सबमरीन के नाम पर चीन ने पाकिस्तान को जो दिया है ना, भारत के पास उसकी तोड़ पहले ही मौजूद है
Pakistan ने Operation Sindoor के बाद एक सबमरीन (China Pakistan Submarine Deal) की डील की है. लेकिन इस सबमरीन और इसकी पूरी डील पर भारत की नजर है. दिलचस्प बात ये है कि इंडियन नेवी (Indian Navy) के पास इसकी काट पहले ही मौजूद है.

समंदर का बादशाह कौन? खतरनाक फाइटर जेट्स से लैस एयरक्राफ्ट कैरियर, ब्रह्मोस (Brahmos) जैसी घातक मिसाइल से लैस जंगी जहाज या हाई कैलिबर बंदूकों से लैस स्पीडबोट्स? जवाब है, ये सभी अपनी-अपनी जगह पर सही हैं. लेकिन समंदर में असली बादशाहत होती है, खामोशी से गहराई में चल रही सबमरीन (Submarine) की. भारत लगातार सबमरीन के क्षेत्र में तरक्की कर रहा है. न्यूक्लियर हो, या नॉन-न्यूक्लियर; भारत के बेड़े में सभी तरह की सबमरींस मौजूद है. इसी बीच खबर आई है कि भारत के प्यारे पड़ोसी पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor)) के बाद एक सबमरीन (China Pakistan Submarine Deal) की डील की है. और ये सबमरीन उसे दे रहा है भारत का एक और पड़ोसी, ड्रैगन माने चीन. लेकिन इस सबमरीन और इसकी पूरी डील पर भारत की नजर है. दिलचस्प बात ये है कि इंडियन नेवी (Indian Navy) के पास इसकी काट मौजूद है. नेवी बीते कुछ सालों से लगातार अपने बेड़े में लगातार सबमरीन का शिकार करने वाले एंटी-सबमरीन वॉरशिप्स (Anti-Submarine Warfare) को शामिल कर रहा है. तो समझते हैं, क्या है पाकिस्तान-चीन की ये डील, और बारत के पास इसका क्या तोड़ है?
चीन-पाकिस्तान का राब्ता20 नवंबर, 2025 को इंडियन नेवी के वाइस चीफ ऑफ स्टाफ, वाइस एडमिरल संजय वात्सायन ने ये साफ किया कि चीन से पाकिस्तान को सप्लाई की जा रही 'हाई-टेक' सबमरीन्स पर नेवी लगातार नजर बनाए हुए है. वाइस एडमिरल वात्सायन कहते हैं,
हम इस बात से अवगत हैं कि चाइना ने पाकिस्तान को सबमरीन और जंगी जहाजों की सप्लाई शुरू की है. हम हर चीज पर नजर रख रहे हैं. इंडियन नेवी हर चीज के लिए तैयार है.
चीन के साथ 5 बिलियन डॉलर (लगभग 45 हजार करोड़ रुपये) के समझौते के तहत, पाकिस्तान आठ हंगोर-क्लास डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन को शामिल करेगा. इनमें से चार सबमरीन चीन में बन रही हैं, और चार पाकिस्तान में असेंबल की जा रही हैं. चीन-पाकिस्तान का यह प्रोग्राम 2015 में शुरू हुआ था. पहली सबमरीन अप्रैल 2024 में लॉन्च हुई, दो और इस साल, और पूरी डिलीवरी 2028 तक तय है. पाकिस्तान के नेवल चीफ एडमिरल नवीद अशरफ ने हाल ही में ग्लोबल टाइम्स को बताया कि 2026 तक का पूरा शेड्यूल ट्रैक पर है. उन्होंने दूसरी और तीसरी बोट्स के लॉन्च को 'चीन और पाकिस्तान के बीच नेवल कोलेबोरेशन के लिए एक मील का पत्थर बताया है.
पाकिस्तान नेवी को मिली ये नई हंगोर-क्लास सबमरीन चीन की टाइप-039B सबमरीन का अपग्रेडेड वर्जन है. इसे खास तौर पर पाकिस्तान के लिए बनाया गया है. सौदे के तहत कुल 8 सबमरीन पाकिस्तानी नौसेना के बेड़े में शामिल होनी हैं. इनमें से 4 चीन में बनी हैं. बाकी 4 कराची शिपयार्ड में पाकिस्तान खुद बना रहा है. इस सबमरीन में AIP सिस्टम (Air Independent Propulsion) है. मतलब पानी के अंदर हफ्तों बिना स्नॉर्कलिंग (पानी के ऊपर आकर हवा भरने) के घूम सकती है. ये सबमरीन साइलेंट किलर साबित हो सकती है.
