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जब सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया था

रात दो बजे फोन की घंटी बजी और तड़के पांच बजे सुषमा बेल्लारी के लिए निकल चुकी थीं.

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सुषमा स्वराज राजनीतिक रूप से सोनिया गांधी की मुखर विरोधी थीं. लेकिन सदन के बाहर दोनों को दोस्तों की तरह हंसते-खिलखिलाते देखा जाता था.
7 अगस्त 2019 (Updated: 8 अगस्त 2019, 07:32 IST)
Updated: 8 अगस्त 2019 07:32 IST
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18 अगस्त 1999. अखबारों में छपी एक खबर ने हताश कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साह से भर दिया. एक साल पहले कांग्रेस की अध्यक्ष बनी सोनिया गांधी दो जगहों से लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रही थीं. पहली सीट थी अमेठी, जहां से किसी दौर में राजीव गांधी चुनाव जीतते आए थे. दूसरी सीट थी कर्नाटक की बेल्लारी. उत्तर कर्नाटक की इस सीट से कांग्रेस 1952 के बाद से कभी चुनाव नहीं हारी थी. यह सोनिया गांधी की उम्मीदवारी के पर चल रहे लंबे संशय का अंत था.

1998 में सीताराम केसरी को हटाकर नाटकीय अंदाज में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ली थी. यह उनका पहला लोकसभा चुनाव था. बीजेपी पहले ही चुनाव में सोनिया का सियासी करियर खत्म करने की फिराक में थी. कांग्रेस बहुत फूंक-फूंककर कदम रख रही थी. नामांकन के एक दिन पहले तक यह साफ़ नहीं किया गया कि वो कहाँ से चुनाव लड़ रही हैं. 17 अगस्त को वो दिल्ली से हैदराबाद के लिए रवाना हुई. हल्ला हुआ कि सोनिया को आंध्र प्रदेश के मेडक या कुडप्पा से चुनाव लड़ सकती हैं. हैदराबाद हवाई अड्डे पर उतरने के बाद सोनिया के साथ आए कांग्रेस के महासचिव गुलाम नबी आज़ाद ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वो कुडप्पा जा रहे हैं. हैदराबाद हवाई अड्डे पर मौजूद एक निजी हैलिकोप्टर के जरिए सोनिया कुडप्पा के लिए उड़ी. लेकिन बीच हवा में यह उड़नखटोला बेल्लारी की तरफ घूम गया. लेकिन सोनिया के पहुंचने से पहले उनके सुरक्षाकर्मी बेल्लारी पहुंच चुके थे. और इस तरह उनके बेल्लारी से चुनाव लड़ने की खबर भी बीजेपी तक पहुंच चुकी थी. यह बीजेपी के लिए तेजी से कदम उठाने का समय था.

17 और 18 अगस्त की दरम्यानी रात. करीब दो बजे सुषमा स्वराज के घर का फोन घनघना रहा था. उन्होंने फोन उठाया. दूसरी तरफ थे भारतीय जनता पार्टी के महासचिव वेंकैया नायडू. उन्होंने आदेश देने के लहजे में कहा,


सामान पैक करो. आपको सुबह 6.15 की फ्लाइट से बैंगलोर पहुंचना है. आप बेल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं.

सुषमा पहले ही पार्टी के सामने साफ कर चुकी थीं कि लोकसभा का चुनाव लड़ने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन वेंकैया के इस आदेश पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई. तेजी से सामान पैक करने के बाद वो बैंगलोर के लिए निकल गईं.

17 अगस्त की शाम तक सोनिया की बेल्लारी से जीत लगभग तय मानी जा रही थी. कहा जा रहा था कि उन्हें बस बेल्लारी जाकर परचा दाखिल करना है. बाकी इस सीट पर कांग्रेस की जीत तय ही है. 18 अगस्त की सुबह वो बेल्लारी में बुरी तरह से घिर चुकी थीं. सुषमा ने जब पहली दफा बेल्लारी में कदम रखा तो यह उनके लिए एकदम नई जगह थीं. जब वो परचा दाखिल करने के लिए निर्वाचन अधिकारी के दफ्तर पहुंचीं तो हजारों बीजेपी कार्यकर्ता उनके स्वागत के लिए मौजूद थे.

