देश को हिलाने वाला वो 'सेक्स स्कैंडल', जिसकी खबरें क्वीन विक्टोरिया तक पहुंचती थीं!
Hyderabad तब भारत की सबसे अमीर रियासत हुआ करती थी और महबूब अली खान यहां के निज़ाम हुआ करते थे. ये वो दौर था, जब किसी भारतीय और अंग्रेज़ों की शादी होना बिलकुल आम बात नहीं थी. इस सेक्स स्कैंडल ने पूरा देश हिला दिया था.
एक बार वायसरॉय लॉर्ड वेवल हैदराबाद के दौरे पर जाने वाले थे. द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था. वायसरॉय के दौरे से ठीक पहले दिल्ली में ब्रिटिश अफसरों के पास निज़ाम का एक तार पहुंचा. इसमें लिखा था- दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा हुआ है, बाजार में महंगाई बहुत है. क्या ऐसे समय में भी वायसरॉय शैंपेन पीना चाहेंगे?’ हैदराबाद के निजाम की ऐसी कई कहानियां आपने सुनी होंगी. चाहे फिर वो निज़ाम की अथाह दौलत के किस्से हों या उनकी कंजूसी के.
निज़ामशाही के दौर का एक ऐसा ही एक क़िस्सा बड़ा मशहूर है, जिसने भारत में ही नहीं ब्रिटेन तक भूचाल पैदा कर दिया था. कहानी है एक सेक्स स्कैंडल की. हैदराबाद हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ने एक अंग्रेज़ महिला से शादी की. लेकिन इस बात से ऐसा हंगामा खड़ा हुआ कि बात कोर्ट तक पहुंच गई. शुरू हुआ मुकदमों का दौर, जिनकी पल-पल की ख़बरें क्वीन विक्टोरिया तक पहुंचा करती थीं.
क्या थी कहानी?कहानी की शुरुआत होती है साल 1892 से. कांग्रेस की स्थापना को 7 साल हुए थे. आज़ादी का आंदोलन धीमे-धीमे सुलग रहा था और राजे-रजवाड़ों के क़िस्से अखबार की हेडलाइन हुआ करते थे. 1892 में ऐसे ही किसी अखबार में एक पैम्फ्लेट छपा और धीरे-धीरे पूरे हैदरबाद में चर्चा का विषय बन गया.
पैम्फ्लेट में ऐसा क्या लिखा था?इसमें एक मिसेज़ मेहदी खान नाम की महिला का ज़िक्र था. इन पर तीन आरोप लगाए गए थे. पहला - मिसेज़ खान शादी से पहले सेक्स वर्कर हुआ करती थीं, दूसरा - मिसेज़ खान बिना शादी मिसेज़ खान बन गई थीं और तीसरा- मिसेज़ खान के पति अपना काम निकालने के लिए उन्हें दूसरे मर्दों के पास भेजा करते थे. पैम्फ्लेट में लिखी बातें एक महिला के चरित्र पर सवाल उठा रही थीं और ये महिला कोई आम महिला नहीं थीं. इनका सीधा संबंध राजदरबार से था.
हैदराबाद तब भारत की सबसे अमीर रियासत हुआ करती थी और महबूब अली खान यहां के निज़ाम हुआ करते थे. मिसेज़ मेहदी के पति निज़ाम के दरबार का हिस्सा हुआ करते थे. इनका नाम था- मेहदी हसन खान. न सिर्फ़ इन्हें हैदराबाद के होम सेक्रेटरी का दर्ज़ा मिला हुआ था. साथ ही वे मीर-ए मजलिस-अदालत-ए आलिया भी हुआ करते थे. आसान शब्दों में कहें तो हैदराबाद हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस. चीफ़ जस्टिस की पत्नी पर जब इल्जाम लगे, पूरे हैदरबाद में बातें होने लगीं. इसे सेक्स स्कैंडल बताया जाने लगा. बातें लंदन तक भी पहुंच गईं. क्योंकि मेहदी हसन क्वीन विक्टोरिया के मेहमान भी रह चुके थे.
