ऐसा क्या है, जो दुनिया के एक बड़े पुरुष खिलाड़ी को उस समय की महानतम महिला खिलाड़ी का मखौल उड़ाने का अधिकार देता है? उसके खेल पर सवाल उठाने का हक देता है? या ये हक़ उस पुरुष खिलाड़ी को उसकी बढ़ती उम्र के साथ मिलता है? इस बात के साथ मिलता है कि अब वो 58 साल का है और युवा खिलाड़ियों के बारे में बातें कह सकता है?
नहीं.
ये असल में उसके मन का जहर है. जहर, क्योंकि उसके दिमाग में असुरक्षा का भाव है कि एक औरत, वो भी काली चमड़ी वाली, गर्भवती होते हुए एक ग्रैंड स्लैम कैसे जीत सकती है. वो इतनी ताकतवर कैसे हो सकती है.
अपने जज्बे और जूनून के चलते सेरेना विलिअम्स हर युवा लड़की के लिए एक मिसाल हैं. वो भी दुनिया भर में. एक ही नहीं, बार बार वो अपने अधिकारों के लिए खड़ी हुई हैं. टेनिस की दुनिया में चल रहे पुरुषवाद का खुलकर विरोध किया है. और यूं भी नहीं कि उनका नारीवाद कुछ बयानों में हवा हो गया हो, कागजों में खो गया हो. सेरेना ने लगातार पुरुष और औरत टेनिस प्लेयर को मिलने वाले जीत की धनराशि के बीच भेदभाव के खिलाफ भी खुलकर लड़ाई की है.

मगर कोई औरत जब अपने मन की बात कहती है, उसके आस पास के पुरुष जरा असुरक्षित महसूस करते हैं. जॉन मेकेनरो भी उन्हीं पुरुषों में से एक हैं. जब मेकेनरो सेरेना विलियम्स पर सवाल उठाते हैं, असल में सवाल उनके ऊपर ही उठ रहा होता है. क्योंकि अपनी नई किताब, जो कि उनकी आत्मकथा है, को बेचने के लिए उन्हें सनसनी फैलाने वाला ट्वीट करना पड़ रहा है.
मेकेनरो ये ट्वीट कर जो करना चाहते थे, वो उन्हें मिल चुका है. जो लोग उनका नाम तक नहीं जानते थे, उनके बारे में बात कर रहे हैं, ट्वीट कर रहे हैं. लोग जानते हैं कि उनकी एक किताब आ रही है. मेकेनरो ने कहा कि इस समय महिला टेनिस में पहली रैंक पर खेलने वालीं सेरेना अगर पुरुषों के साथ खेल रही होतीं तो उनकी रैंक 700 होती. फिर भी एक सवाल. जो श्याद लोगों को जायज़ लग रहा हो, कि दुनिया की टॉप महिला टेनिस खिलाड़ी असल में टॉप पुरुष प्लेयर के मुकाबले कैसे खेल पाएंगीं.
सबसे पहली बात तो ये है कि दोनों के बीच तुलना करना ही एक आधारहीन बात है. एथलेटिक्स और खेलों की दुनिया में, पुरुषों को तबसे ट्रेनिंग मिल रही है, जब औरतें इस बारे में सोच भी नहीं सकती थीं. जब उन्होंने खेलना शुरू भी कर दिया, उन्हें कभी सही रिसोर्स और फंडिंग नहीं मिले. इसके बावजूद भी सेरेना आज एक ऐसा नाम हैं, जिन्हें टेनिस का पर्याय माना जाता है. उनके ही पुरुष साथी रॉजर फेडरर, जो पुरुषों में पहली रैंक पर हैं, ने 18 ग्रैंड स्लैम जीते हैं. वहीं सेरेना ने 23 सिंगल्स ग्रैंड स्लैम के अलावा 14 डबल ग्रैंड स्लैम भी जीते हैं.

इसके बावजूद भी मेकेनरो में इतनी हिम्मत है कि वे कहते हैं कि सेरेना अगर किसी पुरुष के खिलाफ खेलें तो हार जाएंगीं. टेनिस का हर एक्सपर्ट भी यही मानता है कि ये तुलना करना ठीक नहीं होगा. मगर उनके कहने में ये विश्वास शामिल रहता है कि पुरुष स्टार प्लेयर सेरेना को हरा देंगे. मेकेनरो कहते हैं कि वो सेरेना को सबसे अच्छी महिला खिलाड़ी कहेंगे, लेकिन दुनिया भर के महानतम टेनिस खिलाड़ियों में वो उन्हें नहीं रखेंगे.
और हां, जिस पुरुष खिलाड़ी की अंतर्राष्ट्रीय रैंक 701 है, दिमित्री तुर्सोनोव, कहते हैं कि वो भी सेरेना से जीत सकते हैं. वो कहते हैं कि सेरेना औरत हैं, साथ में प्रेग्नेंट भी हैं, इसलिए उन्हें हराना आसान है. अपने देश की बात करें तो मेरी कॉम जैसी औरतें दो बच्चे पैदा करने के बाद बॉक्सिंग की तरफ वापस आई हैं. ये बात सच है कि गर्भ के दौरान औरत के शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं. मगर इसी बिनाह पर औरतों को टैलेंट के आधार पर कम आंकना उसी पुरुषवाद को दर्शाता है जिसे औरतें हजारों वर्षों के भुगत रही हैं.
अगर पुरुष और औरत की तुलना करें, तो टेनिस की ट्रेनिंग में भुगता हुआ दर्द उस दर्द के मुकाबले कुछ भी नहीं होता जो औरत बच्चे पैदा करने के समय भोगती है. फिर भी, प्रेगनेंसी को हलके में लेते हुए पुरुष टेनिस खिलाड़ी बड़े आराम से औरतों पर अपनी सत्ता स्थापित करते हैं.
मेकेनरो ने मामले को ठंडा करने के लिए कहा, ‘मेरे कहने का ये मतलब नहीं था की सेरेना एक ख़राब प्लेयर हैं. मैं तो बस ये कह रहा था कि ऐसी कोई स्थिति आए जब सेरेना को किसी पुरुष खिलाड़ी के खिलाफ खेलना पड़े, तो वो जरूर कई पुरुष खिलाड़ियों को हरा देंगी क्योंकि वो दिमागी रूप से इतनी ताकतवर जो हैं.
साफ़ है, अपनी इज्जत बचाने के लिए, जलती आग में पानी डालने के लिए उन्होंने ऐसी बात कह ही दी.
लेकिन सेरेना जो हैं, जो उनकी ताकत है, उन्होंने सिर्फ इतना ट्वीट किया.
I’ve never played anyone ranked “there” nor do I have time. Respect me and my privacy as I’m trying to have a baby. Good day sir
— Serena Williams (@serenawilliams) June 26, 2017
सेरेना जानती हैं कि उन्हें किसी को भी अपने टैलेंट का कोई सबूत देने की कोई जरूरत नहीं है. वो तबतक चौड़ में खेलती रहेंगी, जबतक मेकेनरो जैसे खिलाड़ी शारीरिक भेद के नाम पर औरतों को कमजोर बताते रहेंगे. और हां, सिर्फ अपनी किताब बेचने के लिए इस तरह की बकवास बातें कहते रहेंगे.
ये स्टोरी टीना दास ने लिखी है.