The Lallantop
Advertisement

कांग्रेस का वो 'औघड़ बाबा' जो चुटकियों में दिला देता था पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी

सतीश शर्मा की गिनती गांधी परिवार के करीबियों में होती थी.

Advertisement
Img The Lallantop
कैप्टेन सतीश शर्मा ने 90 के दशक में गांधी परिवार के राजनीति से दूर होने के कारण 3 बार अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और 2 बार जीता.
18 फ़रवरी 2021 (Updated: 18 फ़रवरी 2021, 14:27 IST)
Updated: 18 फ़रवरी 2021 14:27 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

यह 80 के दशक के शुरुआती दिनों की बात है. जब एक पायलट सियासत में आता है. सियासत में आना उनकी पारिवारिक मजबूरी भी है, क्योंकि उसका छोटा भाई जो सियासत में था, वह बड़े भाई का हुनर सीखने (पायलट बनने) में अपनी जान गंवा चुका था. लिहाजा सियासत में अपनी मम्मी की मदद करने के लिए उसे आगे आना पड़ा. लेकिन जब वह आया तो अपने कई गैर-राजनीतिक दोस्तों को भी राजनीति में लेकर आया. उसका कोई दोस्त फिल्मी हीरो था, तो कोई दून स्कूल का बचपन का साथी. इन्हीं दोस्तों में एक पायलट भी था.

अब ये सब पढ़-सुनकर आप सोच रहे होंगे कि आखिर वह कौन पायलट था, जो अपने छोटे भाई की मृत्यु के बाद अपनी मम्मी की मदद करने सियासत में आया था? तो चलिए हम आपको बता देते हैं. उस पायलट का नाम था राजीव गांधी. जब राजीव गांधी सियासत में आए, तब उन्होंने अपने कई दोस्तों को भी लुटियंस दिल्ली का चस्का लगाया. अमिताभ बच्चन, अरूण सिंह और पायलट कैप्टेन सतीश शर्मा उन्हीं लोगों में से थे. पाॅलिटिकल किस्सों में आज हम बात करेगें कैप्टन सतीश शर्मा की जिनका बीती रात 73 बरस की आयु में गोवा में निधन हो गया.


सतीश शर्मा पायलट से नेता कैसे बने?

सतीश शर्मा और राजीव गांधी - दोनों 70 के दशक में इंडियन एयरलाइंस के पायलट हुआ करते थे. दोनों में बड़ी गहरी दोस्ती थी. इतनी गहरी दोस्ती कि सतीश का गांधी परिवार में उठना-बैठना होने लगा और वे इंदिरा गांधी और संजय गांधी के भी करीब आ गए. लेकिन इसी दरम्यान एक हादसा होता है. 1980 में हवाई जहाज के साथ एडवेंचर करने के चक्कर में राजीव गांधी के छोटे भाई और सांसद संजय गांधी की जान चली गई. नतीजतन राजीव गांधी को पायलट का अपना पेशा छोड़ कर राजनीति में आना पड़ा. 1981 में राजीव गांधी ने संजय गांधी के निधन से खाली हुई अमेठी सीट से चुनाव लड़ा और जीते. जीतने के बाद इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को 2 जिम्मेदारियां सौंपी. एक पार्टी में और दूसरा सरकार के एक बड़े इवेंट की जिम्मेदारी. पार्टी में राजीव गांधी को स्टूडेंट और यूथ विंग की माॅनिटरिंग के साथ बंगाल में कांग्रेस पार्टी का अफेयर्स देखने को कहा गया. वहीं उसी दौर में दिल्ली में एशियाई खेलों का भी आयोजन होना था. राजीव एशियाई खेल के आयोजन की देखरेख का काम भी देखने लगे. कैसे खेल होंगे? कहां-कहां स्टेडियम बन रहे हैं, खिलाडियों के लिए खेल गांव बनाने का काम कैसे हो रहा है? खेलों के दौरान दिल्ली का ट्रैफिक कैसे मैनेज होगा, रिंग रोड बनाने का काम कैसा चल रहा है - इन सब कामों की मॉनिटरिंग राजीव गांधी करने लगे.


पायलट रहे सतीश शर्मा को राजीव गांधी राजनीति में लेकर आए थे.
पायलट रहे सतीश शर्मा को राजीव गांधी राजनीति में लेकर आए थे.