यूटा यूनिवर्सिटी (University of Utah) में इतिहास के प्रोफ़ेसर बेन्जामिन कोहेन (Benjamin Cohen) ने इस केस पर एक किताब लिखी है. किताब का नाम- Appeal to the Ladies of Hyderabad: Scandal in the Raj. किताब में कोहेन लिखते हैं कि ये केस ब्रिटिश राज के सबसे बड़े स्कैंडल्स में से एक था. इसलिए इस केस की ख़बरें इंटरनेशनल अखबारों तक में छपा करती थीं. जॉन सीमोर (John Seymour) नाम के एक ब्रिटिश सांसद तो निजी तौर पर इसमें रुचि ले रहे थे.
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केस इतना चर्चित क्यों हुआ?मिसेज़ मेहदी हसन का असली नाम दरअसल एलन डोनेली था. वे एक अंग्रेज़ महिला थीं. 1872 में दोनों की मुलाक़ात लखनऊ में हुई और एक ही साल बाद दोनों ने शादी कर ली. मेहदी इन दिनों सर सय्यद अहमद खान की शागिर्दी में थे. एक बार जब हैदराबाद के प्राइम मिनिस्टर, सलार जंग सर सय्यद से मिलने आए. उन्होंने उनके सामने मेहदी की खूब तारीफ की. सलार जंग ने फैसला किया कि वो मेहदी को अपने साथ हैदरबाद ले जाएंगे. यहां से एलन और मेहदी दोनों हैदराबाद पहुंच गए. जहां मेहदी को शाही दरबार में नौकरी मिल गई. सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए मेहदी ने तालुकदार का ओहदा हासिल किया और फिर जज की कुर्सी तक पहुंच गया.
नवाब महबूब अली खान उसके काम से इतने खुश थे कि उन्होंने मेहदी को अपना होम सेक्रेटरी बना लिया. एलन और मेहदी की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई. वे संभ्रात वर्ग का हिस्सा बन गए और अमीर लोगों के बीच उठने बैठने लगे. बाकायदा मेहदी को हैदराबाद की तरफ से ब्रिटेन जाने का मौका मिला, जहां उन्होंने क्वीन विक्टोरिया की दावत का स्वाद लिया. साल 1892 तक मेहदी और एलन की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र की एक चिंगारी भी धीरे-धीरे सुलग रही थी. इसका उन्हें कुछ अंदाजा नहीं था. मेहदी की सफलता से कई लोग खार खाए हुए थे और उन्हें ठिकाने लगाने की फिराक में थे. ऐसे में मेहदी का शिकार करने के लिए उन्होंने एलन को निशाना बनाया. इसके पीछे एक बड़ी वजह एलन का अंग्रेज़ होना था.
ये वो दौर था, जब किसी भारतीय और अंग्रेज़ की शादी होना बिलकुल आम बात नहीं थी. एलन शादी के बाद मुसलमान बन गई थीं और पर्दा प्रथा का पालन किया करती थीं. हालांकि, जब वो हैदराबाद पहुंचीं तो यहां उन्होंने बुर्का ओढ़ना बंद कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने हैदराबाद में रहने वालीं ब्रिटिश महिलाओं के बीच उठना-बैठना शुरू किया और मेहदी के साथ तमाम पार्टीज़ और फंक्शन्स में जाने लगीं. विदेश दौरे में भी वो मेहदी के साथ गईं. इसके चलते धर्म के ठेकेदार उनसे नाराज रहने लगे. मेहदी और एलन को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था. लेकिन इसी बात का फायदा उठाया मेहदी के दुश्मनों ने.
बेनाम पर्चीमेहदी निज़ाम के बाद हैदराबाद में दूसरे सबसे ताकतवर शख़्स थे. इसलिए उनके ख़िलाफ़ सीधा कुछ बोलने के बजाय एक बेनाम पर्ची छापी गई. इसमें एलन के ख़िलाफ़ अनाप शनाप बातें लिखी गई थीं. साफ़ पता चलता था कि ये काम मेहदी की बदनामी और उन्हें निज़ाम की नज़रों में गिराने के लिए किया गया था. क्योंकि जो पर्चा छपा था, वो अंग्रेज़ी भाषा में था और शुरुआत में सिर्फ़ 300 संभ्रात परिवारों को बांटा गया था. आठ पन्ने के इस पर्चे में मेहदी पर ये इल्जाम लगाया गया था कि वो पद और फेवर हासिल करने के लिए अपनी पत्नी को दूसरे मर्दों के पास भेजते थे. मेहदी को जब ये बात पता चली, तो उन्होंने इस मामले की तह में जाने की कोशिश की. हालांकि, कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि परचा बेनामी था. छपवाने वाले का नाम नहीं लिखा था.
