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अंट शंट बोलने वाले रमेश बिधूड़ी बीजेपी के लिए जरूरी क्यों?

कभी अरविंद केजरीवाल को दुर्योधन कह दिया तो कभी संसद के अंदर मुस्लिम सांसद पर सांप्रदायिक टिप्पणी कर दी. कभी सोनिया गांधी पर विवादित बोल कह दिए तो कभी प्रियंका गांधी और CM आतिशी पर अमर्यादित बयान दे दिया. इतना बवाल करने वाले Ramesh Bidhuri को बीजेपी शांत क्यों नहीं करा पाती?

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Ramesh Bidhuri
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से दुआ-सलाम करते रमेश बिधूड़ी. (PTI)
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सौरभ
9 जनवरी 2025 (Published: 10:27 PM IST)
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चुनाव में के बीच दिल्ली में पिछले एक हफ्ते से जो सुर्खियों में छाए हुए हैं, उनका नाम है रमेश बिधूड़ी. पहले कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी, फिर सीएम आतिशी पर आपत्तिजनक बयान देकर रमेश बिधूड़ी ना सिर्फ विरोधियों के निशाने पर आए, अपनी पार्टी को भी असहज कर दिया. बीजेपी को सफाई देनी पड़ी. खबरें ये भी आईं कि अगर बिधूड़ी का टिकट नहीं काटा जा सकता तो कम से कम सीट तो बदल ही दी जाए.

ये पहला मौका नहीं है जब रमेश बिधूड़ी ने बीजेपी को सिरदर्द दिया हो. पेशी भी हुई, बवाल भी हुए. लेकिन ना बिधूड़ी की चाल बदली, ना ज़बान पर कोई लगाम लगा पाया. आखिर क्या है रमेश बिधूड़ी की राजनीति? संसद से लेकर सड़क तक शिकायतों और हंगामों के बावजूद क्यों वो टस से मस तक नहीं होते? और सबसे बड़ा सवाल, बीजेपी के लिए रमेश बिधूड़ी क्यों जरूरी हैं?

विवादों से गहरा रिश्ता

दानिश अली पर सांप्रदायिक बयान
21 सितंबर, 2023 में मॉनसूत्र सत्र के दौरान लोकसभा में चंद्रयान-3 की सफलता पर चर्चा चल रही थी. इसी दौरान रमेश बिधूड़ी ने लोकसभा में तब BSP सांसद दानिश अली के खिलाफ सांप्रदायिक बयान दिया. बिधूड़ी काफी देर तक दानिश अली के खिलाफ सांप्रदायिक बयानबाजी और गाली-गलौज करते नजर आए. उन्होंने इतनी शर्मनाक बात कही कि हम उसे कॉपी में नहीं लिख सकते. विपक्ष के नेताओं ने बिधूड़ी के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की मांग की. कई नेताओं ने बिधूड़ी के वीडियो को शेयर कर प्रधानमंत्री मोदी पर ही सवाल उठाए.

मामला इतना बढ़ गया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा के अंदर ही माफी मांगी. कहा कि अगर उन्होंने (बिधूड़ी) ऐसा कुछ बोला है तो वे इसके लिए माफी मांगते हैं. बीजेपी मामले में घिरती नज़र आई. पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिधूड़ी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. मामला संसद की विशेषाधिकार समिति के पास भी पहुंचा. आखिरकार तीन महीने बाद रमेश बिधूड़ी को दानिश अली से माफी मांगनी पड़ी.

महिला सांसदों ने आरोप लगाया
साल 2015 में चार महिला सांसदों ने स्पीकर के पास जाकर रमेश बिधूड़ी के खिलाफ 'अशोभनीय' टिप्पणियां करने की शिकायत की थी. रंजीत रंजन, सुष्मिता देव, अर्पिता घोष और पीके श्रीमती टीचर ने बिधूड़ी पर 'अभद्र और अमर्यादित' भाषा के इस्तेमाल का आरोप लगाया था. हालांकि बिधूड़ी ने इन आरोपों से इनकार कर दिया.

सोनिया गांधी पर टिप्पणी 
साल 2017 में रमेश बिधूड़ी ने कांग्रेस पर हमला करते हुए बिना नाम लिए सोनिया गांधी पर विवादित टिप्पणी की. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 30 जनवरी, 2017 को मथुरा में उन्होंने एक जनसभा के दौरान कहा, 

"इटली में ऐसे संस्कार होते होंगे कि शादी के पांच-सात महीने बाद पोता या पोती भी आ जाए, भारतीय संस्कृति में ऐसे संस्कार नहीं हैं."

बिधूड़ी ने ये बात कांग्रेस के उन आरोपों का जवाब देते हुए कही थी जिनमें दावा किया गया था कि सरकार बनने के ढाई साल बाद भी नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए हैं. बाद में बिधूड़ी ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले  'अच्छे दिन' का हिसाब नहीं मांग सकते.

