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ. इस वीडियो में अंकित बता रहे हैं कि वो सऊदी अरब में फंस गए हैं. उनके ‘कफील’ ने उनका पासपोर्ट छीन लिया है. जिस वीजा पर वो सऊदी गए थे, उन्हें वह काम नहीं दिया गया बल्कि उनसे ऊंट चरवाया जा रहा है. उन्होंने अपनी जान को खतरा बताते हुए भारत सरकार से स्वदेश वापसी की गुहार लगाई है.
अंकित का ये वीडियो इस खबर के साथ-साथ सामने आई है कि सऊदी अरब ने अपने यहां रोजगार के कफाला सिस्टम को खत्म कर दिया है. ये वही सिस्टम है, जिसकी वजह से अंकित जैसे लोग खाड़ी देशों में अपने एंप्लॉयर के चंगुल में फंस जाते हैं. कमाई तो क्या ही होती है. इसकी जगह पर उन्हें अपनी जान बचाने की फिक्र सताने लगती है.
अंकित का मामला अकेला नहीं है. 9 नवंबर 2024 की अमर उजाला की एक रिपोर्ट में अमेठी के जियाद्दीन का किस्सा छपा है. उनके पिता ने सोशल मीडिया पर वीडियो के जरिए तकरीबन बिलखते हुए गुहार लगाई थी कि उनके बेटे को बचा लिया जाए. वह सऊदी अरब में एक कफील के जाल में फंस गया है. वो न उसे खाना दे रहे हैं और न ही दो महीने से वेतन ही दिया है.
खाड़ी देशों खासतौर पर सऊदी में नौकरी देने वाले समूहों के प्रवासियों का शोषण करने की कहानियां नई नहीं हैं. दशकों से ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं.
15 जुलाई 2022 की न्यूज-18 की खबर के मुताबिक, भदोही के रहने वाले राकेश को एग्रीमेंट खत्म होने के बाद भी कंपनी घर नहीं लौटने दे रही थी. वो वहां प्लंबर का काम करते थे लेकिन कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें सही पगार नहीं मिली. जिस कंपनी के लिए वह काम कर रहे थे, उसने उनके सारे डॉक्युमेंट्स अपने पास जब्त कर लिए थे. जब वह अधिकारियों से मिलने जाते तो उन्हें समय नहीं दिया जाता था. उनके तकरीबन साढ़े 3 लाख रुपये भी कंपनी ने दबा लिए. भारतीय विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद राकेश वापस तो आ गए लेकिन सऊदी में जो उनके साथ हुआ, वह उनके लिए जिंदगी भर का एक ट्रॉमा बन गया.
गरीब और असहाय लोगों के शोषण के इस अंतहीन सिलसिले के समाप्त होने की आहट बीते दिनों सऊदी से मिली, जब वहां की सरकार ने 7 दशकों से खाड़ी देशों में चले आ रहे कफाला सिस्टम को खत्म करने का ऐलान कर दिया. इस ‘ऐतिहासिक’ ऐलान से दुनिया भर के तकरीबन 1.3 करोड़ उन कामगारों की जिंदगी बदल जाएगी, जो सऊदी अरब में काम करते हैं.
हालांकि, खाड़ी के ही अन्य देश UAE, कुवैत, ओमान, बहरीन, लेबनान और जॉर्डन में ये सिस्टम अभी जारी रहेगा.
क्या है कफाला सिस्टम?ऐसे में सवाल है कि कफाला सिस्टम क्या है? खाड़ी देशों में कहां-कहां और कबसे लागू था? क्यों इसे दुनिया भर में ‘गुलामी का प्रतीक’ माना जा रहा था. आज हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करने वाले हैं. दुनिया के लोग इस कानून पर क्या सोचते हैं? अरब देशों के अलावा क्या कहीं और भी रोजगार के ऐसे नियम चलते हैं कि प्रवासियों के वीजा-पासपोर्ट रख लो और उन्हें अपने हिसाब से अपनी तय की सैलरी और वक्त पर काम कराओ? सब जानेंगे लेकिन पहले तो ये जानते हैं कि कफाला सिस्टम क्या होता है?
ऊपर की कहानियों में आपने एक शब्द ‘कफील’ पर ध्यान दिया होगा, जो बार-बार आया है. इसके बारे में जान लेंगे तो कफाला सिस्टम की आधी बात समझ लेंगे.
