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कांग्रेस-बीजेपी में धुकधुकी बंधी हुई थी, RSS मुख्यालय में प्रणब का भाषण सुनकर आया चैन

पार्टी नेताओं ने ही नहीं, बेटी ने भी रोका था दादा को

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RSS मुख्यालय नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ प्रणब मुखर्जी
1 सितंबर 2020 (Updated: 1 सितंबर 2020, 13:55 IST)
Updated: 1 सितंबर 2020 13:55 IST
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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफर की बात हो और उनके आरएसएस मुख्यालय के दौरे का जिक्र न हो तो कुछ अधूरा-सा लगता है. बात 2018 की है. प्रणब ने जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के न्यौते पर हामी भरी थी, तभी से न सिर्फ उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस बल्कि आरएसएस की विचारधारा से जुड़ी भारतीय जनता पार्टी और यहाँ तक कि वामपंथी दलों के भीतर भी यह धुकधुकी थी कि आखिर प्रणब दा नागपुर जाकर क्या बोलेंगे.
बहुतों को तो इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि '2010 में कांग्रेस के बुराड़ी अधिवेशन में जिन प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था, और राष्ट्र के आधारभूत सिद्धांतों पर "सांप्रदायिकता" से हमला करने के लिए इस संगठन को फटकार लगाई थी, अब वही उसके कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता स्वीकार कर रहे हैं.'
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राहुल गांधी के साथ प्रणब मुखर्जी

कांग्रेस के लोगों को इस बात की भी बेचैनी थी कि जिस संगठन के साथ उसकी स्थापना के समय से ही कांग्रेस का वैचारिक विरोध रहा है, उसके मुख्यालय जाने का निमंत्रण आखिर उस नेता ने कैसे स्वीकार कर लिया, जिसने पूरी जिंदगी कांग्रेस और कांग्रेस की विचारधारा को मानने वाले दलों के साथ गुजारी हो. बता दें, प्रणब दा शुरुआत में बांग्ला कांग्रेस नामक एक क्षेत्रीय दल से जुड़े थे. नागपुर जाकर प्रणब क्या संदेश देंगे?
इस मुद्दे पर गाँधी परिवार ने तो खुलकर कुछ नहीं कहा लेकिन कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने इस पर अपनी आपत्ति जता दी थी. पूर्व रेल मंत्री सीके जाफर शरीफ ने बाकायदा एक चिठ्ठी लिखकर प्रणब मुखर्जी से नागपुर न जाने की अपील की थी. तब दिल्ली कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित ने भी प्रणब मुखर्जी के इस फैसले पर आश्चर्य जताते हुए कहा था, 'जिस विचारधारा से हमारी पार्टी के बुनियादी मतभेद रहे हैं, उस विचारधारा के संगठन के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी के शामिल होने से अच्छा संदेश नहीं जाएगा. खुद प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा ने अपने पिता के नागपुर जाने के फैसले का विरोध किया था. तब शर्मिष्ठा ने कहा था,
"आने वाले समय में आपकी स्पीच भुला दी जाएगी और फ़ुटेज को फेक न्यूज के साथ परोसा जाएगा. इसलिए मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि आप नागपुर में संघ मुख्यालय के कार्यक्रम में शामिल होने के अपने फ़ैसले पर दोबारा विचार करें."
लेकिन प्रणब मुखर्जी नहीं माने. नागपुर जाने के अपने फैसले पर अडिग रहे. 7 जून 2018 को आरएसएस मुख्यालय में उनके भाषण देने का कार्यक्रम तय किया गया था. तय वक्त पर प्रणब मुखर्जी वहाँ गए और अपनी बात रखी.
भाषण शुरू होने तक कांग्रेस में सबको एक ही डर सता रहा था कि प्रणब दा क्या बोलेंगे. लेकिन प्रणब ने जब आरएसएस प्रचारकों के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रवाद पर संबोधन किया, तब जाकर उन लोगों को राहत की सांस आई. प्रणब दा ने राष्ट्र और राष्ट्रवाद पर कहा कि संविधान के प्रति देशभक्ति ही असली राष्ट्रवाद है. उन्होंने कहा था,
"सिर्फ़ एक धर्म, एक भाषा भारत की पहचान नहीं है बल्कि संविधान से राष्ट्रवाद की भावना बहती है. मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूँ. विविधताओं से भरे देश भारत में भारतीय संविधान में आस्था ही असली देशभक्ति है. विविधतता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. हम विविधता में एकता को देखते हैं. हमारी सबकी एक ही पहचान है, भारतीयता.''
इस मौके पर उन्होंने कौटिल्य को उद्धृत करते हुए यह भी कहा,
"प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्। नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्।।
अर्थात प्रजा की खुशी में ही राजा की प्रसन्नता निहित रहती है. प्रजा के हित में ही राजा का हित होता है. प्रजा की अच्छाई राजा की अच्छाई होती है.
मुखर्जी ने आगे कहा कि आज लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है. हर रोज़ हिंसा की ख़बर सामने आती रहती हैं. हिंसा और ग़ुस्से को छोड़कर हमें शांति के रास्ते पर चलना चाहिए.
सबसे मज़ेदार बात यह थी कि उन्होंने संक्षेप में भारत के इतिहास की भी चर्चा की. संघ मुख्यालय के मंच से सरसंघचालक की उपस्थिति में नेहरू और गांधी के दर्शन का पाठ पढ़ाया. उन्होंने विविधता में एकता की बात भी कही. खुशहाली सूचकांक के बहाने सरकार को खुशहाल जनमानस की अहमियत से भी रूबरू करवाया.
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संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करने नागपुर पहुंचे थे प्रणब मुखर्जी

प्रणब दा ने अपने भाषण से सबको ख़ुश कर दिया था. कांग्रेस इस बात पर ख़ुश हो गई कि उन्होंने संघ के मुख्यालय पर जाकर संघियों को गांधी और नेहरू का पाठ पढ़ाया. संघ इसलिए ख़ुश हो गया कि पूर्व राष्ट्रपति के भाषण से ठीक पहले संघसरचालक मोहन भागवत ने भी विविधता में एकता की बात कही थी. प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में उस पर अपनी मोहर लगा दी.
प्रणब मुखर्जी के नागपुर में दिए भाषण ने काफी वाहवाही बटोरी. लेकिन उनके आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर गाँधी परिवार की चुप्पी को कई राजनीतिक टिप्पणीकारों ने उनकी वाहवाही के दायरे में नहीं समेटा. इन टिप्पणीकारों के अनुसार, 'नागपुर के संघ मुख्यालय में प्रणब मुखर्जी की स्पीच के 5 दिन बाद 12 जून 2018 को जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, तब उसमें प्रणब मुखर्जी का नहीं बुलाया जाना गाँधी परिवार का इस दौरे के प्रति अपनी असहमति प्रकट करने का एक तरीका था.'
बहरहाल यह सियासत है और इस सियासी दांव-पेंच के खेल में हर व्यक्ति हर घटना के निहितार्थ को अपने तरीके से समझने और समझाने के लिए स्वतंत्र होता है.


 
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