शशि कपूर. 4 दिसंबर 2017 को उनका चले जाना हर एक को व्यथित कर गया. क्या टेलीविजन, क्या प्रिंट, क्या वेब और क्या सोशल, तमाम तरह के मीडिया में उन्हीं की बातें हो रही हैं. लोग तरह-तरह से उन्हें याद कर रहे हैं. उनके किस्से सुना रहे हैं. उनके लिए अपनी पसंदीदगी की वजूहात गिना रहे हैं. उनकी फिल्मों के चर्चे हैं. तमाम सेलेब्रिटीज़ उनसे जुड़े संस्मरण शेयर कर रहे हैं. ऐसे में हम उनके गानों के ज़रिए से उनको यादों में संजो रहे हैं.

यूं तो उनके दर्जनों गाने ऐसे हैं, जो प्लेलिस्ट में होने ही चाहिए. उनमें से कुछेक छांटना बड़ा मुश्किल काम था. क्या रखें और क्या छोड़े वाला धर्मसंकट तमाम समय बना रहा. उससे उलझकर ये लिस्ट बनी है. ये तमाम गाने सबने कभी न कभी सुने ज़रूर होंगे. अब बस इतना कीजिए, यहां इकट्ठे सुन लीजिए.
1. ‘मुहब्बत बड़े काम की चीज़ है’ (त्रिशूल, 1978)
शशि साहब की अमिताभ को दी गई सबसे शानदार सलाह. इश्क़ के एहसास से कोरे अमिताभ को प्यार की अहमियत जताने की कोशिश में लगी शशि कपूर और हेमा मालिनी की जोड़ी बहुत क्यूट लगी है इस गाने में. जब शशि एक जगह गाते हैं, ‘मुहब्बत से इतना खफ़ा होने वाले, चल आ आज तुझको मुहब्बत सिखा दें’, तो उनके चेहरे पर झलकता बेफिक्री का भाव पॉज करके देखने लायक है. ये गाना सिर्फ सुनने की नहीं, देखने की भी चीज़ है. किशोर, लता और येसुदास की जुगलबंदी.
2. ‘कह दूं तुम्हें या चुप रहूं’ (दीवार, 1975)
‘दीवार’ और शशि कपूर के कॉम्बिनेशन का ज़िक्र आते ही एक ही चीज़ याद आती है. ‘मेरे पास मां है’ वाला कालजयी डायलॉग. ये गाना उतना नहीं, तो उससे कम भी मशहूर नहीं. किशोर कुमार की मस्ती भरी आवाज़ में ये गाना इतना उम्दा बन बड़ा है कि रीमिक्स युग आने बाद इसके कई-कई वर्जन सामने आए.
3. ‘लिखे जो ख़त तुझे’ (कन्यादान, 1968)
इस बार जादू किशोर का नहीं रफ़ी साहब का है. और हिंदी साहित्य के नगीने गोपालदास नीरज का. मोबाइल फोन्स और रियल टाइम चैट के आविष्कार से पहले प्रेम-पत्र ही प्रेमीजनों का सहारा हुआ करते थे. और ये गीत उनका एंथम. लव-लेटर्स का चलन भले ही ख़त्म हो गया हो लेकिन गाने की मधुरता अब भी कायम है. हमेशा रहेगी.
4. ‘तुम बिन जाऊं कहां’ (प्यार का मौसम, 1969)
एक बार फिर रफ़ी साहब और शशि साहब का कॉम्बिनेशन. सामने आशा पारेख. मजरूह सुलतानपुरी के मानिखेज़ बोलों के साथ पूरा न्याय करते शशि कपूर. जब वो कहते हैं, ‘देखो मुझे सर से कदम तक, सिर्फ प्यार हूं मैं’, तो देखने वाला फ़ौरन इस बात पर यकीन कर लेता है.
