"घुसपैठिए को सिर्फ आधार देखकर नागरिक बना देंगे?" SIR पर सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल
West Bengal, Kerala और Tamil Nadu जैसे राज्यों की ओर से SIR की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए Supreme Court में याचिका दाखिल की गई है. इस पर सुनवाई करते हुए CJI Surya Kant और जस्टिस जे बागची की बेंच ने कई अहम सवाल उठाए.
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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या किसी घुसपैठिए को केवल इसलिए वोट देने का अधिकार दिया जा सकता है, क्योंकि उसके पास आधार कार्ड है. कोर्ट ने SIR पर चल रही बहस के बीच कहा कि आधार कार्ड एक वैलिड कानून है और उसके आधार पर किसी को सरकारी सुविधाएं दी जा सकती हैं. आखिर, आधार कार्ड एक खास मकसद और एक खास कानून के लिए बनाया जाता है, इस पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन क्या इसे वोट देने का आधार माना जा सकता है.
CJI सूर्य कांत और जस्टिस जे बागची की बेंच ने 26 नवंबर को SIR की संवैधानिक वैधता की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. याचिका पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडू जैसे राज्यों की ओर से दाखिल की गई है. बुधवार, 26 नवंबर को मामले की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल और केरल राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए. उन्होंने आधार कार्ड होने के बावजूद लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर रखने का मुद्दा उठाया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस पर CJI सूर्य कांत ने कहा,
प्रोसेस तय होना चाहिए: सिब्बलमान लीजिए कि कुछ लोग दूसरे देश से, पड़ोसी देशों से भारत में घुस आए हैं. वे भारत में काम कर रहे हैं. भारत में रह रहे हैं. कोई गरीब रिक्शा चलाने वाला है. कोई कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूर है. आप उसे आधार कार्ड देते हैं, ताकि वह सब्सिडी वाले राशन या किसी भी योजना का फायदा उठा सके. यह हमारे संवैधानिक मूल्यों का हिस्सा है. यह हमारी संवैधानिक नैतिकता है. लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि क्योंकि उसे यह फायदा दिया गया है, तो अब उसे वोटर भी बना देना चाहिए?
जवाब में सिब्बल ने कहा कि मैं एक नागरिक हूं. मैं यहां रहता हूं. मेरे पास एक आधार कार्ड है. वह मेरा घर है. आप इसे छीनना चाहते हैं, तो एक प्रोसेस के ज़रिए छीनें. और वह प्रोसेस आपके सामने तय होना चाहिए. इस पर CJI ने बिहार SIR का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि बिहार में बहुत कम आपत्तियां आई थीं. उन्होंने कहा,
अगर ऐसे उदाहरण हैं, जहां कोई व्यक्ति असली निवासी है, भारत का नागरिक है. अगर उसे बाहर रखा गया है, तो हम बेसब्री से उन उदाहरणों की तलाश कर रहे हैं. ताकि हम प्रोसेस की गलती को ठीक कर सकें.
सिब्बल ने कहा कि अगर कोई वोटर वोटिंग के दिन पोलिंग बूथ पर जाए और उसे पता चले कि उसका नाम वहां नहीं है, तो वह क्या करेगा. CJI ने कहा कि इस पर जहां तक बिहार का सवाल है, मीडिया हर दिन रिपोर्टिंग कर रहा था. इससे दूर-दराज के इलाकों में बैठे लोगों को भी पता होगा कि क्या हो रहा है. कभी-कभी मीडिया को भी क्रेडिट देना चाहिए. बिहार के लिए SIR पर हर दिन मीडिया रिपोर्ट्स आती थीं. अगर दूर-दराज के इलाके में बैठे किसी भी व्यक्ति को पता है कि कुछ हो रहा है, एक लिस्ट तैयार हो रही है, एक नई वोटर लिस्ट आ रही है, तो क्या कोई कह सकता है कि मुझे पता नहीं था कि क्या हुआ.
जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि उनका यह कहना नहीं है कि चुनाव आयोग के पास कोई शक्ति नहीं है. उन्होंने कहा,
मैं सिर्फ प्रक्रिया की बात कर रहा हूं, जो सबको साथ लेकर चलने वाली होनी चाहिए. किसी बात को साबित करने के लिए वोटर पर कुछ करने का बोझ डालने की कोई भी कोशिश हमारे संवैधानिक संस्कृति के खिलाफ है. अब डुप्लीकेट वोटर्स का पता लगाने और उन्हें हटाने के लिए सॉफ्टवेयर है. बूथ लेवल ऑफिसर्स को वोटर्स को हटाने के लिए इतनी पावर देने की कोई ज़रूरत नहीं है.
इस पर जवाब देते हुए जस्टिस बागची ने कहा कि सॉफ्टवेयर सिर्फ डुप्लीकेट वोटर्स को हटा सकता है, मरे हुए वोटर्स को नहीं. यह समझाते हुए कि मरे हुए वोटर्स को हटाने की जरूरत क्यों है. उन्होंने कहा,
यह सब राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करता है. अगर एक राजनीतिक पार्टी ज्यादा मज़बूत है तो वह सभी मरे हुए वोटर्स को अपने हिस्से में ले लेती है. हम हवा में जज नहीं करते. इसीलिए मरे हुए वोटर्स को हटाने की जरूरत है.
वहीं जस्टिस बागची ने BLOs के सर्वे में गलतियों के मुद्दे पर कहा,
ऐसा नहीं है कि सर्वे हमेशा 100% सही होता है. इसीलिए अंतरिम मतदाता सूची जारी की जाती है. जब भी उस ड्राफ्ट रोल में कोई गलती होती है, किसी को गलत तरीके से मरा हुआ दिखाया गया है, तो हमने कहा कि यही वजह है कि मरे हुए और शिफ्ट किए गए लोगों की लिस्ट न केवल वेबसाइटों पर, बल्कि पंचायतों और दूसरी जगहों पर भी अपलोड की जाती है.
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बढ़ा सकते हैं डेडलाइन: SCइस बीच, कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि जरूरत पड़ने पर वह अंतरिम मतदाता सूची की डेडलाइन बढ़ाने का निर्देश भी दे सकते हैं. बता दें कि SIR के दूसरे फेज़ के शेड्यूल के अनुसार, गिनती के फॉर्म 4 दिसंबर तक जमा करने होंगे. वहीं ड्राफ्ट रोल 9 दिसंबर को पब्लिश किए जाएंगे. इसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा. वहीं तमिलनाडु की सुनवाई 4 दिसंबर और पश्चिम बंगाल मामले की सुनवाई 9 दिसंबर को तय की. कोर्ट ने चुनाव आयोग से केरल में चल रही SIR एक्सरसाइज को चुनौती देने वाली पिटीशन का जवाब देने को भी कहा. वहीं कपिल सिब्बल ने कोर्ट से अपील की कि तय चुनावों की वजह से केरल की याचिकाओं पर प्राथमिकता से सुनवाई की जाए. इस पर सहमत होते हुए, बेंच ने केरल मामले को 2 दिसंबर के लिए लिस्ट कर दिया.
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