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'...इस बेंच से बचने की कोशिश कर रही केंद्र सरकार', CJI गवई ने ऐसा क्यों कहा?

Supreme Court की नाराजगी देखकर केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणी ने साफ किया कि सरकार कार्यवाही में देरी नहीं करना चाहती है. उन्होंने कोर्ट से कहा कि सरकार की अर्जी को गलत ना समझा जाए.

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केंद्र सरकार से नाराज हुए CJI बीआर गवई. (File Photo: ITG)
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मौ. जिशान
5 नवंबर 2025 (Published: 06:56 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट में अक्सर लोग बड़ी बेंच के पास मामला भेजने की मांग करते हैं. सोमवार, 3 नवंबर को केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट से एक मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की अपील की. लेकिन यह मांग बिल्कुल आखिरी समय में कई गई, क्योंकि भारत के चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई की बेंच इस मामले के याचिकाकर्ताओं की सभी दलीलें सुन चुकी थी. ऐसे में बड़ी बेंच की दरख्वास्त देख CJI गवई नाराज हो गए. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है केंद्र सरकार इस बेंच से ‘बचने के लिए हथकंडे’ अपना रही है.

दरअसल, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रेशनलाइजेशन एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) एक्ट, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को एक बड़ी पीठ को भेजने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस मांग की कड़ी आलोचना की है.

लॉ ट्रेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, CJI बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने केंद्र की मांग पर कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि सरकार इस स्तर पर ऐसा अनुरोध करेगी. क्योंकि कोर्ट ने पहले ही मद्रास बार एसोसिएशन समेत याचिकाकर्ताओं की आखिरी दलीलें पूरी कर ली थीं.

CJI गवई ने साफ तौर पर नाराजगी जताते हुए कहा,

"पिछली तारीख पर आपने (अटॉर्नी जनरल) ये आपत्तियां नहीं उठाईं और व्यक्तिगत आधार पर सुनवाई आगे बढ़ाने की मांग की. आप मेरिट के आधार पर पूरी सुनवाई के बाद ये आपत्तियां नहीं उठा सकते... हमें उम्मीद नहीं है कि केंद्र इस तरह के हथकंडे अपनाएगा."

पीठ ने यह भी कहा कि यह कदम इस बेंच से ‘बचने की कोशिश’ लग रहा है, खासकर तब जब चीफ जस्टिस बीआर गवई 23 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं.

कोर्ट की नाराजगी देखकर केंद्र की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणी ने साफ किया कि सरकार कार्यवाही में देरी नहीं करना चाहती है. उन्होंने आगे कहा कि शुरुआती आपत्ति का जिक्र उसके पिछले जवाब में पहले ही कर दिया गया था. उन्होंने अदालत से गुजारिश की कि वो (केस बड़ी बेंच के पास भेजने की) अर्जी के इरादे को ‘गलत ना समझे’.

हालांकि, चीफ जस्टिस बीआर गवई ने चेतावनी देते हुए कहा,

"अगर हम इस अर्जी को खारिज करते हैं, तो हम मानेंगे कि केंद्र इस बेंच से बचने की कोशिश कर रहा है. मेरिट के आधार पर एक पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अब हम इस पर (सरकार की अपील) सुनवाई नहीं करेंगे."

जस्टिस चंद्रन ने भी इस मुद्दे को देर से उठाने के लिए सरकार की खिंचाई की. उन्होंने कहा,

"कम से कम किसी स्तर पर आपको यह मुद्दा उठाना चाहिए था... वो भी इसके लिए एक अर्जी? आपने सुनवाई इसलिए आगे बढ़वाई, क्योंकि आप आकर बहस करना चाहते थे."

CJI गवई ने अटॉर्नी जनरल से कहा,

"कृपया (सीनियर वकील) अरविंद दातार की पेश दलीलों का जवाब देने तक ही सीमित रहें. अगर बहस के दौरान हमें लगता है कि किसी बड़ी बेंच को मामला भेजने की जरूरत है, तो हम ऐसा करेंगे - लेकिन हम आपके आधी रात की अर्जी के कहने पर ऐसा नहीं करेंगे."

अपनी अंतिम दलीलें शुरू करते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने विचार-विमर्श के बाद ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 लागू किया है. उन्होंने अदालत से कहा कि इस कानून को काम करने का मौका दिया जाए. अटॉर्नी जनरल ने कहा, "कोर्ट को इस कानून को रद्द नहीं करना चाहिए.”

उनके अनुसार, यह कानून ट्रिब्यूनल्स में नियुक्तियों की प्रक्रिया को बेहतर और तेज बनाने के लिए लाया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘वेटिंग लिस्ट से सिलेक्शन के लिए काबिलियत की बलि नहीं दी जा सकती.’ सरकार का तर्क था कि यह कानून लंबे समय की तैयारी के बाद बना है, इसलिए इसे ठीक से काम करने का समय दिया जाना चाहिए, ना कि तुरंत इसे कोर्ट से रद्द किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर से इस कानून की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी. इन धाराओं के तहत कुछ अपीलीय ट्रिब्यूनल, जैसे फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलीय ट्रिब्यूनल को खत्म कर दिया गया और ट्रिब्यूनल सदस्यों की सेवा शर्तों में बदलाव किया गया.

याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर वकील अरविंद दातार ने बताया कि जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने पुराने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स ऑर्डिनेंस, 2021 की कुछ धाराओं को खारिज किया था, क्योंकि वे न्यायिक स्वतंत्रता के खिलाफ थीं. आरोप है कि इसके बावजूद सरकार ने अगस्त 2021 में लगभग वही प्रावधान फिर से नए कानून में शामिल कर दिए.

पहले कोर्ट ने कहा था कि ट्रिब्यूनल सदस्यों का कार्यकाल केवल चार साल रखना और कम से कम उम्र 50 साल तय करना न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है. शीर्ष अदालत ने तय किया था कि कार्यकाल कम से कम पांच साल का होना चाहिए, अध्यक्ष की ज्यादा से ज्यादा उम्र 70 साल और सदस्य की ज्यादा से ज्यादा उम्र 67 साल होनी चाहिए. इसके अलावा कोर्ट ने कम से कम 10 साल के वकालत एक्सपीरियंस को पात्रता के लिए पर्याप्त माना था. 

अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 7 नवंबर को करेगा.

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