पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में क्यों भड़का है आंदोलन, UN तक पहुंची मदद की गुहार
पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (POJK) में सरकार विरोधी प्रदर्शन चल रहे हैं. 4 दिन से चल रहा आंदोलन हिंसक भी हो गया है. अब तक 15 लोगों के मौत की खबर है.

“ये हुकूमत डायन बन चुकी है. डायन अपने बच्चों को खाती है. ये रियासत जो है इस वक्त अपने बच्चों को, अवाम को मारने पर तुली भी है. लिहाजा ये मारेगी भी और उसकी आवाज कहीं बाहर न जाए, इसलिए मीडिया भी बंद कर रखा है.” पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जॉइंट अवामी एक्शन कमिटी (JKJAC) के एक नेता शौकत नवाज मीर आंदोलनकारियों की भीड़ के बीच खड़े होकर ये बातें कही हैं.
उनका ये बयान तब आया, जब पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ POJK में कई दिन से चल रहे आंदोलन में 15 लोग मारे जा चुके थे. इनमें 3 पुलिस वाले भी शामिल हैं. इस उग्र विरोध प्रदर्शन के बाद से सरकार ने इस इलाके में इंटरनेट और मीडिया बैन कर रखा है.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में कहा गया कि POJK में पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ ऐसे सुर और ऐसा तेवर पहले कभी नहीं देखा गया था. दशकों बाद POJK में नारेबाजी सीधे तौर पर पाकिस्तानी हुकूमत और सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बना रही है.
मीडिया और इंटरनेट बैन के बीच हुक्मरानों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए जॉइंट अवामी एक्शन कमिटी (JKJAC) के कई आंदोलकारी 2 अक्टूबर 2025 को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद भी पहुंच गए. वो यहां नेशनल प्रेस क्लब के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे. तभी अचानक प्रेस क्लब में इस्लामाबाद पुलिस की एंट्री हुई. क्लब में घुसते ही पुलिस के जवान लोगों पर लाठियां बरसाने लगे. क्या प्रदर्शनकारी और क्या पत्रकार. प्रेस क्लब के स्टाफ तक को पुलिस ने जमकर पीटा. मामला सिर्फ पिटाई तक सीमित नहीं था. पुलिस ने प्रेस क्लब के कैफेटेरिया को भी तहस-नहस कर दिया और लोगों के कैमरे-मोबाइल फोन तक तोड़ डाले.
UN में पाकिस्तान की शिकायत‘जुल्म की इंतेहा’ हो गई तो बात पाकिस्तान से निकलकर जिनेवा तक पहुंच गई. यहां संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की मीटिंग चल रही थी, जिसमें POJK की एक पार्टी ‘यूनाइटेड कश्मीर पीपुल नेशनल पार्टी’ (UKPNP) के प्रवक्ता सरदार नासिर अजीज खान ने पाकिस्तान और उसके कथित 'आजाद कश्मीर' की पोल खोल दी. आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, प्रेस क्लब की इस घटना के बारे में बोलते हुए अजीज ने कहा,
पाकिस्तान का कश्मीर में कोई अधिकार नहीं है. उन्हें कश्मीरियों को मारने, हमारी जमीन और हमारे संसाधनों पर कब्जा करने, हमारे लोगों पर अत्याचार करने और उन्हें खत्म करने का कोई हक नहीं है.
अजीज दावा करते हैं कि बीते दिनों पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से कई लोग गायब हो गए. कश्मीर के लोग अपनी जान को लेकर टेंशन में हैं क्योंकि 29 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक यहां 12 लोगों की मौत हो चुकी है. अजीज खान आगे ये भी कहते हैं कि पाकिस्तान में कश्मीरियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जा रहा है. इस अंतरराष्ट्रीय जमावड़े में वह दुनिया के लोगों से कहना चाहते हैं कि वो उन कश्मीर के लोगों की जान बचाने के लिए हस्तक्षेप करें, जो पाकिस्तान के कब्जे में रह रहे हैं.
