‘इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड’ राजकुमार गुप्ता के डायरेक्शन में बनी पांचवीं फिल्म है. इससे पहले कि उनकी चार में से दो फिल्मों असल घटनाओं से प्रेरित थीं. अर्जुन कपूर स्टारर ये फिल्म भी रियल कहानी पर ही बेस्ड है. और ये कहानी है इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के आतंकवादी संगठन के मुखिया यासीन भटकल को पकड़ने की. 28 अगस्त, 2013 को यासीन को बिहार पुलिस ने इंडिया नेपाल बॉर्डर पर पकड़ा था. लेकिन जिस तरह से पकड़ा था, वो इस फिल्म को देखकर पता चलता है. फिल्म असलियत से कितनी मेल खाती है, ये तो हमें नहीं पता. लेकिन इतना ज़रूर पता चलता है कि जो कुछ भी घटा होगा, इसके काफी करीब रहा होगा. फिल्म की कहानी से लेकर बाकी चीज़ों के बारे में हम नीचे विस्तार से जानेंगे.
फिल्म की कहानी
ये है कि एक मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी है, जिसने इंडिया में कई बम ब्लास्ट्स किए. लेकिन उसके बारे में इंडिया की डिफेंस एजेंसियों के पास कोई जानकारी नहीं है. बिहार का एक ऑफिसर है, जिसके सूत्रों ने इस आतंकवादी का पता लगा लिया है. अब वो उसे पकड़ना चाहता है. नेपाल जाकर. सिक्योरिटी डिपार्टमेंट के लोग दूसरे देश में जाकर ये सब करने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए परमिशन नहीं मिलती है. लेकिन प्रोटोकॉल फॉलो करने में इस ऑफिसर का रिकॉर्ड बुरा है. वो कई बार बिना परमिशन के मिशन पर जा चुका है. वो इस बार भी नौ लोगों की टीम बनाता है और आपस में पैसे जमा करके इस मिशन पर नेपाल जाता है. ये लोग टूरिस्ट बनकर नेपाल में एंट्री लेते हैं. इनके पास कोई हथियार नहीं है. भारत और पाकिस्तान की खुफिया एजेसियों के इस मिशन को रोकने के लाख प्रयासों के बाद भी वो उस आतंकवादी को पकड़कर इंडिया लाते हैं.

एक्टिंग
फिल्म में अर्जुन कपूर के साथ कई नए चेहरे दिखाई देते हैं. उनके चार साथियों के रोल में प्रवीण सिंह सिसोदिया, देवेंद्र मिश्रा, आसिफ खान और प्रशांत नज़र आते हैं. और फिल्म के मेन विलेन यानी इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड टेररिस्ट के रोल में सुदेव नैयर हैं. साथ में जितेंद्र शास्त्री और राजेश शर्मा भी हैं. अर्जुन ने बिहार के एक ऑफिसर का रोल किया, इसलिए उनका एक्सेंट बिहारी रखा गया हैं. और उन्होंने ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ से बेहतर तरीके से इसे पकड़ा है. बिहार वाला टोन आपको फिल्म में मिलेगा. हमारे यहां के डिफेंस ऑफिसर्स को पता नहीं इतना शांत और सीरियस क्यों दिखाया जाता है. चाहे वो नीरज पांडे की फिल्मों में अक्षय कुमार हों या चाहे मेघना गुलज़ार की ‘राज़ी’ में जयदीप अहलावत हों, सबका यही हाल है. हमने अपनी फिल्मों की तरह उन किरदारों को भी स्टीरियोटाइप कर दिया है. हालांकि अर्जुन ने कुछ अलग करने की कोशिश की है. लेकिन वो सिर्फ फिल्म और कॉन्टेंट के मामले में हो पाया है. वो चेंज अर्जुन के काम तक नहीं पहुंच पाता. वो अपनी आंखों को किरदार के साथ नहीं रख पाते. ऐसा लगता है वो ये रोल करने में इंट्रेस्टेड ही नहीं है.

फिल्म सपोर्टिंग एक्टर्स के मामले में अच्छी क्योंकि इस मिशन के बाकी ऑफिसर्स के किरदार एक्टर्स नहीं लगते. वो वाकई वही कैरेक्टर लगते हैं. अपनी अपीयरेंस, बातचीत, बैकस्टोरी से लेकर रिएक्शंस तक में. सुदेव नैयर सिर्फ सुनाई देते हैं, नज़र सिर्फ इक्के-दुक्के सीन्स में आते हैं. लेकिन जितेंद्र शास्त्री को बिचौलिए के रोल में देखना बहुत इंट्रेस्टिंग लगता है. क्योंकि उनके किरदार पर एक शक सा हमेशा रहता है.