लेकिन राजीव गांधी को इसके पहले राजनीति और प्रशासन का अनुभव नहीं था. इसलिए कभी उनकी ब्यूरोक्रेसी से ठन जाती तो कभी पार्टी के नेताओं से. मोटामाटी कहें तो पहले से इस्टैब्लिशमेंट का हिस्सा रहे तकरीबन हर आदमी की नीयत में उनको खोट नजर आता. लिहाजा वे अपने विश्वस्त लोगों की एक टीम बनाने लगे. इन विश्वस्त लोगों की टीम में कुछ तो कांग्रेस के यंग पाॅलिटिशियन (जैसे ऑस्कर फर्नांडीस, गुलाम नबी आजाद, तारिक़ अनवर) थे, जबकि कुछ नए लोगों को अलग-अलग पेशे से उठाकर ख़ुद राजीव गांधी लेकर आए. इन्हीं नए लोगों में से एक थे कैप्टेन सतीश शर्मा.

इसी दौरान अक्टूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और उनकी जगह राजीव गांधी प्रधानमंत्री बना दिए गए. राजीव के नेतृत्व में कांग्रेस को 1984 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक सफलता (404 सीटें) मिली. लेकिन अब प्रधानमंत्री बन चुके राजीव गांधी के पास इतना समय नहीं था कि वे अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी पर पूरा फोकस कर सकें. ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री आवास (7 रेसकोर्स रोड) पर अमेठी का मामला देखने के लिए एक अलग सेक्शन बना दिया. और इस सेक्शन में राजीव गांधी ने कैप्टेन सतीश शर्मा को बिठा दिया. अब सतीश शर्मा ही अक्सर अमेठी के लोगों से मिलते, उनकी समस्याएं सुनते और उनके निदान के लिए संबंधित विभाग/ऑथोरिटी को निर्देश देते. वे बीच-बीच में अमेठी भी जाते और वहां के स्थानीय मुद्दों से परिचित होते. तकरीबन 5 साल अमेठी के लोगों से मिलते-जुलते वे आम पब्लिक से मेलजोल बनाने में माहिर हो गए. इसी दौरान राजीव गांधी ने 1986 में कैप्टन सतीश शर्मा को राज्यसभा भी भेज दिया. लेकिन उनको तो आगे लोकसभा पहुंचना था.


कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ सतीश शर्मा (बीच में).
कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ सतीश शर्मा (बीच में).
लोकसभा कैसे पहुंचे?

यह 1991 का साल था. 2 साल पहले बोफ़ोर्स के झमेले में सत्ता गंवा चुके राजीव गांधी के पास सत्ता में वापसी का सुनहरा मौका था. क्योंकि लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हो रहे थे. इस चुनाव में 2 चरण की वोटिंग हो चुकी थी. अमेठी सीट पर भी मतदान हो चुका था. बचे हुए 2 चरणों के लिए चुनाव प्रचार चरम पर था. तभी 21 मई 1991 की रात तमिलनाडु के श्रीपेरेंबुदूर में एक बम विस्फोट में राजीव गांधी की हत्या हो गई. इस हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर में बचे हुए 2 चरणों के चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिल गई और पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बन गए. राव प्रधानमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष भी बनाए गए थे.

उधर अमेठी लोकसभा सीट पर दिवंगत राजीव गांधी को मरणोपरांत विनर डिक्लेयर किया गया. इससे पहले भी 3 मौकों पर अमेठी में राजीव गांधी क्रमशः शरद यादव, मेनका गांधी और राजमोहन गांधी को पछाड़ कर जीत का सर्टिफिकेट ले चुके थे. लेकिन अफसोस कि इस बार वे सर्टिफिकेट लेने के लिए मौजूद नहीं थे. लिहाजा अमेठी में उपचुनाव कराना पड़ा. इस उपचुनाव के लिए प्रत्याशी के चयन का काम नरसिंह राव को थोड़ा पेचीदा लग रहा था. कारण यह था कि गांधी परिवार की सीट थी, इसलिए किसे लड़ाया जाए? क्या किया जाए? यह सब सवाल राव के सामने थे. अमेठी उपचुनाव के कैंडिडेट सिलेक्शन के मामले पर हमने बात की कांग्रेस के इतिहास पर पैनी नजर रखनेवाले लेखक रशीद किदवई से. बकौल रशीद किदवई,

