नीतीश कुमार की 'डबल डोज' पॉलिटिक्स, जिसने उन्हें 'इच्छा शासन का वरदान' दे रखा है
आज 'राजधानी' में जानिए नीतीश कुमार ने कैसे बता दिया कि वही हैं बिहार के असली बॉस. होम मिनिस्ट्री को लेकर कहां फंस गई थी गरारी, चंद्रबाबू नायडू संग नीतीश की नजदीकियों के क्या हैं मायने.

योगी आदित्यनाथ यूपी में बीजेपी विधायक दल के नेता चुन लिए गए थे. उन दिनों वे लखनऊ में वीवीआईपी गेस्ट हाऊस में अस्थाई रूप से रह रहे थे. तब यूपी के डीजीपी जावेद अहमद, चीफ सेक्रेटरी राहुल भटनागर योगी से मिलने पहुंचे. सवेरे के साढ़े 8 बज रहे थे. योगी ने दोनों अफसरों से कहा, “चलिए शपथ ग्रहण की तैयारी देखकर आते हैं.” अगले दिन, यानी 19 मार्च 2017 को योगी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी थी. आम तौर पर कोई नेता अपने ही शपथ ग्रहण का इंतजाम खुद देखने जाता नहीं है. पर योगी उस दिन गए. और इस दफा नीतीश कुमार ने ऐसा ही कुछ कर सबको चौंका दिया. वैसे तो वो इससे पहले 9 बार बिहार में सीएम की शपथ ले चुके हैं. पर इस दफा, समारोह की तैयारियों का जायजा लेने के लिए उनका पटना के गांधी मैदान जाना एक बड़ा सियासी मैसेज लिए हुए था.
नीतीश का गांधी मैदान का दौरा18 नवंबर को, शाम के करीब 5 बज रहे थे. डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, बीजेपी के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े, बिहार बीजेपी के संगठन महामंत्री भिखूभाई दलसाणिया, राज्य सरकार में मंत्री नितिन नवीन जैसे बीजेपी के सभी बड़े नेता नीतीश के पीछे-पीछे गांधी मैदान पहुंचे. नीतीश के साथ सलाहकार दीपक कुमार समेत सीनियर अफसरों की पूरी टीम थी. गांधी मैदान पहुंचकर नीतीश ने शपथ ग्रहण की तैयारियों का जायजा लिया. सवाल है कि नीतीश ने ऐसा क्यों किया. तो बात ये है कि गांधी मैदान का खुद दौरा कर नीतीश ने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को ये मैसेज दे दिया कि, बिहार के रियल बॉस सिर्फ वे हैं, और कोई नहीं. भले ही नतीजों के हिसाब से बीजेपी नंबर वन पार्टी क्यों न हो.
होम मिनिस्ट्री पर थी BJP की नजरन सिर्फ गांधी मैदान जाना, नीतीश ने अपने एक के बाद एक दांव से बीजेपी की बिहार में हालत '32 दांतों के बीच जीभ' वाली कर दी है. बीजेपी को लगता था कि यही समय है, सही समय है. लेकिन नीतीश राजनीति में कभी भी समय के गुलाम नहीं रहे. उन्होंने हर समय में खुद को प्रासंगिक रखा. जब सब ये मान कर चल रहे थे कि इस बार बिहार की एनडीए सरकार में नीतीश मुखौटा रहेंगे, सरकार का कंट्रोल बीजेपी हाईकमान के पास होगा, नीतीश ने गेम ही पलट दिया.
ये जानते हुए भी कि स्पीकर जेडीयू का नहीं हो सकता, नीतीश कुमार ने बीजेपी के सामने ये शर्त रख दी. वे जानते थे कि बीजेपी इस बार गृह मंत्रालय लेना चाहती है, जो नीतीश कुमार ने 2005 के बाद से आज तक किसी को नहीं दिया. बीजेपी और भी कुछ अहम मंत्रालय अपने पास रखना चाहती थी. वो शिक्षा, ग्रामीण कार्य और जल संसाधन जैसे विभाग पर भी नजर गड़ाए हुए है. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष को लेकर नीतीश ने ऐसा माहौल बनाया कि बीजेपी हाईकमान को बैकफुट पर आना पड़ा.