कई दिनों से चल रहा प्रदर्शनअजीज खान की ये चिंता ऐसे ही नहीं है. पाकिस्तान अपने कब्जे के जिस हिस्से को ‘आजाद कश्मीर’ कहता है, वहां बीते इस साल के सितंबर के आखिरी दिनों से चल रहे सरकार विरोध प्रदर्शनों ने हुक्मरानों की नींदें उड़ा रखी हैं. ‘शटर डाउन’ और ‘व्हील जाम’ जैसे प्रदर्शनों में POJK के हजारों लोग शामिल हो रहे हैं. रावलकोट, मीरपुर, कोटली, नीलम घाटी. POJK के हर इलाके की गली-गली में जुलूस पर जुलूस निकल रहे हैं. लोग सड़कों पर पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं.
इसके जवाब में पाकिस्तानी हुकूमत ने प्रदर्शन से प्रभावित इलाकों को छावनियों में बदल दिया है. पाकिस्तान के बाकी हिस्सों से अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस की टुकड़ियों को पीओके भेजा गया है, जहां उनकी प्रदर्शनकारियों से झड़प भी हुई. अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, 4 दिन के प्रोटेस्ट में 15 लोग मारे गए, जिनमें 3 पुलिसकर्मी भी हैं.
हालात बिगड़ने के बाद गुरुवार, 2 अक्टूबर को शहबाज शरीफ सरकार ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए एक कमेटी मुजफ्फराबाद भेजी. मुजफ्फराबाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी है, जिसे वह ‘आजाद कश्मीर’ कहता है. सरकार की ये कमेटी जम्मू-कश्मीर जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी (JAAC) से बातचीत करेगी.
JAAC 'आजाद कश्मीर' के कारोबारियों और सिविल सोसाइटी समूहों का साझा मोर्चा है और हाल के दिनों में क्षेत्र की आम जनता की नाराजगी की आवाज बनकर सामने आया है. एक्टिविस्ट शौकत नवाज मीर की अगुवाई में JAAC ने 29 सितंबर से ‘बंद’ बुलाया था. इस बंद ने पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर के कई जिलों में जिंदगी पूरी तरह ठप कर दी.
इसी बीच सरकार ने 28 सितंबर से इलाके में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट बंद कर पूरे इलाके में संचार पर पाबंदी लगा दी.
अब मुजफ्फराबाद में बाजार बंद हो गए. रेहड़ी-पटरी वाले और पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी सड़कों से गायब हैं. इस वजह से लगभग 40 लाख लोगों का जीवन अस्थिरता की हालत में हैं. इससे लोगों में गुस्से का क्या आलम है? ये शौकत नवाज मीर के इस बयान से समझा जा सकता है, जो ‘खित्ते की आजादी’ पर सवाल उठाते हुए कहते हैं,
प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?इसे तुम (पाकिस्तान की सरकार) ‘सो-कॉल्ड’ आजाद कश्मीर कहते हो लेकिन ये आजाद नहीं है. तुमने इसको पाबंद करके रखा हुआ है. लोगों की तमाम आवाजों को बंद रखा है और तुम ढोंग रचा रहे हो कि ये खित्ता हमने आजाद करके रखा है.
दरअसल, पाक अधिकृत कश्मीर में JAAC का हालिया प्रदर्शन पिछले 2 सालों में तीसरी बड़ी जनमोबिलाइजेशन है. संगठन के नेताओं का कहना है कि यह विरोध इसलिए शुरू हुआ क्योंकि सरकार उनकी 38 मांगों पर सहमत नहीं हुई. मौजूदा हालात पिछले 2 साल से चल रहे टकराव की नई सीरीज हैं.
मौजूदा प्रदर्शन की शुरुआत मई 2023 में हुई, जब लोगों ने महंगे बिजली बिलों के खिलाफ सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया. इसी दौरान आटा तस्करी और सब्सिडी वाले गेहूं की भारी कमी की शिकायतें भी सामने आईं.
अगस्त 2023 तक ये अलग-अलग नाराजगी एक होकर संगठित विरोध में बदल गईं. सितंबर में सैकड़ों लोग राजधानी मुजफ्फराबाद में इकट्ठा हुए और सभी जिलों के प्रतिनिधियों को साथ में लेकर ‘जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी’ यानी JAAC की औपचारिक तौर पर स्थापना की.
