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"डिजिटल कंटेंट के लिए सख्त गाइडलाइन बनाए सरकार" CJI सूर्यकांत ने क्यों कहा-सेल्फ‑रेगुलेशन काफी नहीं

CJI Suryakant की बेंच पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया सहित अन्यों की उन पिटीशन पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें “इंडियाज गॉट लेटेंट” शो में अश्लील कंटेंट से जुड़ी FIR को चुनौती दी गई थी. Supreme Court ने सरकार को सुझाव दिया कि सरकार गाइडलाइंस का ड्राफ्ट पब्लिश करे और पब्लिक कमेंट्स बुलाए.

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SC
सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)
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रिदम कुमार
28 नवंबर 2025 (Published: 08:55 AM IST)
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समय रैना के शो “इंडियाज गॉट लेटेंट” विवाद के बाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मौजूद अश्लील कंटेंट को लेकर देशभर में चर्चा शुरू हुई थी. इस तरह के कंटेंट को रेगुलेट करने बातें भी कही जा रही थीं. अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी भी सामने आई थी. देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार 27 नवंबर को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फैल रहे अभद्र, आपत्तिजनक और गैरकानूनी कंटेंट पर चिंता जताई है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय से यूजर-जनरेटेड कंटेंट (UGC) को रेगुलेट करने के लिए गाइडलाइंस पर काम करने को कहा है. कोर्ट ने इस तरह का कंटेंट बनाने वालों के लिए मौजूद सेल्फ-रेगुलेशन व्यवस्था नाकाफी है. कोर्ट ने कहा कि इनके रेगुलेशन के लिए एक “न्यूट्रल, इंडिपेंडेंट और ऑटोनॉमस” संस्था बनाई जानी चाहिए. 

इंडियाज गॉट लेटेंट कनेक्शन

चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया सहित अन्यों की उन पिटीशन पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें “इंडियाज गॉट लेटेंट” शो में अश्लील कंटेंट से जुड़ी FIR को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि इन गाइडलाइंस की जरूरत इसलिए है ताकि मासूम लोगों को अश्लील, गलत, एंटी-नेशनल या पर्सनली नुकसान पहुंचाने वाले ऑनलाइन कंटेंट से बचाया जा सके.

केंद्र के वकील ने क्या कहा

वहीं सुनवाई के दौरान SG ने कहा कि यह मुद्दा सिर्फ अश्लीलता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यूजर जेनरेटेड कंटेंट (UGC) में दुराग्रह भी है. इसे लोग अपने यूट्यूब चैनल या दूसरे प्लेटफॉर्म पर पब्लिश करते हैं. इस पर CJI कांत ने हैरानी जताते हुए कहा, 

“ऐसे कंटेंट क्रिएटर्स पर कोई रेगुलेशन नहीं है! तो मैं अपना चैनल खुद बनाता हूं, मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हूं. किसी को तो जवाबदेह होना ही होगा.”

सेल्फ-रेगुलेटरी सिस्टम क्या है

वहीं, सुनवाई के दौरान OTT प्लेटफॉर्म की एसोसिएशन के वकील ने कोर्ट को बताया कि OTT प्लेटफॉर्म अपनी मर्जी से डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड का पालन कर रहे थे. कंटेंट के नेचर को लेबल करके और उम्र के हिसाब से क्लासिफिकेशन दिया जा रहा था. इसके अलावा, अगर कोई शिकायत आती भी है तो उससे निपटने के लिए रिटायर्ड जज की एक बॉडी भी है.

जजों ने क्या कहा

लेकिन CJI कांत ने सेल्फ-रेगुलेटरी सिस्टम पर अपनी आपत्ति जताई. जस्टिस कांत ने कहा, 

“अगर सेल्फ-रेगुलेशन सिस्टम इतना असरदार था तो उल्लंघन के मामले बार-बार क्यों हो रहे थे? खुद को बनाने वाली बॉडीज मदद नहीं करेंगी. कुछ न्यूट्रल ऑटोनॉमस बॉडीज जो उन लोगों के असर से आजाद हों जो इसका फायदा उठाते हैं और रेगुलेटरी उपाय के तौर पर राज्य की भी जरूरत है.” 

जस्टिस बागची ने कहा, 

“जहां कंटेंट को एंटी-नेशनल या समाज के नियमों को तोड़ने वाला माना जाता है तो क्या बनाने वाला इसकी जिम्मेदारी लेगा? क्या सेल्फ-रेगुलेशन काफी होगा? हम जिस मुश्किल का सामना कर रहे हैं, वह है रिस्पॉन्स टाइम. एक बार जब गंदा मटीरियल अपलोड हो जाता है तो जब तक अधिकारी रिएक्ट करते हैं, तब तक वह लाखों दर्शकों तक वायरल हो चुका होता है, तो आप इसे कैसे कंट्रोल करते हैं?”

अगली सुनवाई कब

CJI ने यह भी कहा कि शो में दी जाने वाली वॉर्निंग और डिस्क्लेमर असरदार नहीं हैं और कहा कि उम्र वेरिफिकेशन के तरीके होने चाहिए. बेंच ने सुझाव दिया कि सरकार गाइडलाइंस का ड्राफ्ट पब्लिश करे और पब्लिक कमेंट्स बुलाए. फिर इस मुद्दे पर स्टडी करने के लिए डोमेन एक्सपर्ट्स और ज्यूडिशियल बैकग्राउंड वाले लोगों के साथ एक एक्सपर्ट कमेटी बनाए. अब इस मामले में एक महीने बाद सुनवाई होगी. 

OTT के कॉन्टेंट पर कब-कब उठे सवाल?

पिछले कुछ वर्षों में भारत के ओटीटी प्लेटफार्मों पर कई ऐसे शो विवादों में रहे जिनमें अश्लीलता, गाली-गलौज और आपत्तिजनक सामग्री शामिल थी. उदाहरण के लिए Ullu और ALTT जैसी वेब‑सीरीज़ में नग्नता और यौन दृश्य दिखाने के आरोप लगे, जिन्हें कहानी या नैरेटिव बैकग्राउंड के बिना पेश किया गया था. House Arrest और कुछ बोल्ड शॉर्ट‑फिल्में इस सूची में शामिल रहीं और इनकी वजह से कई ऐप्स पर सरकार ने कार्रवाई की. वहीं “India’s Got Latent” शो में Ranveer Allahbadia और Samay Raina से जुड़े गालियां और आपत्तिजनक कमेंट्स विवादित हुए, जिसके चलते वीडियो हटाने पड़े और पुलिस व महिलाओं के अधिकार संगठनों ने संज्ञान लिया. इन घटनाओं ने साफ किया कि ओटीटी कंटेंट पर निगरानी और उम्र-सीमा जैसी नियमावली का पालन जरूरी है, वरना सामाजिक और कानूनी विवाद पैदा हो सकते हैं.

 

वीडियो: समय रैना के केस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

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