मोदी से पूछा, 47 में कहां थे?
तारीख- जुलाई, 2017
जगह- जिमखाना क्लब, नई दिल्ली
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने एक लंच रखा. अमेरिका से आए एक थिंकटैंक के मेहमानों के लिए. राजधानी के पत्रकारों, चुनिंदा बुद्धिजीवियों को भी बुलाया. एक और व्यक्ति आने वाला था. जिसके बारे में आने वाले नहीं जानते थे. राहुल गांधी. उस वक्त तक कांग्रेस के महासचिव. राहुल आए तो पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया. लगभग पांचेक साल पुराना सवाल नए सिरे से मांजकर उछाल दिया. आप कांग्रेस की कमान कब संभालेंगे? राहुल ने पलटकर कहा. जाहिर है कि अंग्रेजी में.
Why don’t you all tell me? Where Narendra Modi was at my age and what he was doing in his forties? (आप लोग ही बताइए. जब नरेंद्र मोदी मेरी उम्र के थे, तब क्या कर रहे थे)

नरेंद्र मोदी 47 साल की उम्र में अपने गृहराज्य गुजरात से एक समझौता फॉर्मूले के तहत बाहर भेज दिए गए थे. ये समझौता केशुभाई पटेल और शंकरसिंह वाघेला के बीच हुआ था. मोदी गुजरात से दिल्ली आ गए. पार्टी महासचिव बन गए और प्रभारी रहे, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के.
मगर राहुल ये क्यों याद दिला रहे थे. कई कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि राहुल को ऐसा लगता है कि उम्र, वक्त उनके साथ है. देर सवेर उनका नंबर आएगा. यही कई कांग्रेसी नेता ये भी पूछते हैं, कि मान लीजिए, कुछ या कई बरसों में नंबर आ गया, तो क्या तब तक कांग्रेस बचेगी.
मीटिंग में सब लोग मेरी तरफ क्यों देख रहे थे?
तारीख – मई का आखिरी सप्ताह, 2014
जगह- 24 अकबर रोड, नई दिल्ली
कांग्रेस हेडऑफिस में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग चल रही थी. सब कांग्रेस के सबसे बुरे प्रदर्शन (लोकसभा में कुल 44 सीट) पर बात कर रहे थे. वजहें गिना रहे थे और बार-बार राहुल गांधी की तरफ देख रहे थे. उस मीटिंग से निकलकर राहुल गांधी ने अपने एक दोस्त से गुस्से में कहा, यूपीए के खिलाफ जनादेश आया है. इसके लिए मैं कैसे जिम्मेदार हो सकता हूं. मैं तो इस सरकार का हिस्सा भी नहीं था.

