2019 में TVF ने Cubicles नाम की सीरीज़ बनाई थी. अब उसका दूसरा सीज़न आया है. किसी भी प्रोजेक्ट (इसमें फिल्म, सीरीज़ से लेकर तमाम वीडियोज़ को काउंट किया जा सकता है) की अपनी टार्गेट ऑडियंस होती है. Cubicles 2 की टार्गेट ऑडियंस है ऑफिस गोइंग यूथ, जो कि आज के टाइम में एक बड़ा नंबर है. प्लस इस सीरीज़ की टाइमिंग भी परेफेक्ट है. पैंडेमिक के मारे पूरी दुनिया अपने घरों में कैद है. ठीक उसी समय एक सीरीज़ आती है, जो 9 से 5 की नौकरी को इतना रोमैंटिसाइज़ कर देती है कि आप ऑफिस को मिस करने लगते हैं. आइए थोड़ा डिटेल में समझते हैं कि Cubicles सीज़न 2 का क्या सीन है. ‘क्यूबिकल्स 2’ का ट्रेलर आप यहां देख सकते हैं-
Cubicles के पहले सीज़न में हमें पीयूष प्रजापति नाम के एक लड़के की कहानी दिखाई गई थी. उसने एक टेक फर्म में अपनी पहली नौकरी शुरू की थी. शो के दूसरे सीज़न में हमें उसकी कहानी का एक्सटेंडेड या यूं कहें कि रियल लाइफ वर्ज़न देखने को मिलता है. नौकरी के पहले साल में एंथु कटलेट रहा पीयूष अब मेलो डाउन हो गया है. अब वो 9 टु 5 जॉब वाले गेम में आ चुका है. काम खत्म करो घर जाओ. पैसे बढ़वाने हैं, तो अप्रेज़ल का वेट करो या फिर नई नौकरी ढूंढो. मगर प्रॉब्लम ये है कि इस प्रोसेस के बीच उसकी नैतिकता और इंटरनेट पर पढ़ा हुआ ज्ञान आड़े आने लगता है. उसे लगता है कि वो Quarter life crisis से जूझ रहा है. उसके पास दो चॉइस है- 1) उसे ऐसी जगह नौकरी करनी चाहिए, जहां वो कंफर्टेबल हो गया है. उसके दोस्त बन गए हैं. 2) या उस जॉब ऑफर को एक्सेप्ट करे, जहां बढ़ी हुई सैलरी और गला काट कॉम्पटीशन है. हम कुछ नहीं कहेंगे, आप खुद गेस करिए कि पीयूष प्रजापित क्या चुनता है…

Cubicles सीज़न 2 की प्रॉब्लम है कि ये 9 से 5 की जॉब का पर्सनल साइड वास्तविकता के करीब रखती है. मगर प्रोफेशनल साइड को काफी रोमैंटिसाइज़्ड तरीके से आपके सामने लाती है. जो लोग इन नौकरियों में हैं, वो इस चीज़ को तुरंत समझ जाएंगे. मगर जो अपनी लाइफ में कुछ बेटर… मेरा मतलब कुछ अलग कर रहे हैं, उन्हें ये चीज़ बड़ी एस्पारयरिंग सी लग सकती है. इग्ज़ांपल के साथ बताएंगे, तो ये ज़्यादा क्लीयर तरीके से समझ आएगा. सीरीज़ का एक सीन है, जिसमें पीयूष एक नई नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा है. मगर इसके बाद उसे सामने वाली कंपनी से दसियों कॉल्स आते हैं. ये काफी अनरियल सिचुएशन है. मगर पीयूष की पर्सनल लाइफ हमारी-आपकी लाइफ से काफी मिलती जुलती है. वो रोज देर से सोकर उठता है. कैब लेकर ऑफिस जाता है. डेडलाइंस की तलवार के साथ अपने बॉस की डांट खाता है. इस कंपनी ने उसे इंक्रीमेंट तो दी है. मगर वो पैसे उसे दो साल बाद मिलेंगे. इतनी दिक्कतों के बावजूद वो यही नौकरी करना जारी रखना चाहता है. और प्लस एक तरह से ये सीरीज़ दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए मोटिवेट करती है. थोड़े होपफुल तरीके से.

Cubicles 2 एक हल्की-फुल्की सी सीरीज़ है, जिसके किरदार और कहानियां बहुत रिलेटेबल हैं. एक जैसे क्यूबिकल्स में बैठे, एक सा काम करते लोग, असल में एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं. उनका बैकग्राउंड, लाइफ को लेकर उनकी फिलॉसफी और उनके सपने सबकुछ एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होते हैं. ये सीरीज़ एक पर्सपेक्टिव भी देती है. इसमें शॉशैंक रिडेंप्शन जैसी क्लासिक फिल्म का रेफरेंस बड़े कमाल तरीके से इस्तेमाल किया गया है. और इस रेफरेंस को जैसे खत्म किया गया, वही इस चीज़ को नोटिसेबल बनाता है.
ये सीरीज़ नौकरी और जीवन के बीच फंसे इंसानों की कहानी दिखाती है. उन्हें समझने के लिए ये मोरैलिटी का सहारा लेती है. पीयूष प्रजापति अपनी कलीग सुप्रिया को समझाते हुए एक लाइन कहता है. पीयूष कहता है-
”ऐसा डिसीज़न ही क्यों लेना जिसका बाय-प्रोडक्ट गिल्ट हो.”
जबकि मैं श्योर हूं कि इस सीरीज़ के खत्म होने के बाद पीयूष प्रजापति खुद जॉब न चेंज करने के फैसले का गिल्ट लिए कहीं बैठा होगा. TVF वर्किंग क्लास के लिए कॉन्टेंट बनाने के लिए जानी जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन कहानियों को वर्किंग क्लास के लोग ही लिख और निभा रहे हैं. इसलिए आपको क्यूबिकल्स जैसी सीरीज़ के किरदार उनका कंफ्यूज़न अपने जैसा लगता है. जिस लाइन का ज़िक्र हमने ऊपर किया, ऐसी ही कुछ और लाइंस का इस्तेमाल करके ये सीरीज़ खुद को गंभीर दिखाना चाहती है. मगर वो गंभीरता इसमें है नहीं. ये एंटरटेनमेंट के लिहाज़ से बनी एक सीरीज़ है, जिसे उसी नज़र से देखा जाना चाहिए.

Cubicles 2 एक सपने के साथ शुरू होती है. और इसका एंड भी बिल्कुल ड्रीमी होता है. एक ऐसा सपना, जिसके पूरे होने की सिर्फ उम्मीद और इंतज़ार किया जा सकता है. उम्मीद और इंतज़ार जैसे शब्दों के इस्तेमाल से एक गाना याद आया, वो भी सुनते जाइए. Cubicles 2 के स्कीम ऑफ थिंग्स में फिट बैठता है-
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