चुनाव निपट चुके हैं और होली आ चुकी है. इस चुनाव में जीत के राग ने जहां मोदी जी के चाहने वालों के फाग का नशा दुगुना कर दिया. वहीं यूपी के लड़कों का बोलना किसी काम का नहीं रहा. सियासत का साहित्य से भी बड़ा पुराना रिश्ता रहा है. होली की मस्ती और चुनाव परिणामों के सुरूर में पढ़िए 11 शेर जो इस समय, हालात और जज़्बात पर फिट बैठते हैं. 11 इसलिए क्योंकि होली है, शगुन तो बनता है न भाई.
1. अब नेताजी तो कह रहे थे कि लड़का बहक गया है. पर लड़के ने कहा नेताजी बस तीन महीने के लिए पार्टी दे दो. अब ये शेर टीपू को कौन सुनाना चाह रहा होगा, समझ लेओ.
2. ये तो तय है कि पिताजी के साथ-साथ चाचा जी भी कुछ न कुछ कहना चाहते होंगे. अतः बैक टु बैक एक और.
3. हरिवंश राय बच्चन की कविता की लाइन है, जो बीत गई सो बात गई. मगर हम उर्मिलेश का शेर पढ़वा रहे हैं. बच्चन जी को इस मामले में नहीं बुलाएंगे. अखिलेश बाबू को हौसला मिलता रहे.
4. उदय प्रताप सिंह मुलायम सिंह के गुरु हैं और कुछ महीनों से अखिलेश के साथ ज़्यादा दिखते हैं. उन्होंने लिखा तो कभी और होगा मगर फिलहाल मौजू है.
5. नेताओं की इतनी बात हो और मीडिया का ज़िक्र न आए.
6. टीपू भैया ने मायावती को साथ में आने का ऑफर किया है. बुआ जी ने भी कोई स्पष्ट इंकार नहीं किया है, तो…
7. किसी भी नेता के जीवन का सबसे बड़ा सुख यही है शायद जो अदम गोंडवी बता गए हैं.
8. ये बात यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री जनता से कहना चाहेंगे या अपने गंगा-जमुना पार्टनर से आप तय करें.
9. कई लोग कह रहे थे कि अखिलेश ने काम तो किया है मगर… तो ये शेर उन्हीं लोगों की तरफ से.
10. सब बातों की एक बात. कुछ तो आपकी भी खता रही होंगी. साढ़े पांच मुख्यमंत्री और मुज़फ्फरनगर जैसी बहुत सी बातें बाकी रही हैं.
11. इस वाले पर कोई भूमिका नहीं, बस ध्यान से पढ़िए.
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