5. ‘एक रास्ता है ज़िंदगी’ (काला पत्थर, 1979)
बैक टू किशोर. फलसफाई गीत. साहिर ने फिल्मों के लिए लिखते वक़्त भी क्वालिटी से समझौता नहीं किया इसका एक और उदाहरण है ये गाना. राजेश रोशन की ट्यून भी शानदार है. बाइक पर बेफिक्री में सड़क नापते शशि साहब को देखना बड़ा उम्दा अनुभव है.
6. ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल’ (जब जब फूल खिले, 1965)
यूं तो इस फिल्म का ‘परदेसियों से न अखियां मिलाना’ भी बेहद हिट रहा है लेकिन इसको चुनने के पीछे इसमें शामिल अद्भुत किस्सागोई सबसे बड़ी वजह है. नंदा को सैर कराते-कराते शशि उनको एक पूरा किस्सा सुना डालते हैं. गुल और मुहब्बत की दास्तान. जितना उम्दा आनंद बख्शी ने लिखा है, उतनी ही सुंदर कल्याणजी-आनंदजी ने धुन बनाई है.
‘तुम भी किसी से प्यार करो तो प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना..’
7. ‘बेखुदी में सनम, उठ गए जो कदम’ (हसीना मान जाएगी, 1968)
अख्तर नोमानी का लिखा बेइंतहा रोमांटिक गीत. रूमानियत इस गीत के तीनों स्तंभों से टप-टप टपकती है. अल्फाज़, आवाज़ और अभिनय से. ये मुमकिन ही नहीं कि प्यार में मुब्तिला कोई बंदा इसे सुने बगैर आगे बढ़ जाए.
8. ‘खिलते हैं गुल यहां’ (शर्मीली, 1971)
एक और फलसफाई गीत. जीवन की क्षणभंगुरता को रेखांकित करते बोल और उन बोलों के बेहद सहजता से दर्शकों तक पहुंचाते शशि साहब. गीतकार नीरज और संगीतकार सचिन देव बर्मन की जुगलबंदी.
9. ‘ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’ (चोर मचाए शोर, 1974)
हिंदी सिनेमा के इतिहास में कई रिकॉर्ड्स बनाने वाली और शाहरुख़ ख़ान को ग्लोबल पहचान दिलाने वाली ‘DDLJ’ का टाइटल इसी गाने से आया है. महबूबा के घर में घुसकर उसे उठा ले जाने का धड़ल्ले से ऐलान करते शशि कपूर लगने तो दबंग चाहिए थे, लेकिन लगते हैं क्यूट ही.
10. ‘ऐ यार सुन यारी तेरी’ (सुहाग, 1979)
अमिताभ बच्चन दोस्ती वाले एक कालजयी गाने में पहले से मौजूद हैं. ‘शोले’ का ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’. उसके बाद वो दोस्ती और बाइक के कॉम्बिनेशन वाले जिस गाने में पसंद किए गए, वो शशि कपूर के साथ था. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की धुन में आनंद बख्शी के बोल बेहद मनभावन हैं. आज भी दोस्त के बड्डे पर यार लोग ये गाना व्हाट्सएप करते पाए जाते हैं.
11. यहां मैं अजनबी हूं (जब जब फूल खिले, 1965)
ये बोनस ट्रैक है इस लिस्ट का. और शायद इस दौर में सबसे ज़रूरी भी. हमेशा स्क्रीन पर चुलबुले से नज़र आने वाले शशि साहब का संजीदा अंदाज़. प्रेम में तिरस्कृत प्रेमियों से लेकर तेज़रफ़्तार दौर में अकेले पड़ते और डिप्रेशन की गोद में जाते युवाओं तक तमाम लोग अक्सर यही फील करते हैं. ‘यहां मैं अजनबी हूं’. जितना शानदार आनंद बख्शी ने लिखा, जितनी कमाल कल्याणजी-आनंदजी ने कम्पोजिशन बनाई, उतना ही बेमिसाल इसे शशि साहब ने निभाया है. प्ले-लिस्ट में होना ही होना चाहिए ऐसा गीत.
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