फिल्म देखने का अनुभव
ये फिल्म बिलकुल ग्राउंड रियलिटी से शुरू होती है. और अर्जुन कपूर के एंट्री सीन के अलावा आखिर तक वैसी ही बनी रहती है. इसे देखते हुए कहीं भी भारीपन महसूस नहीं होता. लेकिन थोड़ा खिंचा हुआ सा लगने लगता है. आगे क्या होने वाला है, ये पता होने के बावजूद देखने वाले की दिलचस्पी फिल्म में बनी रहती है. इसमें सबसे ज़रूरी रोल निभाती है फिल्म की मक्खन रफ्तार, जिसे अंग्रेजी में स्मूद पेस कहेंगे. फिल्म अपना फोकस पूरी तरह से सब्जेक्ट पर बनाए रहती है. साथ में कोई पैरलल कहानी या सबप्लॉट डालकर इसे भटकाया नहीं गया है. हालांकि इससे थोड़ी निरसता आ जाती है. इसे देखते वक्त आप कुर्सी के कोने पर बैठकर भले नाखुन न चबाएं लेकिन आंखें स्क्रीन पर गड़ाए रखते हैं. फिल्म का एंड बहुत सुंदर है. कहानी जहां से शुरू हुई थी, खत्म होने से पहले वहीं से दोबारा शुरू होती है.
कैमरा, म्यूज़िक और बाकी टेक्निकल विभाग
फिल्म को पटना और नेपाल जैसी जगहों पर शूट किया गया है. नेपाल को फिल्म के नैरेटिव में भी नेपाल बताकर शूट की गई फिल्मों में ‘डॉक्टर स्ट्रेंज’ और ‘दी एक्सपैंडेबल्स 2’ जैसे नाम याद आते हैं. उन फिल्मों में आपको नेपाल का एक खास हिस्सा या टुकड़ा देखने को मिलता है. ‘इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड’ में आपको पूरा नेपाल देखने को मिलता है. पहाड़ से लेकर पानी, जंगल और गलियों तक. फिल्म के दूसरे हाफ में एक सीन है, जहां कैमरा खुलता है एक झरने से और ज़ूम आउट होकर फ्रेम अर्जुन पर सेट हो जाता है. ये बिलकुल ही नैनो सेकंड में होता है, लेकिन अच्छा लगता है. नया लगता है.

राजकुमार की पिछली सभी फिल्मों की तरह इस फिल्म का म्यूज़िक भी अमित त्रिवेदी ने किया है. फिल्म में गानों के लिए कोई स्पेस नहीं है लेकिन दो गाने हैं. एक बॉलीवुड को ट्रिब्यूट और दूसरी नए लिरिक्स के साथ वंदे मातरम. लेकिन फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बहुत बैलेंस्ड है. कई बार बैकग्राउंड म्यूज़िक लाइव स्पॉयलर बन जाते हैं. लेकिन इसमें इससे बचा गया है. लेकिन कई बार वो सीन से मेल नहीं खाती है. सामने कुछ और चल रहा है और म्यूज़िक से कुछ और पता लग रहा है. फिल्म के डायलॉग्स भी सॉर्टेड हैं. जैसे फिल्म के आखिर में अर्जुन कपूर का किरदार कोई भारी बात कहता है. जिसके जवाब में उसे फिल्मी डायलॉग न मारने की सलाह दे दी जाती है.
पीएस:
पिछले कुछ दिनों में इतना मोदी-मोदी हो गया कि जब वो आतंकवादी को पकड़कर ला रहे होते हैं, तब भी आपके दिमाग आएगा तो मोदी ही चलता रहता है. इलेक्शन के चक्कर में प्रोपगैंडा वाली देशभक्ति देखकर थक गए हैं, तो कुछ असल देशभक्त लोगों की कहानी देख सकते हैं. मसाला के शौकीन हैं, तो अवॉयड करिए क्योंकि आपके लायक कुछ नहीं है. अगर ढंग की फिल्मों में दिलचस्पी है, तो जाके देख आइए ठीक-ठाक लगेगी.