राहुल गुस्सा थे. उन बूढ़ों की फौज से. जिसने उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को घेर रखा था. राहुल क्या चाहते थे. वही जो दशकों पुराने बल्ब के ऐड में असरानी चाहते थे. पूरे घर को बदल डालूंगा. मगर सोनिया समझती थीं. कांग्रेस में झटका नहीं, हलाल चलता है. हौले हौले से. पर राहुल राजी नहीं थे. गुस्से के मारे लोकसभा में पार्टी के नेता भी नहीं बने. ऐसे ही फरवरी 2015 में बीच बजट सत्र दो महीने की छुट्टी पर भी चले गए. म्यामांर, थाईलैंड इत्यादि की बौद्ध स्थलों वाली आध्यात्मिक यात्रा पर. इसमें उनके साथ थे एक दोस्त. जिनके पापा राहुल के पापा के दोस्त थे. समीर शर्मा, वल्द कैप्टन सतीश शर्मा.
मैं मां हूं. अपने बेटे की इच्छाओं के खिलाफ नहीं जा सकती
तारीख- मार्च का एक दिन, 2015
जगह- 12 तुलगक लेन, नई दिल्ली
राहुल गांधी का घर वाला दफ्तर. ड्राइंग रूम में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्ता और गोगोई कैबिनेट के मेंबर हेमंत बिस्वशर्मा.
हेमंत 1993 से कांग्रेस से जुड़े थे. वह अपने आप को गोगोई का उत्तराधिकारी समझते थे. लगातार आलाकमान पर सूबे में सीएम बदलने का दबाव बना रहे थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद उनके राजधानी के फेरे और बढ़ गए. उनका दावा, ज्यादातर विधायक मेरे साथ. सोनिया ने इसकी जांच के लिए मल्लिकार्जुन खडगे को पर्यवेक्षक बना गुवाहटी भेजा. उन्होंने लौटकर अहमद पटेल को रिपोर्ट दी. 78 में से 52 विधायक हेमंत के साथ हैं. हेमंत का दावा है कि इसके बाद सोनिया ने यकीन दिलाया कि कुछ ही दिनों में सत्ता बदलेगी. लेकिन राहुल गांधी ने वीटो कर दिया. गुस्साए हेमंत ने कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.
इस सबके बाद ही समझौते के लिए राहुल के घर ये मीटिंग हो रही थी. मीटिंग शुरू होने के पांच मिनट बाद ही बकौल हेमंत, राहुल ने दिलचस्पी खो दी. उन्होंने हेमंत को चेताते हुए कहा, देखो, तुम्हें जो करना है करो, मुझे फर्क नहीं पड़ता. सीपी जोशी (कांग्रेस महासचिव, इंचार्ज, असम) से बात करो. वही तुम्हारी समस्याएं निपटाएंगे. मेरे पास दोबारा मत आना.
ये कहकर राहुल अपने पालतू कुत्ते पिडी को खिलाने लगे. यहां खिलाने शब्द में श्लेष अलंकार है. वाक्य में शब्द एक बार आए, मगर अर्थ कई हों.

क्या अर्थ. पहला, राहुल अपने प्रिय कुत्ते के संग खेलने लगे. दूसरा, राहुल ने अपने प्रिय कुत्ते को मेज पर मेहमानों के लिए रखे बिस्किट ऑफर किए, खाने के लिए.
इस दूसरे अर्थ ने अनर्थ किया. राहुल की छवि के लिए. हेमंत ने ये कहानी खूब सुनाई. दोहराई. राहुल की राजनीतिक समझ, गंभीरता पर सवालिया निशान उठाने के लिए. अपने अपमान की गाथा सुनाने के लिए. उधर कांग्रेसियों ने इसका काउंटर क्या दिया. उन्होंने कहा कि हम हेमंत के छह लोगों को कैबिनेट में लेने के लिए राजी थे. मगर वह पहले ही भाजपा की गोद में जाने को तैयार थे. और एक बहाना खोज रहे थे.
अब ये लिखकर कहानी खत्म की जा सकती है कि हेमंत फिर भाजपा में चले गए. असम में भाजपा जीत गई. फिर एक एक नॉर्थईस्ट के सब राज्यों में कांग्रेस लगभग साफ हो गई. लेकिन कहानी का ये अंत पॉपुलर है. इस तरह पहुंचने के दो किस्से नए हैं. सो वे सुनिए.
इस पिडी प्रसंग के कुछ दिन बाद हेमंत ने सोनिया गांधी से समय मांगा. उन्हें समय मिला. और साथ में हिदायत, कि 10 जनपथ आएं, मगर पीछे के दरवाजे से. जब हेमंत ने इसका सबब पूछा, तो उनके मुताबिक सोनिया का जवाब था,
हेमंत, तुम भी एक पिता हो. तुम समझ सकते हो कि एक मां के तौर पर मैं अपने बेटे की इच्छाओं के खिलाफ नहीं जा सकती.
शर्मा समझ गए. टाइम अप. अगस्त 2015 में वह वाया राममाधव भाजपाई हो गए. जब राहुल गांधी को ये पता चला कि हेमंत पार्टी बदल रहे हैं तो उन्होंने खूब कॉल किए. कई मिस्ड कॉल्स के बाद फाइनली हेमंत ने राहुल से बात की. और इतना ही कहा.