मुस्लिमों पर आपत्तिजनक बयान
सितंबर 2021 में मालाबार नरसंहार की 100वीं बरसी पर RSS ने दिल्ली के कनॉट प्लेस के चरखा म्यूजियम पार्क में प्रदर्शनी और श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में रमेश बिधूड़ी ने मुसलमानों पर आपत्तिजनक बयान दिया. नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बिधूड़ी ने कहा,

“जहां भी मुस्लिम अल्पसंख्यक होते हैं वहां मानवाधिकारों की बात की जाती है. जहां ये बहुमत में आ जाते हैं वहां हिंसा और खूनखराबा शुरू हो जाता है.”

दिल्ली के मुख्यमंत्री को 'दुर्योधन' कहा
8 फरवरी, 2024 को रमेश बिधूड़ी ने लोकसभा में शून्य काल के दौरान दिल्ली सरकार पर निशाना साधा और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 'बौना दुर्योधन' कहकर संबोधित किया. उन्होंने संसद के अंदर की अपनी वीडियो क्लिप X पर शेयर की और उसमें भी इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया.

ताज़ा विवाद

प्रियंका गांधी पर टिप्पणी 
रमेश बिधूड़ी को बीजेपी ने इस बार आतिशी के खिलाफ कालकाजी सीट से टिकट दिया है. इसी सीट पर कांग्रेस की तरफ से अल्का लांबा लड़ रही हैं. चुनाव प्रचार के दौरान 5 जनवरी को बिधूड़ी ने कहा,

“अगर चुनाव जीतेंगे, तो कालकाजी की सड़कों को प्रियंका गांधी के गालों की तरह चिकना बना देंगे.”

रमेश बिधूड़ी के इस बयान पर कांग्रेस ने जमकर विरोध जताया. यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बिधूड़ी के घर के बाहर प्रदर्शन किया. उनके घर के गेट पर 'महिला विरोधी' लिख दिया और नेम प्लेट पर कालिख पोत दी.

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रमेश बिधूड़ी के घर की तस्वीर. (PTI)

CM आतिशी पर टिप्पणी
6 जनवरी, 2024 बिधूड़ी दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान उन्होंने विवादित बयान दिया था. बिधूड़ी ने कहा था,

“ये मार्लेना अब सिंह बन गई हैं. उन्होंने अपना नाम बदल लिया है. केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि वो कभी कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे. मार्लेना ने अपना बाप बदल लिया. ये आम आदमी पार्टी के चरित्र को दिखाता है.”

बिधूड़ी ने बयान पर आतिशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान वो रो पड़ीं. इस पर बिधूड़ी ने कहा- “ये घड़ियाली आंसू हैं और वो ड्रामा कर रही हैं, ड्रामा कर रही हैं.”

सघं शरणम् गच्छामि!

दिल्ली के तुगलकाबाद के निवासी रमेश बिधूड़ी का परिवार दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा रहा है. रमेश भी बचपन से ही संघ से जुड़ गए. वो शाखा में नियमित जाने वाले विद्यार्थियों में थे. बिधूड़ी ने शहीद भगत सिंह कॉलेज से बीकॉम किया. उसके बाद मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की. कॉलेज के दिनों में वो संघ के युवा संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में शामिल हुए. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1983 में रमेश बिधूड़ी भगत सिंह कॉलेज के केंद्रीय पार्षद और दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य चुने गए. यहीं से उन्होंने राजनीति शुरू कर दी थी.

हालांकि, चुनावी राजनीति में बिधूड़ी को सफलता मिलने में थोड़ा वक्त लगा. उन्होंने पहला चुनाव 1993 में लड़ा. विधानसभा के पुनर्गठन के बाद पहली बार दिल्ली में चुनाव हुए और बीजेपी ने रमेश बिधूड़ी को तुगलकाबाद से टिकट दे दिया. लेकिन विधानसभा पहुंचने में उन्हें दो हार और 10 साल का इंतजार करना पड़ा. 2003 में जीत का पहला स्वाद चखा. उसके बाद तुगलकाबाद सीट से दो बार और चुनाव जीते और 2003 से लेकर 2014 तक विधानसभा में रहे.  

सांसद बनने के लिए भी बिधूड़ी को थोड़ा इंतजार करना पड़ा. 2009 में दक्षिण दिल्ली से टिकट तो मिला, लेकिन जीत नहीं पाए. 2014 में फिर टिकट मिला. और मोदी लहर ने बिधूड़ी को संसद पहुंचा दिया. 2019 में भी बिधूड़ी को लोकसभा चुनाव में जीत मिली. लेकिन, 2024 में उन्हें लोकसभा का टिकट ना देकर विधानसभा के लिए रिज़र्व रखा गया.

बिधूड़ी की राजनीति

कहा जाता है कि अपने ठेठ व्यवहार के लिए चर्चित रमेश बिधूड़ी ना सिर्फ विरोधी बल्कि अपनी पार्टी के भी कुछ नेताओं को भी अखरते हैं. इसके बावजूद बीजेपी में उनकी हैसियत बनी रही. बिधूड़ी की ताकत है संगठन से उनका जुड़ाव और लोगों से सीधा कनेक्शन. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में एक बीजेपी नेता के हवाले से लिखा गया,

“वह ऐसे नेता हैं जिन्होंने सांसद के रूप में पावर सब स्टेशन का निर्माण कराया, जिससे क्षेत्र में पहली बार बिना रुकावट बिजली पहुंची.”