कफील का शाब्दिक अर्थ होता है जमानतदार. यानी गारंटी देने वाला. यानी ऐसा व्यक्ति जो संरक्षण देता है. परिवार के केस में पूरे परिवार का भरण-पोषण करने वाला ‘कफील’ कहलाता है. यह अरबी शब्द है और कुरआन में अल्लाह के लिए इसका जिक्र ‘अल-कफील’ के तौर पर है, जिसका मतलब है- जिम्मेदार या गारंटी देने वाला या भरोसेमंद व्यक्ति. ‘कफ़ील’ (Kafeel) शब्द की जड़ अरबी में है. यह ‘काफ–फा–लाम’ से बना शब्द है, जिसके तीन मतलब होते हैं,
गारंटी देना. जिम्मेदारी लेना या गवाह बनना.
किसी चीज की जिम्मेदारी उठाना या उसे संभालना.
किसी चीज की देखभाल करने के लिए भरोसा किया जाना.
इसी कफील से कफाला सिस्टम बना है. कफाला यानी प्रायोजक. यानी स्पॉन्सर. यानी वो गारंटर जो आपकी देखभाल के लिए होता है.
तकरीबन 50 साल यानी आधी सदी से ‘कफाला’ शब्द खाड़ी देशों में लाखों विदेशी कामगारों की किस्मत से चिपका हुआ है. यह ऐसा सिस्टम है, जिसके तहत खाड़ी देशों में विदेशी कामगारों की एंट्री होती है. ऐसे कामगार कफील के भरोसे होते हैं, जो ये तय करते हैं कि कामगार अपनी नौकरी बदल सकते हैं या नहीं. देश छोड़ सकते हैं या नहीं. अपने खिलाफ होने वाले शोषण या दुर्व्यवहार के खिलाफ लड़ सकते हैं या नहीं?
खाड़ी देशों में कफीलों के ऐसे ही कानूनी तंत्र को ‘कफाला स्पॉन्सरशिप सिस्टम’ कहते हैं. 'गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल' यानी जीसीसी के देशों- बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अलावा जॉर्डन और लेबनान के लिए साल 1950 के आसपास इस व्यवस्था को इंट्रोड्यूस किया गया था.
सवाल है कि खाड़ी देशों को इस व्यवस्था की जरूरत क्यों पड़ी?
ये 1950 के दशक की बात है. तेल से अमीर बने खाड़ी देशों में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा था. बड़े-बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा था लेकिन इन देशों में ऐसे कामों के लिए मजदूर उतने नहीं थे, जितने की जरूरत थी. इन देशों की आबादी कम थी. ऐसे में तय हुआ कि इन कामों के लिए अस्थायी तौर पर विदेशी मजदूर बुलाए जाएं. ऐसे मजदूरों के साथ सहूलियत थी कि वो जरूरत भर का काम करेंगे और फिर अपने देश लौट जाएंगे.
अधिकांश विदेशी कामगार न तो इन देशों की भाषा जानते थे और न ही यहां की संस्कृति और रीति-रिवाजों से ही परिचित थे. उन्हें इन देशों के कानून का भी ज्ञान नहीं था. ऐसे में जो इनके स्पॉन्सर्स यानी नौकरी देने वाले लोग होते थे, शुरुआत में ये उनकी जिम्मेदारी होती थी कि ऐसे प्रवासी कामगारों की सुरक्षा और अन्य जरूरतों को ध्यान रखें लेकिन बाद में कई बार नियम बदले और स्पॉन्सर और कामगार के बीच रिश्ते ज्यादा असंतुलित होते चले गए. धीरे-धीरे इस कानून ने शोषण का रूप ले लिया और कई ऐसी शिकायतें आने लगीं, जिसमें कामगारों को उनके मालिकों ने तकरीबन ‘बंधक’ बना लिया.
कफाला कानून से होने लगा शोषणकफाला कानून के तहत विदेशी कर्मचारी पूरी तरह से अपने नियोक्या यानी कफील पर निर्भर थे. उनकी कानूनी स्थिति भी कफील से जुड़ी होती थी. कफील उनके देश में रहने के अधिकार, नौकरी बदलने या देश छोड़ने के फैसले पर भी पूरा कंट्रोल रखता था. उसकी मंजूरी के बिना प्रवासी मजदूर न तो अपनी कंपनी बदल सकते थे. न देश छोड़ सकते थे. क्योंकि एग्जिट वीजा कंपनी ही दे सकती थी. इसके अलावा, अगर उनके साथ बुरा बर्ताव होता था तो वह कानूनी मदद भी नहीं ले सकते थे.