"जब अमेठी उपचुनाव के कैंडिडेट सिलेक्शन की बात चली तब कांग्रेस के अंदर गांधी परिवार के कुछ करीबियों जैसे, रत्नाकर पांडे, सुरेश पचौरी वगैरह ने सोनिया गांधी को कैंडिडेट बनाने की मांग शुरू कर दी. लेकिन नरसिंह राव तो खांटी पाॅलिटिशियन थे. वे सीधे 10 जनपथ चले गए और सोनिया गांधी से ही अमेठी के कैंडिडेट के बारे में उनकी पसंद पूछ ली. तब सोनिया गांधी ने उनसे कहा कि मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और आप जिसे चाहते हैं, उसे टिकट दे दीजिए. इसके बाद राव ने कैप्टेन सतीश शर्मा को टिकट थमा दिया. शायद उन्हें टिकट देने के पीछे राव की सोच यह रही हो कि सतीश शर्मा गांधी परिवार के करीबी होने के साथ-साथ अमेठी के चप्पे-चप्पे से परिचित भी हैं. इसलिए वे बेहतर कैंडिडेट साबित होंगे."


पीवी नरसिंह राव ने सतीश शर्मा को अपनी कैबिनेट में स्थान दिया था.
पीवी नरसिंह राव ने सतीश शर्मा को अपनी कैबिनेट में स्थान दिया था.

इसके बाद सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीत भी गए. 1993 में नरसिंह राव ने उन्हें पेट्रोलियम मंत्री भी बना दिया. यहां से सतीश शर्मा की नरसिंह राव से नजदीकी शुरू हो गई. दरअसल सतीश शर्मा ही नहीं बल्कि गांधी परिवार के कई वफादार मसलन आर के धवन और संतोष मोहन देव जैसे लोगों ने भी बदले निजाम को पहचानने में देर नहीं की और नरसिंह राव के प्रति अपनी वफादारी साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. उस दौर को याद करते हुए रशीद किदवई कहते हैं,

"1995 में तो एक वक्त ऐसा भी आया जब सोनिया गांधी अमेठी के दौरे पर चली गईं और वहां जाकर उन्होंने राजीव गांधी हत्याकांड की जांच की प्रगति के प्रति अपना असंतोष प्रकट किया. सोनिया के इस अमेठी दौरे के बारे में पत्रकारों ने जब अमेठी के कांग्रेसी सांसद और पेट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा से सवाल पूछा तो उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि 'मुझे उनके दौरे की कोई जानकारी नहीं है."

सतीश शर्मा के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि अब वे 10 जनपद के बजाए 7 रेसकोर्स रोड (नरसिंह राव) के करीब हो चुके थे. राव की संगत में बदनामी भी मिली सतीश शर्मा को पीवी नरसिंह राव के साथ आने का इनाम मंत्री बनकर तो मिला ही, लेकिन साथ-साथ उनके कुर्ते भी दागदार हुए. झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद रिश्वत कांड में उनका नाम सामने आया, हालांकि बाद में उनपर कोई आरोप साबित नहीं हो सका. लेकिन बतौर पेट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा ने ख़ूब पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी और केरोसिन डिपो बांटे. खासकर अमेठी के लोगों को पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी बांटने में तो वे कुछ ज्यादा ही उदार थे. इतने उदार की अमेठी में लोग उनको औघड़ बाबा कहने लगे. औघड़ बाबा मतलब जो भी व्यक्ति कुछ मांगे, उसे दे देने वाला. हालत यह थी कि उनके दौर में पेट्रोलियम मंत्रालय के दफ्तर शास्त्री भवन में एक मजाक चलता था कि 'आजकल राशन कार्ड हासिल करने से ज्यादा आसान पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी हासिल करना है.'
पीवी नरसिंह राव की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे सतीश शर्मा ने 90 के दशक में ही अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के गांव-कस्बों तक पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी पहुंचा दी थी.
पीवी नरसिंह राव की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे सतीश शर्मा ने 90 के दशक में ही अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के गांव-कस्बों तक पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी पहुंचा दी थी.

सतीश शर्मा ने कैसे-कैसे लोगों को पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी की रेवड़ियां बांटी - जरा उनकी लिस्ट में से कुछ नाम देख लेते हैं.