माफ करिए राहुल जी. मैं अमित शाह जी को वादा कर चुका हूं.
राहुल गांधी जी, अपना मोबाइल नंबर बताइए
समय- कोई भी
जगह- कोई भी
शिकायत एक सी. राहुल गांधी फुल टाइम नेता नहीं. वह कांग्रेस को एनजीओ स्टाइल में चलाना चाहते हैं. कौशल विद्यार्थी, अलंकार, संदीप सिंह से लेकर सचिन राव और कनिष्क सिंह तक. उनकी कोटरी में सब लोग लेफ्ट की तरफ झुकाव वाले और जमीन की राजनीति कम समझने वाले. और जो पुराने चावल हैं, राहुल उनको भाव नहीं देते. कांग्रेस में आपको कितने ही पूर्व मुख्यमंत्री मिल जाएं, जिन्हें सीएम रहते हुए भी राहुल से मिलने के लिए हफ्तों इंतजार करना होता था. जबकि राहुल हर पब्लिक फंक्शन में, लोकसभा की बहस में, अपना मोबाइल निहारते पाए जाते थे. ऐसे में महाराष्ट्र के एक सीनियर लीडर ने अपनी नजर में डेयरिंग की. एक पार्टी फंक्शन में उन्होंने राहुल गांधी को घेर लिया. और वहीं मौके पर ही, उनका मोबाइल नंबर मांगने लगे. राहुल मुस्कुरा दिए. और फिर नेता जी को अपनी टीम की तरफ इशारा कर दिया.
इशारा साफ था. दफ्तर से बात करिए. ईमेल करिए. फोन करिए. वही आपको समय देंगे.
राहुल खुद समय अपने हिसाब से देते हैं.
जैसे लोकसभा का मौजूदा सत्र. ये शुरू हुआ 18 नवंबर 2019 को. राहुल ने इसे एक हफ्ते बाद का समय दिया. 25 नवंबर को वह लोकसभा में नजर आए.
जैसे कांग्रेस. ये शुरू हुई 1885 में. अगर इंदिरा गांधी वाला कांग्रेस संस्करण लें तो वो शुरू हुई 1979 में. आज से चालीस साल पहले. बतौर अध्यक्ष तमाम मान मनव्वल के बाद इस कांग्रेस को राहुल ने अपना समय और अध्यक्षी की सहमति दी 2017 में. और डेढ़ साल बाद ही लगभग 2014 सी बुरी हार झेली तो फिर उन्होंने अपने आप को एक मीटिंग में पाया. जहां हार के कारणों पर चर्चा के दौरान सब उनकी तरफ देख रहे थे.

राहुल बाहर निकले. गुस्सा फिर आया. 2014 जैसा. इस बार दोस्त के बजाय उन्होंने सबसे कहा, आई क्विट. एक चिट्ठी लिख राहुल गांधी ने कांग्रेस की अध्यक्षी छोड़ दी.
एंटर. सोनिया गांधी. मां हैं न. न कांग्रेस छोड़ सकती हैं, न राहुल को रोक सकती हैं.
इसलिए कभी कभी वर्किंग नजर आती कांग्रेस में फिलहाल सोनिया वर्किंग प्रेजिडेंट हैं. बूढ़ों की फौज फिर सक्रिय है. और राहुल ब्रिगेड के नेता कभी बायो बदल रहे हैं तो कभी डेटा को कोस रहे हैं.

(इस किताब में बयान किए गए सभी किस्सों का आधार है, सीनियर जर्नलिस्ट राजदीप सरदेसाई की नई किताब का एक चैप्टर, एन एनिग्मा कॉल्ड राहुल गांधी. राजदीप की किताब का टाइटिल है 2019 How Modi Won India. इसे हार्पर कॉलिंस ने छापा है. )
वीडियो- नरेंद्र मोदी के सरकारी बंगले की सुरंग कहां जाती है?