खाड़ी देशों ने इस सिस्टम को इसलिए बनाया था ताकि उनके सरकारी दफ्तरों का झंझट कम रहे और मजदूरों की निगरानी (नियमन) प्राइवेट स्पॉन्सर्स के जरिए की जा सके. लेकिन जब ये कानून जमीन पर उतरा तो इसने कंपनी और उसके मजदूरों के बीच ताकत में बड़ा असंतुलन पैदा कर दिया. कफील (employer) मजदूरों का पासपोर्ट जब्त कर सकते थे. उनका वेतन रोक सकते थे. उन्हें देश से निकालने की धमकी दे सकते थे. और मजदूरों के पास इसके विरोध का कोई तरीका नहीं था.
ये मजदूर कौन होते हैं?खाड़ी देशों ने शुरु-शुरू में तो मिस्र और आसपास के अरब देशों से ही मजदूरों को भर्ती करना शुरू किया था. लेकिन बाद में उनका झुकाव गैर-अरब खासकर दक्षिण एशिया के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल जैसे देशों आने वाले सस्ते मजदूरों की ओर हो गया. कारण था. सस्ता श्रम.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब में करीब 1 करोड़ 34 लाख प्रवासी मजदूर रहते हैं, जो आबादी का लगभग 42 फीसदी हैं. इनमें से कई लाख मजदूर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया से आते हैं. जैसे- भारत, बांग्लादेश और फिलिपींस से. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) के हवाले से बताती है कि खाड़ी देशों में लगभग 2.4 करोड़ मज़दूर अभी भी कफाला-सिस्टम के अधीन रहते हैं, जिनमें सबसे बड़ा हिस्सा तकरीबन 75 लाख भारतीय लोगों का है.
खाड़ी देशों में भारतीय9 दिसंबर 2022 को भारतीय विदेश मंत्रालय के दिए आंकड़ों के मुताबिक, खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा सऊदी अरब अमीरात में है. यहां 35 लाख 54 हजार भारतीय काम करते हैं. वहीं, सऊदी अरब में 24 लाख 65 हजार और कुवैत में 9 लाख 24 हजार भारतीय रहते हैं.

खाड़ी देशों के कफाला सिस्टम को दुनिया अच्छी नजरों से नहीं देखती है. तमाम मानवाधिकार संगठनों के अलावा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन इसे आधुनिक गुलामी का प्रतीक मानता है. इस व्यवस्था ने मजदूरों से उनके बुनियादी अधिकार छीन लिए थे. ऐसे में दशकों से इस नियम की आलोचना होती थी. जिन देशों में ये लागू है, वहां इसे हटाने का वैश्विक दबाव रहता ही है. सऊदी ने जून 2025 में अपने देश से कफाला सिस्टम को हटाने का फैसला किया था. बताया गया कि यह सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की एक बड़ी योजना का हिस्सा है.
दरअसल, क्राउन प्रिंस सऊदी अरब की अर्थव्वस्था का विस्तार चाहते हैं. दुनिया भर से विदेशी निवेश खींचना चाहते हैं.साथ ही वह अपने देश की छवि दुनिया में एक आधुनिक राष्ट्र की बनाना चाहते हैं. इस फैसले के पीछे यही वजह बताई जा रही है. इसके अलावा एक अंतरराष्ट्रीय दबाव भी खाड़ी देशों पर है, जिसमें कई ग्लोबल राइट्स ग्रुप, वेस्ट कंट्रीज और मल्टिनेशनल कंपनियों ने कफाला जैसे नियमों की कड़ी आलोचना की है.
कफाला की जगह ‘नया सिस्टम’सऊदी अरब कफाला सिस्टम की जगह एक नया कॉन्ट्रैक्ट-आधारित रोजगार सिस्टम ला रहा है. इसका मकसद कामगारों को ज्यादा आजादी देना है. इसमें कामगारों को नौकरी बदलने की स्वतंत्रता मिलेगी. कामगार बिना अपने कफील की इजाजत के नई नौकरी में जा सकेंगे. उन्हें देश छोड़ने के लिए अपने मालिक की सहमति जरूरी नहीं होगी. इसके अलावा, कामगारों के लिए लेबर कोर्ट और दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराने के तरीके आसान किए जाएंगे.इससे कामगारों का शोषण कम होगा और सऊदी अरब की वैश्विक निवेशकों के बीच प्रतिष्ठा सुधरेगी.
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