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'वेटिंग पीरियड में बीमारी पता चली तो नहीं मिलेगा बीमा पॉलिसी का क्लेम', केरल हाई कोर्ट ने LIC के पक्ष में सुनाया फैसला

महिला ने मार्च 2021 में अपनी LIC की कैंसर बीमा पॉलिसी रिन्यू कराई थी. पॉलिसी की शर्त थी कि यह 180 दिन के वेटिंग पीरियड के बाद लागू होगी. हालांकि इस बीच उसे कैंसर हो गया. इस पर इंश्योरेंस के क्लेम को लेकर महिला ने लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन अंतत: फैसला LIC के पक्ष में गया.

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Kerala High Court rules in favor of LIC in a case of cancer insurance policy claim issue
हाई कोर्ट ने LIC के पक्ष में फैसला सुनाया है. (Photo: File/ITG)
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सचिन कुमार पांडे
8 अक्तूबर 2025 (Published: 02:08 PM IST)
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केरल हाई कोर्ट ने कैंसर इंश्योरेंस पॉलिसी के एक मामले में LIC के पक्ष में फैसला सुनाया है. LIC ने एक महिला का इंश्योरेंस का क्लेम रिजेक्ट कर दिया था. जिसके खिलाफ उसने केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने LIC का फैसला सही माना और कहा कि नियमों के अनुसार महिला पर क्लेम लागू नहीं होता.

दरअसल, एक महिला ने 16 मार्च 2021 को अपनी LIC की कैंसर बीमा पॉलिसी को रिन्यू कराया था. पॉलिसी की शर्त थी कि यह 180 दिन के वेटिंग पीरियड के बाद लागू होगी. यानी इस दौरान अगर कैंसर का पता चलता है तो इंश्योरेंस में यह कवर नहीं होगा. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार महिला को पॉलिसी लेने के लगभग एक महीने बाद 25 अगस्त को ब्लीडिंग की शिकायत हुई. उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया.

शुरूआती रिपोर्ट में कैंसर के लक्षण

उसी दिन अल्ट्रासाउंड में उन्हें "एंडोमेट्रियल कैंसर" होने की आशंका जताई गई थी. इसके बाद 31 अगस्त को हिस्टोपैथोलॉजी और 1 सितंबर को MRI रिपोर्ट में भी कैंसर के ही लक्षण पाए गए थे. फिर महिला को दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी सर्जरी हुई. सर्जरी के दौरान उनके ब्लड सैंपल लिए गए. इसकी फाइनल बायोप्सी रिपोर्ट 28 सितंबर को आई, जिसमें कैंसर की पुष्टि की गई.

हालांकि बायोप्सी रिपोर्ट आने तक उनकी पॉलिसी का वेटिंग पीरियड समाप्त हो चुका था. ऐसे में महिला ने बीमा के लिए क्लेम किया. उनका दावा था कि उनके कैंसर की पुष्टि वेटिंग पीरियड समाप्त होने के बाद हुई है. हालांकि LIC ने यह दावा खारिज कर दिया और महिला को इंश्योरेंस का कवरेज देने से मना कर दिया.

हाई कोर्ट में की अपील

इसके खिलाफ महिला ने बीमा लोकपाल (Insurance Ombudsman) से शिकायत की. हालांकि लोकपाल ने भी उनका दावा खारिज कर दिया. इसके बाद महिला ने LIC के खिलाफ हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के सामने रिट याचिका दायर की. बेंच ने महिला की दलील को स्वीकार करते हुए कहा था कि बीमा पॉलिसी में 'Diagnosis ' (निदान) तब माना जाता है, जब एक्स्पर्ट उसकी पुष्टि करें. इसलिए महिला का दावा सही है, उसे क्लेम मिलना चाहिए.

LIC ने सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की. डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को सही नहीं माना. उसने 'Diagnosis ' यानी निदान की परिभाषा के लिए साइक्लोपीडिक मेडिकल डिक्शनरी को आधार बनाया. इसमें कोर्ट ने माना कि केवल बीमारी की पुष्टि ही नहीं, बल्कि बीमारी की पहचान करने की पूरी प्रक्रिया को भी Diagnosis माना जाता है.

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डिवीजन बेंच का फैसला

इसके बाद केरल हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने LIC के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि 28 सितंबर को बीमारी का पहली बार पता नहीं चला था, बल्कि उसकी सिर्फ पुष्टि हुई थी. पहली बार बीमारी का पता वेटिंग पीरियड के दौरान ही चला. इसलिए महिला को पॉलिसी का क्लेम नहीं मिल सकता.

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