आम बजट 2018-19 के बारे में एक बात जिसपर किसी को शुबहा नहीं है, वो यही है कि ये बजट मध्य वर्ग के लिए नहीं था. छूट कुल जमा 5 हज़ार के लगभग मिली है और आय के सबसे दुधारू स्रोत माने शेयर बाज़ार से पैसा कमाने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगा दिया गया है. टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ है. मिडिल क्लास नथुने फुलाकर गाल बराबर कर रहा है.
शहरों में रहने वाला मिडिल क्लास, भाजपा और खुद प्रधानमंत्री मोदी का सबसे वफादार वोटर माना जाता है. तो फिर मोदी जी ने अपने आखिरी पूर्ण बजट में अपने कोर वोटर को नाराज़ करने का रिस्क क्यों लिया?
जवाब – क्योंकि उन्होंने इंश्योरेंस का जुगाड़ कर लिया है. या कम से कम वो कोशिश कर रहे हैं.
मध्य वर्ग को थोड़ा सा नाराज़ करके इस सरकार ने उस वोट बैंक को साधने की कोशिश की है, जो उसे 2019 भी जिता सकता है और 2024 भी – भारत का ग्रामीण वोटर. शहरों में पैदा हुई पार्टी भाजपा लगातार गांव की ओर जाने की कोशिश कर रही है. ये केंद्र की योजनाओं और बजट के ऐलानों में साफ देखा जा सकता है. हम यहां इस सरकार की उन कुछ योजनाओं और ऐलानों पर रोशनी डालेंगे, जिनके सहारे वो 2019 के आम चुनाव से पहले ग्रामीण वोटर पर अपनी पकड़ मज़बूत कर रही है.

#1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और किसान क्रेडिट कार्ड
न्यूनतम समर्थन मूल्य वो दर होती है, जिस पर सरकार किसानों की उपज खरीदती है. माने अगर आप किसान हैं और आपके खेत में इस बार गेहूं हुआ है तो आप बाज़ार के अलावा उसे सरकारी सोसायटी को भी बेच सकते हैं. यहां आपको हर क्विंटल गेहूं पर कम से कम उतने पैसे तो मिलेंगे ही, जितना सरकार ने वादा किया होता है. एक तय रेट पर खरीद का यही वादा न्यूनतम समर्थन मूल्य कहलाता है.
वित्त मंत्री ने इस बजट में वादा किया है कि सरकार हर फसल पर लागत से कम से कम डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देगी. सरकार पहले पशुपालकों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी नहीं करती थी. अब करेगी.
फिलहाल ये तय नहीं है कि सरकार ये करेगी कैसे. अपनी रिपोर्ट में इसकी अनुशंसा करने वाले एमएस स्वामीनाथन ने भी इस बारे में सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है. लेकिन अगर ये हो जाता है, तो सरकार सीधे उन करोड़ों किसानों को फायदा पहुंचाएगी, जो खरीफ की फसल लेते हैं और दशकों से कुदरत के साथ-साथ बाज़ार की मार झेल रहे हैं. एक खुश किसान का परिवार भी खुश होता है, और ये खुशी वोट में तब्दील हो सकती है. भाजपा ने महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान में लगातार किसानों की नाराज़गी झेली है. ऐसे में वो किसी भी तरह से किसानों के हक में दिखना चाहती है.

