एक और गाय मर गई
एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए दीपक मेडतवाल की कहानी कीच समाधि
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फोटो - thelallantop
पिछले कई घंटों से चारों ओर मौजूद कई जोड़ी आंखें इस कीच समाधि को मूक दर्शक की तरह देख रही हैं. और एक विचार जैसे इस वक्त वातावरण में तैर रहा है कि अगली बारी किसकी. क्योंकि ये पहली समाधि नहीं है और जिस तरह से बारिश हो रही है उससे ये भी निश्चित है कि ये आखिरी समाधि भी नहीं होगी.इधर कीचड़ मुंह को लीलने के बाद नाक की तरफ बढ़ रहा है. मुंह में कीचड़ भरने की वजह से सांस मुश्किल हो चुकी है. पूरा जोर लगाकर छटपटाकर सांस लेने की कोशिश में उसके बदन में कुछ हरकत हुई. लेकिन हर हरकत पर दलदल उसे और अंदर समाये जा रहा है. छोड़ी गई सांस कुछ कीचड़ को बाहर धकेल रही है. मगर वापस आती हर सांस और भी ज़्यादा कीचड़ को शरीर में अंदर तक पहुंचा रही है.
और अब बारी थी आंखों की. वो आंखें जिनसे बह रहे पानी के लिए बता पाना मुश्किल है कि कौनसा पानी बारिश का है और कौनसा आंसुओं का. अब उनमें भी कीचड़ धंस रहा है. सांसे भी टूट रही हैं. आंखों के आगे धुंधलका छाने लगा है. और कानों में आने वाली आवाज भी कम हो गई है. अब वहां बस कीचड़ दिखाई दे रहा है. लेकिन कीचड़ में हो रही हल्की सी हलचल उसके नीचे छिपी जिंदगी का संकेत दे रही है.. ये संकेत भी धीरे धीरे बंद होते जा रहे हैं.तेज बारिश की बूंदों ने कीचड़ को इस तरह से समतल कर दिया. कि ये सोच पाना भी मुश्किल है कि यहां नीचे पूरा जिस्म दफन है. धीरे-धीरे कीचड़ पूरी तरह से शांत हो गया. और गऊ माता की कीच समाधि सम्पन्न हुई.
उसके लिए सामान और तोहफे लाना ही प्यार है