मई 2024 में आंदोलन का पहला बड़ा मोड़ आया, जब प्रदर्शनकारियों ने मुजफ्फराबाद की ओर लंबा मार्च शुरू किया. इस दौरान प्रशासन के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़पें हुईं, जिनमें कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई. इसमें एक पुलिसकर्मी भी शामिल था. हिंसक हो या प्रदर्शन तभी रुका जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने प्रदर्शनकारियों की कुछ अहम मांगें मान लीं. सरकार ने तुरंत आटे की कीमतें घटाने और बिजली का बिल कम करने का ऐलान किया और इसके लिए अरबों रुपये की सब्सिडी भी दी.
लेकिन शांति ज्यादा दिन टिक नहीं पाई. अगस्त 2025 में JAAC ने दोबारा ‘बंद’ बुलाने का ऐलान कर दिया. इस बार सिर्फ आर्थिक समस्याएं विरोध का कारण नहीं थीं. बल्कि कई और मुद्दों को भी इसमें जोड़ा गया.
सबसे अहम जो मुद्दा है वो पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में जनता के नुमाइंदों की आलीशान जीवनशैली के विरोध के जरिए नेपाल के जेन-जी प्रोटेस्ट से जुड़ता दिखता है.
प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या हैं?JAAC के पहले के प्रदर्शनों में सिर्फ बिजली और आटे का मुद्दा था. जो अब बढ़कर 38 बिंदुओं तक पहुंच गया है. इनमें फ्री एजुकेशन, मेडिकल फेसिलिटी, विकास परियोजनाएं और शासन की संरचना में बदलाव करने तक की बातें शामिल हैं.
प्रदर्शनकारियों का जोर जिन मुद्दों पर ज्यादा है, उनमें से एक है- सत्ताधारी अभिजात वर्गों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती करना.
दरअसल, POJK में मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को सरकारी गाड़ी, निजी स्टाफ और बॉडीगार्ड, सरकारी कामकाज के नाम पर गाड़ियों के लिए अनलिमिटेड फ्यूल जैसी सुविधाएं मिलती हैं. जनता पहले भी इन सुविधाओं को कम करने की मांग करती रही है. लेकिन इस बार यह मांग ज्यादा तीव्र गुस्से के साथ सामने आ रही है.
प्रदर्शनकारियों की एक और बड़ी मांग है, जो पहली बार इस सूची में शामिल की गई है. ये मांग है, विधानसभा में शरणार्थियों के लिए रखी गई 12 आरक्षित सीटों को खत्म करना.
दरअसल, साल 1947 के बंटवारे के बाद भारी संख्या में लोग कश्मीर से POJK चले गए थे. इन शरणार्थियों को वहां की विधानसभा में आरक्षण मिला है. 12 सीटें उनके लिए आरक्षित रखी गई हैं. JAAC का आरोप है कि शरणार्थियों और उनके बच्चों ने यहां अब एक मजबूत राजनीतिक गुट बना लिया है, जो डेवलपमेंट फंड्स पर पूरी तरह से कब्जा जमाए हुए हैं. ऐसे में उन्हें मिलने वाला आरक्षण खत्म किया जाए.
इसके अलावा मांगों में ये भी है कि 2023 और 2024 के आंदोलनों के दौरान कार्यकर्ताओं पर जो केस दर्ज किए गए थे, वो सब वापस लिए जाएं.
टैक्स छूट और रोजगार की मांग भी इस लिस्ट में शामिल हैं.
इसके अलावा पीओजेके के लोगों ने अपने इलाकों को पाकिस्तान के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले पुल, सुरंग और रोड प्रोजेक्ट्स की भी डिमांड की है. वह अपने क्षेत्र में एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी चाहते हैं.
सरकार क्या कह रही है?इन मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन के हिंसक हो जाने के बाद शहबाज शरीफ सरकार ने एक कमिटी पीओजेके भेजी है. इसे खासतौर पर प्रदर्शनकारियों की शिकायों का समाधान करने का काम दिया गया है. पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के वित्त मंत्री अब्दुल मजीद खान ने अलजजीरा को बताया है कि सरकार ने 38 में से ज्यादातर मांगों को मान लिया है. सिर्फ दो मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है. एक तो शरणार्थियों की आरक्षित सीटें खत्म करना और दूसरा मंत्रियों और अधिकारियों को मिलने वाले सरकारी भत्तों को समाप्त करना.
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