#2. हर किसी के लिए मकान
नवंबर 2016 में शुरू हुई प्रधानमंत्री आवास योजना देहात में ज़मीन तैयार करने के लिहाज़ से केंद्र की दूसरी सबसे महत्वाकांक्षी योजना है. इसके तहत सरकार 2022 तक 2 करोड़ मकान बनाना चाहती है जिनमें से एक करोड़ 2019 तक बनने हैं. अब खेला ये है कि कुल 2 करोड़ गांवों में से आधे ग्रामीण इलाकों में बनेंगे. फिलहाल इस योजना की गति धीमी है, और पूरी संभावना इसी बात की है कि वो मार्च 2018 तक 51 लाख घर बनाने के अपने लक्ष्य से चूक जाए, लेकिन फिर भी ग्रामीण इलाकों में पक्के मकान बनवाना एक ऐसी योजना है जो पूरी होने पर सरकार के लिए तगड़ा गुडविल पैदा कर सकती है.
#3. घर-घर शौचालय
जिनके मकान पहले से बने हुए हैं, वो सरकारी खर्च पर शौचालय बनवा सकते हैं. खुले में शौच करना खासकर औरतों के लिए असुविधाजनक होता है. इसलिए सरकारी खर्च पर घर में पक्का शौचालय बनेगा तो महिलाएं इसे ज़रूर याद रखेंगी. चूंकि ये समस्या गांवों में ज़्यादा है, तो ये स्कीम ज़्यादा फायदा ग्रामीण इलाकों को ही देगी. इससे ग्रामीण महिलाओं का वोट कितना सधता है, ये अलग प्रश्न है.
#4. उज्ज्वला योजना – अटल ज्योति अभियान
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान ग्राणीण अंचलों में सुनने को मिल जाता था कि ‘मोदी ने घर में सिलेंडर रखवा दिया.’ लेकिन इसका इतना तगड़ा फायदा होगा कि योगी उत्तर प्रदेश के सीएम बन जाएंगे, ये किसी ने नहीं सोचा था. कई लोग उज्जवला योजना को यूपी चुनाव का गेम चेंजर बताते हैं. उज्जवला योजना अब भी जारी है. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में घरेलू खपत के लिए 24 घंटे और खेती के लिये कम से कम 10 घंटे बिजली देने के लिए अटल ज्योति अभियान लागू किया गया है. फिलहाल अटल ज्योति की हालत टाइट है, लेकिन सलीके से लागू होने पर ये उज्ज्वला योजना वाला कमाल कर सकती है. क्योंकि घरेलू बिजली से जीवन स्तर सुधरता है और सिंचाई की बिजली उपज बढ़ाकर माली हालत बेहतर करती है.

#5. सोशल सिक्योरिटी स्कीम – स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं
केंद्र सरकार ने बजट दर बजट एक सोशल सेक्योरिटी नेट तैयार करने की कोशिश की है. पुरानी पेंशन योजनाओं के नए संस्करण लॉन्च किए गए हैं, कुछ नई पेंशन स्कीम भी आई हैं. इस बजट में सरकार ने 50 करोड़ लोगों के लिए 5 लाख तक के मेडिक्लेम की घोषणा कर दी है. ये कैसे मिलेगा, किसे मिलेगा, ये फिलहाल तय नहीं है, लेकिन मोटा अंदाज़ यही है कि इसके तहत निचले तबके लोगों को प्राथमिकता मिलेगी और इस तरह एक बार फिर ये योजना रूरल फर्स्ट हो जाएगी. क्योंकि गरीबों की ज़यादा संख्या ग्रामीण अंचल में ही बसती है. तो ये मेडिक्लेम भी पहले ग्रामीण लोगों की ज़रूरत के वक्त काम आएगा.
ये सारी योजनाएं और ऐलान एक तय वक्त में पूरे हो पाएं ये बेहद मुश्किल काम है. आम चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. लेकिन राजनीति छवियों का खेल है. अच्छे काम के साथ / उससे ज़्यादा ज़रूरी है कि अच्छे काम और अच्छी मंशा की छवि पैदा की जाए. फिर इस छवि को लोक की भाषा में प्रचारित करना होता है, खासकर तब, जब आपका लक्ष्य ग्रामीण वोटर को साधना हो. भाजपा और उसके प्रधानमंत्री कम्यूनिकेशन के खेल में बाकियों से आगे चलते हैं. लेकिन ये बढ़त 2019 की वैतरणी पार करने में कितनी काम आएगी, ये समय के अलावा कोई नहीं बात सकता.
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