इसलिए मेहदी ने पर्चा छापने वाली प्रिंटिंग प्रेस के मालिक, SM मित्रा पर केस कर दिया. ये केस ब्रिटिश कोर्ट में दर्ज किया गया, जिसे तब Residency Court कहा जाता था. मेहदी को उम्मीद थी कि एलन के अंग्रेज़ होने के चलते उन्हें ब्रिटिश कोर्ट में सहानुभूति मिलेगी. इस केस के लिए दोनों पक्षों ने महंगे अंग्रेज़ी वकीलों को हायर किया, ताकि केस मजबूती से लड़ा जा सके. लेकिन वकील केस जीतने के बजाय पैसा छापने की कोशिश में लगे रहे. Benjamin Cohen अपनी किताब में बताते हैं,
फ़ैसले से सब चौंकेदोनों पक्षों ने गवाहों को घूस देने की कोशिश की. कोर्ट में कई गवाह पेश हुए. लेकिन अधिकतर झूठ बोल रहे थे. और उनका झूठ पकड़ा गया.
कुल 9 महीने तक केस चला. केस पर हैदराबाद की सरकार, ब्रिटेन की सरकार, ब्रिटिश इंडिया की सरकार सबकी नज़र लगी थी. लेकिन जब अंत में फैसला आया, सब चकित रह गए. कोर्ट ने पर्चा छापने वाले, SM मित्रा को बरी कर दिया. जज ने ये तक नहीं माना कि मित्रा ने पर्चा छापा है. केस के दौरान एलन डोनेली पर लगे इज्लामों की चर्चा भी हुई थी. लेकिन कोर्ट ने अपने फ़ैसले में उनके बारे में एक टिप्पणी तक नहीं की. मेहदी हसन केस हार गए. अब तक उनकी इतनी बदनामी हो चुकी थी कि उन्हें नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया. मेहदी और एलन इसके बाद वापस लखनऊ चले गए. लखनऊ में मेहदी ने नौकरी के लिए आवेदन किया. लेकिन हैदराबाद केस की ख़बरें यहां भी पहुंच चुकी थीं. मेहदी को नौकरी नहीं मिली.
मुफलिसी में कटी ज़िंदगीनिज़ाम के अलावा ब्रिटिश सरकार ने भी उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह उठाकर फेंक दिया. उनको नौकरी की पेंशन तक नहीं मिली. मुफलिसी में दिन काटते हुए हैदराबाद कोर्ट के इस पूर्व जस्टिस की 52 साल की उम्र में मौत हो गई. मेहदी की हालत इतनी ख़राब थी कि वो एलन के लिए एक पैसा भी छोड़कर नहीं गए. एलन ने कुछ साल किसी तरह गुजारा चलाया. लेकिन बुढ़ापे में जब कोई मदद के लिए नहीं बचा, तो एलन एक बार फिर हैदराबाद पहुंची. उन्होंने निज़ाम से मदद की गुहार लगाई. एलन की दयनीय हालत देखते हुए निज़ाम ने एलन के लिए कुछ रकम भत्ते के तौर पर मंजूर कर दी. हालांकि, इसके कुछ समय बाद ही प्लेग के चलते एलन की मौत हो गई.
एलन और मेहदी की ये कहानी कुछ सालों तक खूब चर्चा में रही. लेकिन इसी बीच कांग्रेस का उभार हुआ. महात्मा गांधी की इंडिया वापसी के बाद फ्रीडम मूवमेंट की ख़बरों ने अख़बारों में जगह बनानी शुरू की. निज़ामों और रजवाड़ो की ख़बरों में किसी को उतना इंटरेस्ट नहीं रह गया. और हैदराबाद का स्कैंडल इतिहास के किसी कोने के खो गया.
वीडियो: तारीख: हैदराबाद का सेक्स स्कैंडल जिसने देश हिला दिया था