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एक और गाय मर गई

एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए दीपक मेडतवाल की कहानी कीच समाधि

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23 सितंबर 2016 (Updated: 23 सितंबर 2016, 01:28 PM IST) कॉमेंट्स
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पिछले कई घंटों से हो रही बारिश में उसका शरीर दलदल में पूरी तरह से फंस चुका है. अब ये दलदल उसे धीरे-धीरे अपने भीतर निगले जा रहा है. उसने बचने की बहुत कोशिश की. मगर शायद जिस्म में इतनी जान नहीं बची है कि एक झटके में इस सबको छिटककर बाहर आ जाए. लगातार बरस रहे पानी ने पैर टिकाने की कोशिशों को और ज्यादा मुश्किल बना दिया है. भिनभिनाती मक्खियों, बदन पर चिपके मच्छरों और आसमान में मंडराते कौओं के बीच उसकी छटपटाहट कई बार तेज हो जाती है. मगर जिस्म की हर हलचल के साथ कीचड़ उसे निगलता जा रहा है. अब तो कीचड़ के बीच बस उसका सिर ही दिखाई दे रहा है. बदन में अब इतनी ताकत भी नहीं बची है कि हलक से आवाज निकल सके. मगर जैसे बुझते दिये की लौ आखिर में जोर से टिमटिमाती है. वैसे ही उसने ताकत लगाकर जोर से कराहने की कोशिश की. एक तेज आवाज. लेकिन उस आवाज के साथ ही खुले मुंह में ढेर सारा कीचड़ और भर गया. मिट्टी, गोबर, मूत्र, पानी और इन सबसे बना कीचड़ अब गले में भी भरने लगा. जितनी बार उसने अपनी आवाज सुनाने की कोशिश की. कीचड़ शरीर में उतना ही गहरा भरता चला गया.
पिछले कई घंटों से चारों ओर मौजूद कई जोड़ी आंखें इस कीच समाधि को मूक दर्शक की तरह देख रही हैं. और एक विचार जैसे इस वक्त वातावरण में तैर रहा है कि अगली बारी किसकी. क्योंकि ये पहली समाधि नहीं है और जिस तरह से बारिश हो रही है उससे ये भी निश्चित है कि ये आखिरी समाधि भी नहीं होगी.
इधर कीचड़ मुंह को लीलने के बाद नाक की तरफ बढ़ रहा है. मुंह में कीचड़ भरने की वजह से सांस मुश्किल हो चुकी है. पूरा जोर लगाकर छटपटाकर सांस लेने की कोशिश में उसके बदन में कुछ हरकत हुई. लेकिन हर हरकत पर दलदल उसे और अंदर समाये जा रहा है. छोड़ी गई सांस कुछ कीचड़ को बाहर धकेल रही है. मगर वापस आती हर सांस और भी ज़्यादा कीचड़ को शरीर में अंदर तक पहुंचा रही है.
और अब बारी थी आंखों की. वो आंखें जिनसे बह रहे पानी के लिए बता पाना मुश्किल है कि कौनसा पानी बारिश का है और कौनसा आंसुओं का. अब उनमें भी कीचड़ धंस रहा है. सांसे भी टूट रही हैं. आंखों के आगे धुंधलका छाने लगा है. और कानों में आने वाली आवाज भी कम हो गई है. अब वहां बस कीचड़ दिखाई दे रहा है. लेकिन कीचड़ में हो रही हल्की सी हलचल उसके नीचे छिपी जिंदगी का संकेत दे रही है.. ये संकेत भी धीरे धीरे बंद होते जा रहे हैं.
तेज बारिश की बूंदों ने कीचड़ को इस तरह से समतल कर दिया. कि ये सोच पाना भी मुश्किल है कि यहां नीचे पूरा जिस्म दफन है. धीरे-धीरे कीचड़ पूरी तरह से शांत हो गया. और गऊ माता की कीच समाधि सम्पन्न हुई.

उसके लिए सामान और तोहफे लाना ही प्यार है

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