अंग्रेजी में कहें तो बिधूड़ी 'क्राउड पुलर' माने जाते हैं. यानी जब दिल्ली में भीड़ की जरूरत होती है तो बिधूड़ी याद किए जाते हैं. यही वजह है कि संगठन में उनकी पकड़ अच्छी है. 

लेकिन पार्टी के ही कुछ नेता उनसे असहज महसूस करते हैं. वजह, उनकी भाषा. सूत्रों के मुताबिक बिधूड़ी सिर्फ विपक्ष वालों को ही नहीं गरियाते है, अगर पार्टी के अंदर उनकी किसी से अनबन हुई या उन्हें किसी ने कुछ कहा तो उनके मुंह से निकलने वाले शब्दों को छापा नहीं जा सकता. सूत्र बताते हैं कि पार्टी इसी वजह से उन्हें दिल्ली बीजेपी की पूरी कमान सौंपने से बचती है. बिधूड़ी दिल्ली बीजेपी के वाइस प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी तो रहे, लेकिन अध्यक्ष पद से वंचित रहे.

Union home minister Amit Shah with South Delhi MP Ramesh Bidhuri | PTI
अमित शाह के साथ रमेश बिधूड़ी. (PTI)

हालांकि, बिधूड़ी का अग्रेशन ही है जिसने उन्हें 'अमित शाह की गुड बुक्स' में शामिल करवाया. बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अमित शाह बिधूड़ी को उनके अग्रेसिव कैंपेनिंग की वजह से ही पसंद करते हैं. लेकिन बिधूड़ी की इसी अग्रेसिव कैंपेनिंग ने इस चुनाव में पार्टी को सफाई देने के लिए मजबूर कर दिया. इस बार के चुनाव में बिधूड़ी के बयान उनकी पार्टी के लिए वोट बटोरेंगे या नुकसान करवाएंगे, यह 8 फरवरी को स्पष्ट हो जाएगा.

बिधूड़ी को गृह मंत्री राजनाथ सिंह का भी करीबी माना जाता है. 2009 में जब राजनाथ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब पहली बार बिधूड़ी को दक्षिण दिल्ली से टिकट मिला था. हालांकि, वो चुनाव हार गए. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा,

"2023 की शुरुआत में जब मंत्रिमंडल विस्तार की बात चल रही थी, तो कुछ केंद्रीय मंत्रियों सहित वरिष्ठ भाजपा सदस्यों ने बिधूड़ी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कराने के लिए अपना समर्थन दिया था."

हालांकि, बिधूड़ी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली नहीं. दानिश अली विवाद के बाद तो 2024 लोकसभा चुनाव में उनका टिकट भी कट गया. लेकिन बिधूड़ी के लिए इससे बड़ा झटका ये था कि उनकी जगह रामवीर सिंह बिधूड़ी को टिकट दे दिया गया. सूत्रों के मुताबिक रामवीर और रमेश बिधूड़ी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. दोनों रहते एक ही मुहल्ले में हैं लेकिन आपस में बिल्कुल नहीं बनती.

लोकसभा चुनाव के दौरान जब दिल्ली के सात में से छ: सांसदों के टिकट काटे गए तभी ये कहा जाने लगा था कि इन नेताओं को विधानसभा चुनाव में तरजीह दी जाएगी. बिधूड़ी को इस बार कालका जी सीट से उतारा गया है. जहां उनके चुनाव प्रचार ने बीजेपी के माथे पर बल डाल दिया है. प्रियंका गांधी और आतिशी पर विवादित बयान के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि बीजेपी के कुछ सीनियर नेता इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि अगर बिधूड़ी का टिकट नहीं काटा जा सकता तो कम से कम उनकी सीट तो बदल ही दी जाएगी. लेकिन बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इस बात की संभावना न के बराबर है.

बीजेपी बिधूड़ी को लेकर पहली बार ऐसी स्थिति में नहीं है. पिछले विवादों में भी बिधूड़ी से सवाल-जवाब किया जा चुका है. लेकिन उसका नतीजा कुछ नहीं निकला. आजतक के पॉलिटिक एडिटर हिमांशु मिश्रा कहते है,

“रमेश बिधूड़ी दिल्ली में एक बड़े गुज्जर नेता के तौर पर स्थापित हैं, जिनका दिल्ली के अंदर जनाधार रहा है. तीन बार विधानसभा और दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. बीजेपी दिल्ली के गुर्जर समाज को नाराज़ नहीं कर सकती.”

द संडे गार्डियन की एक रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में करीब 9 प्रतिशत के आसपास गुर्जर आबादी होगी. ज़ाहिर है बीजेपी के लिए बिधूड़ी पर नकेल कसना आसान नहीं होगा.

वीडियो: बीजेपी एमपी रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली से माफ़ी मांगी, 3 महीने पहले संसद में घटिया बातें बोली थीं

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