परचा दाखिल करने बाद सुषमा ने डॉ. बीके श्रीनिवास के घर पर डेरा डाल दिया. वो पूरे चुनाव नहीं टिकी रहीं. यह वो दौर था जब सोनिया गांधी बहुत फंसती हुई सी हिंदी बोला करती थीं. सुषमा ने कुछ ही दिनों में कन्नड़ सीखकर सबको चौंका दिया. वो अपनी चुनावी सभाओं में कन्नड़ में भाषण दिया करतीं. इस बात ने वहां के मतदाताओं का दिल जीत लिया. उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. खुद को बेल्लारी की बेटी बताया. देखते ही देखते बेल्लारी का एकतरफा मुकाबला कांटे की टक्कर में तब्दील हो गया. लेकिन अक्टूबर 1999 में आए नतीजे सुषमा स्वराज के लिए निराशाजनक थे. वो 56,100 के मार्जिन से चुनाव हार गईं.


बेल्लारी से चुनाव हारने के बावजूद सुषमा लंबे समय तक बेल्लारी आती रहीं. वरमहालक्ष्मी पूजा में भाग लेने के लिए.
बेल्लारी से चुनाव हारने के बावजूद सुषमा लंबे समय तक बेल्लारी आती रहीं. वरमहालक्ष्मी पूजा में भाग लेने के लिए.

बेल्लारी से चुनाव हारने के बाद भी सुषमा स्वराज का बेल्लारी से दो वजहों से रिश्ता बना रहा. पहला वरमहालक्ष्मी पूजा की वजह से. बेल्लारी चुनाव के दौरान वरमहालक्ष्मी की पूजा पड़ी थी. तब सुषमा ने पहली बार इस पूजा में भाग लिया था. उस समय सुषमा ने वहां के लोगों से वादा किया था कि जब तक वो जिन्दा रहेंगी वो इस पूजा में आती रहेंगी. सुषमा स्वराज ने यह वादा निभाया भी. वो लंबे समय तक वरमहालक्ष्मी पूजा में भाग लेने के लिए बेल्लारी आती रहीं.

बेल्लारी से उनका दूसरा रिश्ता बाद के दौर में बदनामी का बना. जब सुषमा बेल्लारी चुनाव लड़ने गई थीं तो यह जगह उनके लिए एकदम नई थी. वहीं सोनिया के पीछे सूबे की पूरी कांग्रेस खड़ी थी. इस नाजुक समय पर उनका साथ दिया तीन भाइयों ने. नाम था, जनार्दन रेड्डी, करुणाकर रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी. ये तीनों भाई बाद के दौर मीडिया में बेल्लारी ब्रदर्स के नाम से जाने गए. बेल्लारी ब्रदर्स की छवि कर्नाटक में खनन माफिया के तौर पर है. कहा जाता है कि सुषमा के साथ करीबी का बेल्लारी ब्रदर्स ने जमकर फायदा उठाया. देखते ही देखते कर्नाटक में बीजेपी के चुनावी मैनेजमेंट में मुख्य वित्तीय स्त्रोत बन गए. उसके रसूक की बानगी यह थी कि सूबे में येदियुरप्पा के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार में तीनों भाइयों को मंत्री बनाया गया.

बेल्लारी ब्रदर्स को राजनीतिक संरक्षण देने के आरोप लगने के बाद सुषमा स्वराज ने अपनी सफाई में इन आरोपों को बेबुनियाद बताया था. आउटलुक को दिए इंटरव्यू में सुषमा ने कहा था कि जिस समय बेल्लारी ब्रदर्स को सूबे में मंत्री बनाया गया, अरुण जेटली कर्नाटक के प्रभारी हुआ करते थे. वेंकैया नायडू और अनंत कुमार जैसे नेताओं की सहमति के बाद बेल्लारी ब्रदर्स को मंत्रिमंडल में जगह दी गई थी. उन्होंने न तो बेल्लारी ब्रदर्स के नाम की सिफारिश की थी और ना ही उनका इस मामले से कोई सीधा संबंध है.




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