चीफ जस्टिस पर जूते फेंकने वाले वकील पर बेंगलुरु में हुई 'जीरो एफआईआर'; लेकिन ये होता क्या है?
Bengaluru में Advocate Rakesh Kishore पर BNS की धारा 132 और 133 के तहत Zero FIR दर्ज की गई है. ये एफआईआर 'All India Advocates Association, Bengaluru' की ओर से दर्ज कराई गई है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई (CJI BR Gavai) पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर (Advocate Rakesh Kishore) पर बेंगलुरु में एफआईआर (FIR) दर्ज की गई है. इस FIR को बेंगलुरु सिटी के विधान सौध (विधानसभा) थाने में, 'जीरो एफआईआर' (Zero FIR) के रूप में दर्ज किया गया है.
वकील राकेश किशोर पर दो धाराओं में केस दर्जलाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 132 और 133 के तहत यह एफआईआर दर्ज की गई है. धारा 132 तब लगती है जब कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक (जैसे पुलिस अधिकारी या सरकारी कर्मचारी) पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करता है. ये हमला तब हुआ जब वह व्यक्ति अपने सरकारी कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा हो. और हमला उसे ऐसा करने से रोकने के इरादे से ऐसा किया गया हो. इस आरोप के सिद्ध होने पर दो साल की जेल या जुर्माना, या दोनों एक साथ हो सकते हैं.
वहीं धारा 133 तब लगती है जब कोई किसी व्यक्ति पर गंभीर और अचानक उकसावे के अलावा उस व्यक्ति का अपमान करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करता है. इस मामले में भी दो साल की जेल, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं. ये एफआईआर 'ऑल इंडिया एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु' की ओर से दर्ज कराई गई है. उन्होंने कहा कि वकील राकेश किशोर की इस हरकत से कानून और न्यायपालिका का अपमान हुआ है. अब यहां एक शब्द सुनने में आया 'जीरो एफआईआर'. क्या होता है ये, इसे भी समझ लेते हैं.
जीरो एफआईआर - दिल्ली का मामला, बेंगलुरु में FIRजीरो एफआईआर का प्रावधान इसलिए लाया गया, ताकि पीड़ित अपने खिलाफ हुए जुर्म को अपने सबसे नजदीकी थाने में रिपोर्ट कर सके. ऐसे में पुलिस को जल्द से जल्द आरोपी को हिरासत में लेने या गिरफ्तार करने की पावर मिलती है. उदाहरण के लिए देखें तो वकील राकेश किशोर ने सीजेआई पर दिल्ली में जूता फेंकने की कोशिश की थी. लेकिन उन पर एफआईआर बेंगलुरु में हुई. अब बेंगलुरु के थाने से एफआईआर को दिल्ली के उस थाने में भेजा जाएगा, जिसके क्षेत्र में ये घटना हुई है.
इस प्रावधान का उद्देश्य गंभीर अपराधों के पीड़ितों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को, एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन भेजे बिना, जल्दी और सुविधापूर्वक शिकायत दर्ज कराने में मदद करना है. इसका उद्देश्य यह भी सुनिश्चित करना है कि शिकायत दर्ज करने में देरी के कारण सबूत और गवाह नष्ट न हों या उनके साथ छेड़छाड़ न हो. जीरो एफआईआर दर्ज करने के बाद इसे उस संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहां अपराध हुआ है या जहां मामले की जांच की जानी है.
कबसे शुरू हुई जीरो एफआईआर?दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप केस ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. इसके बाद केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने जस्टिस जे एस वर्मा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने महिला सुरक्षा को लेकर कई सुझाव दिए थे जिसमें से एक सुझाव था 'जीरो एफआईआर'. गृह मंत्रालय ने मई 2013 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस प्रावधान को लागू करने के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी. इसके तहत किसी भी पुलिस स्टेशन पर एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी गई. चाहे अपराध का क्षेत्र कुछ भी हो, ताकि पीड़ितों के लिए तुरंत कार्रवाई और निवारण सुनिश्चित किया जा सके.
एडवोकेट राकेश किशोर की 'बार एसोसिएशन' मेंबरशिप खत्म?सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने 9 अक्टूबर को वकील राकेश किशोर की टेंपरोरी सदस्यता समाप्त कर दी है. एसोसिएशन ने सीजेआई पर जूता फेंकने की कोशिश के उनके कृत्य को 'गंभीर कदाचार' कहा है. इससे पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने वकील राकेश किशोर को वकालत से निलंबित करने का आदेश दिया था. बीसीआई ने उन्हें भारत की किसी भी अदालत, ट्रिब्यूनल या अथॉरिटी में पेश होने, पैरवी करने या वकालत करने से रोक दिया था. हालांकि वकील किशोर ने कहा था कि उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है.
राकेश किशोर को एक कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया. इसमें उनसे यह बताने के लिए कहा गया था कि उनपर कार्रवाई जारी क्यों न रखी जाए? क्योंकि बीसीआई ने कहा था कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाएगी. बार एसोसिएशन ने इस मामले पर एक बयान देते हुए कहा था कि ऐसा निंदनीय, अव्यवस्थित और असंयमित व्यवहार न्यायालय के एक अधिकारी के लिए पूरी तरह से अनुचित है. साथ ही ये भारत के सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा का गंभीर उल्लंघन है.
वीडियो: CJI गवई पर हमला करने वाले वकील राकेश किशोर ने क्या बताया?