अफगानिस्तान में भूकंप से बार-बार सैकड़ों मौतें कैसे हो जाती हैं? एक वजह तो खुद तालिबान है
अफगानिस्तान उन देशों में शामिल है जहां के लोगों ने बार-बार भूकंप से हुई तबाही झेली है. आए दिन यहां धरती हिलती है. तांडव मचता है. लोगों की जानें जाती हैं. घर बर्बाद होते हैं और बेघर लोग भूखे-प्यासे खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर होते हैं.
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उत्तरी अफगानिस्तान में सोमवार, 3 नवंबर की सुबह भूकंप से हुई तबाही ने 800 से ज्यादा परिवारों में अंधेरा कर दिया. अफगानिस्तान की खुल्म सिटी के पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में 22 किलोमीटर दूर भूकंप के केंद्र का पता चला, जो 28 किलोमीटर गहराई में था. भोर से पहले ही दस्तक देने वाले इस भूकंप से 20 लोगों की जान चली गई और 150 से ज्यादा लोग घायल हो गए.
अफगानिस्तान उन देशों में शामिल है जहां के लोगों ने बार-बार भूकंप से हुई तबाही झेली है. आए दिन यहां धरती हिलती है. तांडव मचता है. लोगों की जानें जाती हैं. घर बर्बाद होते हैं और बेघर लोग भूखे-प्यासे खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर होते हैं. आपने सुना होगा कि जापान में सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं. ‘रिंग ऑफ फायर’ में फंसे इस देश के बारे में कहा जाता है कि हर साल यहां 1500 से 2000 भूकंप आते हैं. लेकिन, यहां नुकसान वैसा नहीं होता, जितना अफगानिस्तान में हो जाता है.
अफगानिस्तान भूकंप और उससे नुकसान के मामले में दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक बन गया है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि यहां हर साल औसतन 560 लोग भूकंपों में मारे जाते हैं और करीब 8 करोड़ डॉलर का नुकसान होता है. स्टडीज के हवाले से रिपोर्ट में आगे बताया गया कि साल 1990 के बाद से अब तक अफगानिस्तान में कम से कम 355 बार 5 या उससे ज्यादा की तीव्रता वाले भूकंप आ चुके हैं. ये आंकड़े इस गरीब और अस्थिर देश में तबाही के हालात बताने के लिए काफी हैं.
लेकिन सवाल ये है कि अफगानिस्तान में इतने भूकंप आते क्यों हैं और उनसे यहां ऐसी तबाही क्यों मचती है कि सैकड़ों, हजारों की संख्या में लोगों की जान चली जाती है, गांव के गांव मलबे में बदल जाते हैं.

तारीख 11 अक्टूबर, 2023. अफगानिस्तान में भीषण भूकंप से कम से कम एक हजार लोग मारे गए. इसने एक पूरा गांव ही समतल कर दिया था. अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पहले बताया कि भूकंप में 2400 से ज्यादा लोग मरे हैं. लेकिन बाद में ये आंकड़ा बदल दिया और कहा कि तकरीबन 1000 लोगों की जान भूकंप से गई है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मानवीय मामलों के दफ्तर की ओर से बताया गया कि भूकंप में 1300 लोगों की मौत हुई थी.
यह तो एक मामला था. रिपोर्ट्स बताती हैं कि अफगानिस्तान में सन् 1900 से लेकर अब तक 100 से ज्यादा ऐसे भूकंप दर्ज किए गए हैं जिन्होंने बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान किया. जैसे-
– 2023 में एक ही महीने में कई भूकंप आए, जिनमें फिर एक हजार लोगों की मौत हो गई और पूरा का पूरा गांव तबाह हो गया.
– 17 जनवरी 2022. पश्चिमी अफगानिस्तान के बादगीस प्रांत में भूकंप आया. तीव्रता 5.3 मैग्नीट्यूड थी. इसमें 30 लोगों की मौत हुई.
– 2022 में 6 की तीव्रता वाला एक भूकंप आया था, जिसमें एक हजार लोगों की मौत हुई थी.
– 2015 में अफगानिस्तान का सबसे बड़ा भूकंप दर्ज किया गया, जिसकी तीव्रता 7.5 थी. इस भूकंप में 399 लोग मारे गए. इनमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत तीनों देशों के लोग भी शामिल थे.