नीतीश ने जब बदल दिया प्लानगृह मंत्रालय के बहाने बीजेपी ने इस बार ब्यूरोक्रेसी पर फुल कंट्रोल का मन बनाया था. कोशिश थी कि कुछ महत्वपूर्ण पद, चीफ सेक्रेटरी से लेकर विजिलेंस के हेड तक, पर उसकी पसंद ही के अधिकारी तैनात हों. पर बीजेपी के लिए नीतीश का एक ही मैसेज था - पटना आने पर बात होगी. और अमित शाह से नीचे किसी से बात नहीं होगी. अपनी बात मनवाने के लिए ही नीतीश कुमार ने 17 नवंबर वाला अपना प्लान बदल लिया था. जिस दिन उन्हें कैबिनेट की बैठक के बाद, विधानसभा भंग करने की सिफारिस करनी थी और फिर राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा देना था.
नीतीश जानते थे कि केयरटेकर मुख्यमंत्री बनकर वो अपनी बात बीजेपी से नहीं मनवा सकते. सो, अब इस दांव-पेच का हासिल ये है कि उनके पास होम भी रह गया. और ये भी तय हो गया कि मुख्यमंत्री सचिवालय में कोई बड़ा फेरबदल नहीं होगा. कमाल देखिए कि बीजेपी कोटे से उनकी ही पसंद के सम्राट चौधरी डिप्टी सीएम बनाए जा रहे. कहते हैं दोनों नेताओं की केमेस्ट्री अच्छी है.
अपनी छवि को भी बदल रहे नीतीशबीते कुछ दिनों में नीतीश की छवि में भी जमीन-आसमान का फर्क आया है. इसके निर्माता-निर्देशक वे खुद हैं. कहां तो चर्चा उनके खराब स्वास्थ्य को लेकर होती थी. लेकिन अब उनका जिक्र राजनीतिक सूझबूझ से भरे फैसलों को लेकर हो रहा. चुनाव के दौरान जब खबरें चलीं कि जेडीयू कोटे के विधायकों की सीटें चिराग पासवान की पार्टी को मिल रही है, तब नीतीश ने उन दोनों विधायकों को अपने घर बुलाया. उन्हें टिकट देकर फोटो मीडिया में जारी करवा दी. 31 अक्टूबर को कैसे भूल सकते हैं आप. खराब मौसम के कारण पटना से हेलिकॉप्टर उड़ नहीं पा रहे थे. नीतीश ने संजय झा को घर बुलाया और बाई रोड ही चुनाव प्रचार पर निकल गए.
सबसे दिलचस्प मामला तो धर्मेन्द्र प्रधान को बीजेपी की तरफ से बिहार में चुनाव प्रभारी बनाने का है. नीतीश और प्रधान के बरसों से अच्छे रिश्ते रहे हैं. इससे पहले भी धर्मेन्द्र प्रधान बिहार के प्रभारी रहे. नीतीश को जब उनके बारे में पता चला तो उन्होंने ओडिशा के सीनियर लीडर श्रीकांत जेना को फोन लगाया. और पूछा कि प्रधान किस जाति से आते हैं. जब उन्हें बताया गया कि वे भी कुर्मी हैं, तो नीतीश गदगद हो गए. ये कहानी जेडीयू और बीजेपी के भी कई नेताओं को पता नहीं होगी.
नीतीश की ‘डबल डोज’ पॉलिटिक्सनीतीश की पॉलिटिक्स डबल डोज वाली रही है. मतलब एक साथ दो फ्रंट पर काम करने की. ये बताना जरूरी है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से भी इन दिनों नीतीश की खूब छन रही है. नायडू के बेटे नारा लोकेश चुनाव प्रचार के लिए बिहार भी गए थे. और शपथ ग्रहण में नायडू और उनके बेटे की मौजूदगी रहने वाली है. बाकी आप जानते ही हैं, लोकसभा में जेडीयू के 12 और नायडू की टीडीपी के 16 सांसद हैं. और इन दोनों के ही दम पर नरेंद्र मोदी की बहुमत वाली सरकार चल रही है.
बिहार में चुनाव प्रचार के समय कहा जा रहा था कि पता नहीं नीतीश एनडीए की तरफ से सीएम बन पाएंगे भी या नहीं. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि, नीतीश की जगह 6 महीने बाद बीजेपी का कोई नेता बिहार में ले लेगा. पर अब तो मुझे इंडियन एक्सप्रेस के संतोष सिंह की वो बात सही लगती है. जहां वे कहते हैं- “नीतीश कुमार को भगवान ने इच्छा शासन का वरदान दे रखा है.”
वीडियो: राजधानी: नीतीश कुमार ने अमित शाह के सामने क्या शर्त रख दी?


