दिल्ली का लड़का. पंजाबी बैकग्राउंड का. दिल्ली की लड़की. उत्तर प्रदेश वाला फ्लेवर. दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं. नाटकीय ढंग से बात शादी पर पहुंच जाती है. शादी होनी है. लड़का-लड़की दोनों राजी हैं. लेकिन एक समस्या है. वही समस्या जो ट्रेन की खिड़की से झांको तो दीवारों पर मिलती है. अरे, खुले में सूसू-टट्टी की समस्या नहीं. उसके बारे में तो हाल ही में अक्षय कुमार की फ़िल्म आई थी. ये वो समस्या है जिसके इलाज का जुगाड़ दीवार पर पुता रहता है. रोगियों को अक्सर बस स्टैंड के बगल वाली गली में बुलाया जाता है. या फिर रेलवे स्टेशन के पास. कहीं ये हकीम, कहीं वो हकीम. इलाज की गारंटी देने को सब तैयार. मर्दाना ताकत के जानकार.
खैर, तो ये समस्या आती है लड़के के साथ. उसका गुलिस्तां गुलज़ार नहीं हो रहा था. इसरो है कि रॉकेट पे रॉकेट भेजे जा रहा है और इसका हाल ये कि दीवाली वाला रॉकेट भी उड़ने को तैयार नहीं. बात लड़की को भी मालूम चल जाती है. और यहीं से होता है खेला शुरू. इस समस्या के साथ जूझते हुए दोनों शादी करते हैं या नहीं. समस्या का निवारण होता है या नहीं. इसी की कहानी है फ़िल्म ‘शुभ मंगल सावधान’.

आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर. दोनों हमें मिले थे दम लगा के हईशा में. ऐसा लगता है जैसे दोनों इस फ़िल्म की कहानी वहीं से शुरू करते हैं जहां पिछली बार उन्होंने छोड़ी थी. आयुष्मान एक बार फिर मिडल क्लास के एक आम से लड़के के रूप में दिखे हैं. बस इस फ़िल्म में ये आम बिना गुठली वाला है, जो इसकी मेन समस्या है. 😉 भूमि अब तक अपनी तीनों फिल्मों में लगभग एक जैसा कैरेक्टर ही कर रही हैं. मिडल क्लास लड़की जो जीवन में अपनी समस्याओं से जूझ रही है. बस अंतर ये आया है कि इस बार वो ये जुझारूपन एक मेट्रो शहर में दिखा रही हैं. इसके अलावा इस फ़िल्म में ऐक्टर्स की भीड़ है. ब्रिजेन्द्र काला, नीरज सूद, सीमा पाहवा और गेस्ट अपियरेंस में दिखे गोपाल दत्त. ये लोग मिलकर जो खिचड़ी पकाते हैं, नुसरत साहब की आवाज़ में कहें तो, “तूने खिचड़ी पकाई, मज़ा आ गया…”

फ़िल्म के बारे में एक बात है जो ख़ास लगती है. इसका थीम पॉइंट ऐसा है कि लिखने वाले के पास अथाह वजहें थीं स्क्रिप्ट में डबल मीनिंग कॉमेडी घुसाने की. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. और इसके लिए इस फ़िल्म से जुड़े एक-एक शख्स को दिल से थैंक यू कहा जाना चाहिए. कहानी बहुत स्मार्ट है और जो कुछ भी लिखा गया है वो भयानक स्मार्ट तरीके से रचा गया है. बहुत वक़्त के बाद एक इतनी अच्छी कॉमेडी देखने को मिली है. और इसके लिए डायरेक्टर आर एस प्रसन्ना के नाम के पर्चे छपवाकर शहर भर में बांट देने चाहिए.
पिछले कुछ दिनों में फिल्में बहुत ही देसी, ज़मीनी और आसान हो गई हैं. ये एक वजह है कि हमें मौजूदा फ़िल्म बनाने वालों की पीठ थपथपानी चाहिए. अब फ़िल्मों में ज़ुबान ऐंठ देने वाले डायलॉग नहीं होते. आसान बातें होती हैं जैसे एक इंसान दूसरे इंसान से बात करता है. ये अहसास होता है कि जो कुछ भी सामने चल रहा है वो इंसानों की कहानी है, साहित्यकारों की नहीं. भाषा से लेकर सेटिंग तक, सब कुछ नॉर्मल. अच्छा लगता है ये देखकर.

फ़िल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ एक मज़ेदार फ़िल्म है. मज़े के साथ ही बहुत कुछ ज्ञान भी दे जाती है और मालूम भी नहीं पड़ता. भारी ज्ञान हो तो दिमाग उसका बोझ सह नहीं पाता. इस मामले में इस फ़िल्म ने एक नम्बर और कमा लिया. फ़िल्म देखी जाए. यारों-दोस्तों के साथ. हर उस इंसान के साथ जिसके साथ बैठकर आप अच्छा समय बिताना चाहते हैं.
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