1.गांधी परिवार के पुरोहित आचार्य गणपत राय को राजीव गांधी के सचिव वी जार्ज की सिफारिश पर पेट्रोल पंप अलाॅट किया गया. हालांकि इस बाबत पूछे जाने पर तब वी जार्ज ने ऐसी किसी सिफ़ारिश से साफ इनकार किया था.

2. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी देवेगौड़ा (जो बाद में प्रधानमंत्री बने) की सिफारिश पर टी शिवकुमार नामक एक PWD के ठेकेदार को पेट्रोल पंप अलाॅट किया गया. देवेगौड़ा कर्नाटक में PWD मिनिस्टर रह चुके थे और तबसे उनके शिवकुमार से संबंध थे.

3. पुटपर्थी के साईंबाबा के भाई पीवी जानकीरमैया को गैस एजेंसी दी गई.

4. पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती (जो बाद में जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री भी बनीं) को कश्मीरी माइग्रेंट के नाम पर गैस एजेंसी दी गई.

5. शैलेश पाटिल नामक लातूर के एक ऐसे पढ़े-लिखे बेरोजगार नौजवान को गैस एजेंसी दी गई जिसने लातूर के भूकंप प्रभावित इलाकों में 'बहुत काम' किया था. आपको बताते चलें कि इन बेरोजगार महाशय के पिता शिवराज पाटिल उन दिनों लोकसभा के अध्यक्ष थे.

6. युवक कांग्रेस के उस वक्त के अध्यक्ष मनिंदरजीत सिंह बिट्टा की सास बलजीत कौर को पेट्रोलियम मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद पेट्रोल पंप अलाॅट किया गया था.
7. अजीत सिंह के साथ जनता दल से टूटकर कांग्रेस में आए सांसद राजनाथ सोनकर शास्त्री और रामलखन सिंह यादव के साथ टूटकर आए रामशरण यादव को भी पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी अलाॅट हुई थी.
बाद में इन सब मामलों की सीबीआई जांच हुई और 2013 में तो कोर्ट के आदेश पर सतीश शर्मा का मसूरी स्थित फार्म हाउस भी जब्त कर लिया गया था.
इन सब मामलों पर जब हमने रशीद किदवई से पूछा तो उन्होंने हमें बताया,
"उस दौर में ऐसे ही सिफारिशों के आधार पर पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी और केरोसिन डिपो अलाॅट किए जाते थे और यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है. आश्चर्य इस बात पर होना चाहिए कि विभाग के वो सीक्रेट डाक्युमेंट मीडिया तक कैसे पहुंच गए,जिसमें यह लिखा होता है कि किसने-किसकी सिफारिश की?"
अरूण नेहरू बनाम सतीश शर्मा

1996 में लोकसभा चुनाव के साथ ही नरसिंह राव का राजनीतिक सूरज अस्त हो गया और कांग्रेस की कमान सीताराम केसरी (1996-1998) के हाथों से होते हुए एक बार फिर गांधी परिवार के हाथों में आ गई. इस दौर में सतीश शर्मा 1996 का लोकसभा चुनाव तो जीत गए, लेकिन 1998 में संजय गांधी के करीबी रह चुके भाजपा उम्मीदवार डॉ संजय सिंह से हार गए थे. लेकिन तबतक सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल चुकी थीं. ऐसे में नए दौर के नए निजाम के साथ गांधी परिवार के वफादार रहे लोगों को सोनिया गांधी के करीब पहुंचने में ज्यादा मुश्किलें नहीं आई. सतीश शर्मा एक बार फिर 10 जनपथ के करीब हो गए. इसी दरम्यान 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई और मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई. सोनिया गांधी पहली बार चुनाव लड़ने उतरीं. एक साथ 2 सीटों - कर्नाटक की बेल्लारी और यूपी की अमेठी सीट - से. ऐसे में सतीश शर्मा को इंदिरा गांधी की सीट रह चुकी रायबरेली से मैदान में उतारा गया. उनका मुकाबला गांधी परिवार के रिश्तेदार, राजीव-संजय के करीबी और इंदिरा गांधी की मौत के बात एम्स के बाथरूम में राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने के लिए मनाने वाले अरूण नेहरू से था. अरूण नेहरू गांधी परिवार पर बोफ़ोर्स दलाली का आरोप लगाते हुए काफी पहले कांग्रेस छोड़ चुके थे और बरास्ते जनता दल अब भाजपा में पहुंच चुके थे.