– मार्च 2002. इस महीने दो बड़े भूंकप आए. 3 मार्च को 7.4 मैग्नीट्यूड पर धऱती हिला. 166 लोगों की मौत हुई. 25 मार्च को 6.1 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया. इसमें लगभग एक हज़ार लोगों की जान गई.
– 30 मई, 1998 को अफगानिस्तान के इतिहास का सबसे वीभत्स भूकंप आया था. तखार प्रांत में. इस भूकंप की तीव्रता 6.5 मैग्नीट्यूड थी. इस घटना में चार हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी, जबकि 10 हजार से अधिक लोग घायल हो गए थे.
– 20 फ़रवरी 1998. तख़ार प्रांत में 5.9 मैग्नीट्यूड के भूकंप में दो हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
– 16 दिसंबर 1982. बग़लान प्रांत में 6.6 तीव्रता के भूकंप ने 450 लोगों की जान ले ली थी.

अफगानिस्तान में इतने सारे भूकंप आने की वजह उसकी भौगोलिक स्थिति है. ये देश दुनिया के नक्शे पर जहां मौजूद है, वहां तीन अलग-अलग टैक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं. यही वजह है कि यहां धरती भूकंप के प्रति ज्यादा संवेदनशील है.
अब ये टैक्टोनिक प्लेटें क्या हैं?
ये जानना है तो आपको धरती की संरचना को समझना होगा. नीले गोल गेंद की तरह दिखने वाली हमारी धरती अंदर से खोखली नहीं है. इसकी 4 मुख्य परतें (Plates) हैं. सबसे अंदर की ओर इनर कोर है. यहां धरती सबसे ज्यादा हार्ड है. उसके बाद अपर कोर आता है. इसमें निकल, लोहा और चट्टानें पिघली हुई हालत में मिलती हैं क्योंकि तापमान यहां बहुत ही ज्यादा हाई होता है.
फिर आता है मेंटल. यह धरती के आयतन का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, जिसमें काफी मात्रा लिक्विड की होती है. यह 2900 किमी मोटा होता है. जबकि पृथ्वी की सबसे ऊपरी लेयर कही जाने वाली क्रस्ट की मोटाई लगभग 15 किलोमीटर होती है. मेंटल की ऊपरी सतह और क्रस्ट मिलकर एक परत बनाते हैं. दिक्कत ये है कि इन परतों में कोई एकरूपता नहीं है. ये अलग-अलग टुकड़ों में बंटी हुई हैं और बहुत ज्यादा तापमान की वजह से हमेशा मूव करती रहती हैं. यही टेक्टॉनिक प्लेट्स हैं.

इनका मूव करना कई तरह का होता है. जैसे-
#कुछ जगहों पर टेक्टॉनिक प्लेटें एक दूसरे से दूर जाती हैं, जिससे उनके बीच में गैप बनता है और मेंटल का मैग्मा लावा बनकर बाहर आता है. इससे ज्वालामुखी बनते हैं.
#कुछ जगहों पर दो प्लेट्स एक दूसरे की ओर आती हैं. इसमें कई बार होता है कि एक प्लेट दूसरे के ऊपर चढ़ जाती है. इससे पहाड़ और खाइयां तैयार होती हैं. प्लेटों का ये संघर्ष कन्वर्जेंट प्लेट मार्जिन कहा जाता है.
#धरती के नीचे कई जगहों पर ऐसा होता है कि दो प्लेटें एक दूसरे के विरुद्ध सरकती हैं. ऐसा समान दिशा में अलग-अलग गति से भी हो सकता है या फिर एक दूसरे की विपरीत दिशा में भी हो सकता है.
जहां भी दो टेक्टॉनिक प्लेटें एक दूसरे से मिलती हैं, वहीं पर फॉल्ट लाइन होती है. प्लेटों के संघर्ष से निकलने वाली एनर्जी इन्हीं के रास्ते बाहर निकलने की कोशिश करती है, जिससे भूकंप आते हैं.