इसका वजन 2800 टन है. यानी ये भारत की कलवरी क्लास की पनडुब्बियों से बड़ी. इस सबमरीन में 6 टॉरपीडो ट्यूब्स, Yu-6 हैवी टॉरपीडो, YJ-18 एंटी-शिप/लैंड अटैक क्रूज मिसाइल (300-500 किमी रेंज) जैसे हथियार लगाए जा सकते हैं. हंगोर क्लास सबमरीन की स्पीड सरफेस पर 17 नॉट्स (31+ किलोमीटर प्रति घंटा) और डूबने पर 20+ नॉट्स (37 से ज्यादा किलोमीटर प्रति घंटा) तक है. इसकी रेंज 18,000 किलोमीटर तक की है. माने, एक बार में अरब सागर से प्रशांत महासागर तक पहुंच सकती है. पहली सबमरीन PNS Hangor (2024 में लॉन्च हुई थी) 2026-27 तक कमीशन हो जाएगी. 2028-29 तक पूरी फ्लीट आने की उम्मीद है. लेकिन भारत बीते कुछ समय से लगातार एंटी-सबमरीन जहाजों को अपने अरमाडा का हिस्सा बना रहा है. तो जानते हैं कि भारत के पास हंगोर क्लास का क्या तोड़ है.
इंडियन नेवी के सबमरीन हंटर जहाजआज की तारीख में अगर समुद्री जंग हो तो दुश्मन को सबसे ज्यादा नुकसान किसी चीज से होगा? वॉरशिप्स, एयरक्राफ्ट कैरियर या सबमरीन. इसपर एक्सपर्ट्स की राय अलग-अलग हो सकती है, लेकिन एक बात पर सभी एकमत हैं कि एक सबमरीन लाखों टन वजनी एयरक्राफ्ट कैरियर तक को डुबा सकती है, वो भी बिना नजर आए. ऐसे में सबमरीन को ढूंढना और तबाह करना वॉरफेयर के लिहाज से काफी अहम हो जाता है. इंडियन नेवी ने हाल ही में एंटी-सबमरीन शिप INS माहे, उससे पहले INS अंड्रोथ को नेवी में शामिल किया है. और उससे पहले नेवी ने INS कावारत्ती को सबमरीन किलिंग मिसाइल से लैस किया था.
अपने पिछले अवतार में, आईएनएस अंड्रोथ (P69) ने रिटायर होने से पहले 27 सालों से अधिक समय तक नेवी में सेवाएं दी थीं. नए अंड्रोथ के पुराने जहाज की विरासत को आगे ले जाने के उद्देश्य से ही ये नाम दिया गया है. उन्नत हथियार और सेंसर सूट, आधुनिक संचार सिस्टम और वाटरजेट प्रोपल्शन से लैस, एंड्रोथ पानी के भीतर के खतरों का सटीकता से पता लगाने, उन्हें ट्रैक करने और उन्हें बेअसर करने में सक्षम है. इसकी अत्याधुनिक क्षमताएं इसे विभिन्न प्रकार के खतरों से निपटने के लिए समुद्री निगरानी, खोज और बचाव अभियान, और तटीय रक्षा मिशनों को अंजाम देने में भी सक्षम बनाती हैं.
इस जहाज का नाम भारत के लक्षद्वीप स्थित टापू अंड्रोथ के नाम पर रखा गया है. इस जहाज को कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने बनाया है. कुल 8 ऐसे जहाज GRSE को बनाने है जिसमें से ये दूसरा जहाज आईएनएस अंड्रोथ है. ये एक एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट (Anti-Submarine Warfare Shallow Water Craft) जहाज है. शॉर्ट में इसे ASW-SWC कहा जाता है. इस जहाज को ईस्टर्न नेवल कमांड के प्रमुख वाइस-एडमिरल राजेश पेंढारकर की मौजूदगी में नौसेना में कमीशन किया जाएगा.
इसके नाम में हमने एक शब्द सुना, 'शैलो वाटर्स'. इसका मतलब है कि ये जहाज उथले पानी ने सबमरीन से लड़ने में माहिर है. यानी अगर कोई सबमरीन भारत के तट के नजदीक आई तो इस जहाज को पता चल जाएगा. और वो न सिर्फ पता करेगा, बल्कि समय रहते उन्हें तबाह भी करेगा जिससे वो भारत के नेवल बेस या तट के नजदीक किसी मिलिट्री ठिकाने पर हमला न कर पाए. दिलचस्प बात ये है कि इस जहाज में 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी पार्ट्स लगे हैं. लिहाजा रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर भी ये महत्वपूर्ण कदम है.