रायबरेली में चुनाव प्रचार करते सतीश शर्मा.
रायबरेली में चुनाव प्रचार करते सतीश शर्मा.

यह चुनाव कारगिल युद्ध के बाद हो रहा था और अटल बिहारी वाजपेयी के पक्ष में एक जबरदस्त लहर चल रही थी. रायबरेली में भी सतीश शर्मा कांटे के मुकाबले में फंसे थे. तभी उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने प्रियंका गांधी पहुंची और अरूण नेहरू पर तंज करते हुए रायबरेली के लोगों से पूछा,
"आप लोगों ने एक धोखेबाज और बाहरी व्यक्ति को रायबरेली में घुसने क्यों दिया. इस धोखेबाज को आप लोग हराइए और सतीश शर्मा को जिताइए."

इसके कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अरूण नेहरू के समर्थन में प्रचार करने रायबरेली पहुंचे और अपने चिर-परिचित चुटीले अंदाज में कहा,
"मुझे तो डर लग रहा था कि मैं भी यहां बाहरी हूं इसलिए कहीं मुझे भी रायबरेली में घुसने से रोक न दिया जाए! लेकिन खैर, अब जब किसी प्रकार पहुंच ही गया हूं तो आपलोग भी अरूण नेहरू जी को संसद पहुंचा ही दीजिए."

लेकिन जब चुनाव का नतीजा आया तो जनता ने वाजपेयी की अपील को दरकिनार करते हुए प्रियंका गांधी की बातों को तवज्जों दी और सतीश शर्मा को जिताया. अरूण नेहरू न सिर्फ चुनाव हारे बल्कि चौथे नंबर पर खिसक गए. मनमोहन सिंह ने सतीश शर्मा को मंत्री क्यों नहीं बनाया?

2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने अपनी अमेठी सीट पर अपने बेटे राहुल गांधी को चुनाव लड़वा दिया और ख़ुद चुनाव लड़ने रायबरेली चली गईं. लिहाजा सतीश शर्मा बेटिकट हो गए. लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें निराश नहीं किया. 2004 और 2010 में उन्हें लगातार 2 मर्तबा राज्यसभा भेजा गया. इस तरह मनमोहन सिंह के पूरे कार्यकाल के दौरान सतीश शर्मा संसद सदस्य रहे, लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. इस बाबत जब हमने रशीद किदवई से पूछा तो उन्होंने बताया,

"गांधी परिवार और खासकर सोनिया गांधी इस बात का पूरा ध्यान रखती हैं कि यदि किसी कांग्रेसी नेता पर कोई बड़ा मुक़दमा वगैरह चल रहा हो तो उसे मंत्री-मुख्यमंत्री जैसे पदों से दूर रखा जाए. इसलिए वफादार होने के बावजूद सतीश शर्मा को मंत्री नहीं बनाया गया."


गांधी परिवार के साथ सतीश शर्मा (सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच में).
गांधी परिवार के साथ सतीश शर्मा (सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच में).
अमेठी सतीश शर्मा को कैसे याद करती है?

सतीश शर्मा ने 2 बार अमेठी लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. अमेठी में उनके साथ काम कर चुके राजनीतिक कार्यकर्ता दुर्गाशंकर मिश्र उन्हें याद करते हुए कहते हैं,

"अमेठी संसदीय क्षेत्र के लिए संजय गांधी का जो भी सपना था ,चाहे वह जायस की गैस परियोजना हो या गौरीगंज में भारत पेट्रोलियम का प्लांट. इन सबको जमीन पर उतारने का काम सतीश शर्मा ने ही किया. आज भी लोग उनको और उनके द्वारा कराए गए विकास कार्यों को गांधी परिवार से ज्यादा याद करते हैं. वे हमेशा यहां के लोगों से जुड़े रहे, चाहे वे सांसद रहे हों, या न रहे हों. आज के जमाने में भले ही हर टोले-मुहल्ले में गैस एजेंसी और पेट्रोल पंप हो गया हो, लेकिन कुछ दशक पहले तक ऐसी सुविधा सिर्फ अमेठी को ही हासिल थी. और यह सब सुविधाएं सतीश शर्मा की ही दी हुई थी."

thumbnail

Advertisement