अफगानिस्तान में भूकंप बार-बार क्यों आते हैं?अफगानिस्तान उस इलाके में स्थित है, जहां भारतीय (Indian) और यूरेशियन (Eurasian) टेक्टॉनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं. इन प्लेटों की लगातार टक्कर से धरती के अंदर भारी भूगर्भीय हलचल (tectonic activity) होती है. पश्चिमी अफगानिस्तान में अरेबियन प्लेट (Arabian Plate) उत्तर की ओर बढ़ते हुए यूरेशियन प्लेट के नीचे जाती है. पूर्वी अफगानिस्तान में भारतीय प्लेट (Indian Plate) भी यही कर रही है. यानी अरेबियन और इंडियन दोनों प्लेटें यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस रही हैं. ये सब अफगानिस्तान को दुनिया के सबसे सक्रिय टेक्टॉनिक क्षेत्रों में से एक बनाती हैं.
– अफगानिस्तान ट्रांसप्लेट जोन (सीमा क्षेत्र) पर है, जहां प्लेट्स की गति से लगातार कंपन होता रहता है. यह यूरेशियन टेक्टॉनिक प्लेट के किनारे पर है. दक्षिण में अरेबियन प्लेट और पूर्व में इंडियन प्लेट इससे टकराती हैं.
– इंडियन प्लेट हर साल 4-5 सेंटीमीटर उत्तर की ओर बढ़ रही है. ये यूरेशियन प्लेट से टकराती है, जिससे 'थ्रस्ट फॉल्ट' बनता है. यहां चट्टानें ऊपर की ओर धकेली जाती हैं. दबाव जमा होता है. जब दबाव ज्यादा हो जाता है तो चट्टानें फिसल जाती हैं. इससे 5-7 मैग्नीट्यूड का भूकंप पैदा होता है.
– दक्षिण से अरेबियन प्लेट का दबाव 'सबडक्शन जोन' (नीचे धंसाव क्षेत्र) बनाता है, जहां एक प्लेट दूसरी के नीचे चली जाती है. इससे मैग्नीट्यूड 6+ के भूकंप आते हैं.
– अफगानिस्तान में हिंदूकुश फॉल्ट जैसी 100 से ज्यादा फॉल्ट लाइन्स हैं, जो पुरानी चट्टानों की दरारें हैं. यहां ऊर्जा जमा होती है और जब वो निकलती है तो भूकंप आता है.

लेकिन भूकंप तो जापान में भी खूब आते हैं. इतना नुकसान तो वहां नहीं होता. अफगानिस्तान में भारी पैमाने पर जान के नुकसान की क्या वजह है?
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसकी एक वजह अफगानिस्तान के राजनीतिक हालात भी हैं. इस समय वहां तालिबान की सरकार है, जिसे दुनिया के ज्यादातर देशों ने मान्यता नहीं दी है. इस वजह से इस देश में गरीबी अपने चरम पर है. विदेशी व्यापार और सहायता बंद हैं. लोगों के पास पैसे नहीं हैं. ऐसे में वो जापान और अन्य भूकंप वाले इलाकों के लोगों की तरह भूकंपरोधी घर नहीं बना पाते. यहां ज्यादातर घर लकड़ी और कच्ची मिट्टी के बने होते हैं. भूकंप आता है तो ये आसानी से गिर जाते हैं. रात में आया भूकंप इसलिए और ज्यादा घातक हो जाता है, जब लोगों के पास अपनी जान बचाने के मौके भी नहीं होते. हालिया भूकंप में यही हुआ था.
अफगानिस्तान का बड़ा हिस्सा पहाड़ी इलाका है. यहां भूकंप की वजह से भूस्खलन होता है. यह पूरे के पूरे गांव को समतल कर देता है. बड़े-बड़े पहाड़ के टुकड़े नदी में चले जाते हैं, जिससे पानी रुकता है और बाढ़ आती है. यह भी जान-माल के नुकसान की वजह बनती है.
अफगानिस्तान के कई इलाके ऐसे हैं, जो दुर्गम स्थानों पर हैं. जहां पहुंचना मुश्किल है. जहां से कोई खबर आना कठिन है. इन इलाकों में भूकंप आता है तो इसकी खबर ही मेनलैंड तक पहुंचने में कई दिन लग जाते हैं. क्योंकि भूकंप से सड़कें टूट जाती हैं. लैंडस्लाइड हो जाए तो बंद ही हो जाती हैं. ऐसे में मशीनों के साथ रेस्क्यू की टीम का वहां पहुंचना मुश्किल हो जाता है.
अफगानिस्तान में स्वास्थ्य सुविधाएं भी ठीक नहीं हैं. ऐसे में कई बार भूकंप में घायल लोग बिना इलाज के भी दम तोड़ देते हैं.
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