वाटरजेट प्रोपल्शन- एक शानदार तकनीकये जहाज अपनी एक और खासियत के लिए भी जाना जाता है. खासियत है इसमें लगा एक सिस्टम जिसे 'वाटरजेट प्रोपल्शन' कहते हैं. ये पूरी तरह से न्यूटन के तीसरे लॉ पर काम करता है. तीसरा लॉ ये कहता है हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, और वो भी बिल्कुल बराबर. इसी लॉ का इस्तेमाल वाटरजेट प्रोपल्शन में किया जाता है. नेवल मामलों पर नजर रखने वाली वेबसाइट मरीन इनसाइट के मुताबिक इस सिस्टम में एक पंप के जरिए पानी को खींचा जाता है. इसके बाद इसे एक नोजल से गुजारा जाता है जहां इसे और स्पीड दी जाती है. आखिर में इसे जहाज के पीछे लगे नोजल से पूरे फोर्स से छोड़ा जाता है. इसकी वजह से जहाज आगे बढ़ता है. इस जहाज के कुछ बेसिक फीचर्स पर नजर डालें तो,
- लंबाई: 77 मीटर
- प्रोपल्शन: डीजल इंजन के साथ वाटरजेट, जो इसे तेज चलने और जल्दी टर्न करने में मदद करता है.
- हथियार: हल्के तॉरपीडो, स्वदेशी ASW रॉकेट्स और शैलो वाटर सोनार
- स्वदेशी: 80 प्रतिशत स्वदेशी पार्ट्स
- उन्नत सबमरीन डिटेक्शन सिस्टम

24 नवंबर, 2025 को मुंबई में इंडियन नेवी एक नया एंटी-सबमरीन वॉरफेयर जहाज अपने बेड़े में शामिल करने जा रही है. इस जहाज का नाम है आईएनएस माहे (INS Mahe). ये माहे-क्लास का पहला एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शिप है. इस जहाज को कोची शिपयार्ड लिमिटेड ने बनाया है. इस जहाज को अक्टूबर 2024 में नेवी को सौंप दिया गया था. अपनी जरूरत के हिसाब से हर फिटिंग करने के बाद 24 नवंबर को कमीशनिंग की तारीख है. दिलचस्प बात ये है कि इस जहाज में 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी कंपोनेंट्स का इस्तेमाल किया गया है.
इस वॉरशिप को तट के पास काम करने वाली सबमरीन का पता लगाने, उन्हें ट्रैक करने और उन पर हमला करने जैसे मिशन के लिए डिजाइन किया गया है. इसमें एडवांस्ड अंडरवाटर सेंसर लगे हैं, जिसमें ‘अभय’ नाम का सोनार, एक लो-फ्रीक्वेंसी सोनार और एक अंडरवाटर अकूस्टिक कम्युनिकेशन सिस्टम शामिल है, जिससे समुद्र तल और आस-पास के पानी की पूरी निगरानी की जा सकती है.
INS माहे में मॉडर्न हथियारों का एक सेट है जिसमें हल्के टॉरपीडो, रॉकेट, एंटी-टॉरपीडो डिकॉय और पानी के नीचे के खतरों से निपटने के लिए माइन बिछाने के इक्विपमेंट शामिल हैं. यह जहाज 77.6 मीटर लंबा है और इसका डिस्प्लेसमेंट 1,490 टन के करीब है. माहे नाम की कहानी भी दिलचस्प है. इसका नाम मालाबार तट पर बसे ऐतिहासिक शहर माहे के नाम पर रखा गया है. जहाज को कॉम्पैक्ट और फुर्तीला बनाया गया है जिससे ये सबमरीन का पीछा कर उसका शिकार कर सके.
समंदर पर राज - दुनिया पर कब्जाअमेरिका के एक पूर्व नेवल ऑफिसर Alfred Thayer Mahan की एक फेमस लाइन है- "Whoever rules the waves rules the World." माने जो लहरों पे राज करता है, वही दुनिया पर भी राज करेगा. हमारी धरती का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी है. इस लिहाज से मिलिट्री पावर की बात करें तो नौसेना सबसे अहम हो जाती है. ब्रिटेन के विशाल साम्राज्य के पीछे भी उसकी नेवल पावर का ही हाथ माना जाता है. 'रॉयल नेवी' के विशाल बेड़े की बदौलत ही ब्रिटेन ने एक समय दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर राज किया. कितने ही किस्से हैं जब नौसेना ने लड़ाईयों का रुख बदला है. फ्रांस का Normandy इस बात का गवाह है. लिहाजा भारत को भी अगर समुद्र में बढ़त बना कर रखनी है, चीन-पाकिस्तान के ‘misadventure’ से निपटना है, तो उसे इस तरह के और भी उन्नत जहाजों को नेवी में शामिल करना होगा.
वीडियो: आसान भाषा में: वॉरफेयर की दुनिया में सबमरीन ज़रूरी क्यों है? क्या चीन को समुद्र में जवाब देगा ये नया हथियार?


