जिन शहरों के फ्लाईओवर अधूरे हैं, वहां लड़के SSC फॉर्म में ये करें
फ्लाईओवर का बढ़ना और बनना रिस्की संधिकाल है. कई बार जीवन और शहर बीत जाते हैं. फ्लाईओवर नहीं बनते. रहने वाले मतिभ्रम के शिकार होने लगते हैं.

जिन कस्बों के फ्लाईओवर अधूरे हों, वहां कंडक्टर स्कूल की लड़कियों से बस का किराया नहीं लेते. वो फ्लाईओवर नहीं बढ़ा सकते. सोचते हैं, बेटी बढ़ा रहे हैं.
इंजीनियरिंग मैंने आउटसाइडर की तरह की, Synchronisation से सुंदर शब्द मैंने नहीं पाया. एक शब्द और था, Juncture. जीवन का भी होता है. शहरों का भी होता है. कस्बों का भी. कई बार Signs दिखते हैं. कुछ शहरों का चाउमीन काल आया था. कस्बों में Bank PO काल आया था. उधर शहरों में स्कूटियां बढ़ गईं. कहीं फ्लाईओवर बढ़ने लगे. फ्लाईओवर का बढ़ना और बनना रिस्की संधिकाल है. कई बार जीवन और शहर बीत जाते हैं. फ्लाईओवर नहीं बनते. रहने वाले मतिभ्रम के शिकार होने लगते हैं. FOB को फ्लाईओवर कह पड़ते हैं. फ्लाईओवर या तो बन जाते हैं, या बनते ही रहते हैं. जिन शहरों के फ्लाईओवर अधूरे रहते हैं. उन शहरों में अब भी लड़के साइबर कैफे जाते हैं.
जिन शहरों के फ्लाईओवर अधूरे होते हैं. वहां के लड़कों को SSC का फॉर्म भरना छोड़ देना चाहिए. दुख होता है. जिन शहरों के फ्लाईओवर अधूरे होते हैं. वहां पिता समय पर घर आते हैं. घर पर गेट नहीं, शटर होता है. पिता के आने पर खुलता है. शटर के ऊपर CFL पर छिपकली दौड़ जाती है. एक दिन फ्लाईओवर पूरा होगा. छिपकली शटर में चिपक मरेगी. सूखकर बुहारी जाए तो उस शाम आप बल्ब बदल लेना, LED लगा लेना. LED डायोड होती है, बल्ब नहीं. मैंने इंजीनियरिंग में सीखा था.
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जिन शहरों के फ्लाईओवर अधूरे होते हैं. वहां समय रुका होता है. एक शिक्षित बेरोजगार सैलून होता है. एक दिन उस पर नजर पड़ती है. वो हमेशा से वहीं था. कब खुला मालूम नहीं. दुकान पर एक आदमी काम करता है. वो एक लूप में चलता है. आप उसे देखिएगा तो हमेशा डस्टपैन से बाल उठाते मिलेगा. डस्टबिन में डालते मिलेगा. बिन और पैन का अंतर, मैंने फ्लाईओवर पूरा होने पर जाना. उसकी दुकान में कभी ग्राहक नहीं होता. बस सफाई होती है. उसे अगली बार मत देखिएगा. वो शाम को छपने वाला अखबार पढ़ता दिखेगा.
शाम के अखबार सिर्फ शिक्षित बेरोजगार हेयर कटिंग सैलून वाले पढ़ते हैं. Juncture में आप क्या करते हैं. शायद मैटर करता हो. शहरों का मुझे नहीं पता. मैंने कीपैड फोन खरीदा. एक कज़न को कंधा दिया. गिफ्ट बर्दाश्त न करने की कसम खाई. एक लड़की को भरोसा दिलाया. एक बूढ़े को बददुआ दी. बिना आईडी की सिम खरीदी. थोड़ा स्वार्थी हुआ. ऑनलाइन टिकट का प्रिंट आउट लिया. और एक दोस्त को आखिरी बार बाय कहा. शायद फिल्म भी देखी, सिंह साहब दी ग्रेट. उर्वशी रौतेला को बहुत पहले रुक जाना चाहिए था.
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