IRCTC घोटाले में लालू परिवार को बड़ा झटका, लालू-तेजस्वी-राबड़ी समेत 14 लोगों पर आरोप तय
IRCTC Scam-Land for Job case: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने IRCTC घोटाला मामले में लालू परिवार पर आरोप तय किए हैं. लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव समेत 14 लोग इस घोटाले के आरोपी हैं. क्या है IRCTC स्कैम?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू परिवार को बड़ा झटका लगा है. दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने IRCTC घोटाला मामले में आरोप तय किए हैं. लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, प्रेम गुप्ता समेत IRCTC घोटाले में 14 आरोपी हैं. सभी आरोपियों के खिलाफ IPC से संबंधित धाराओं के तहत आरोप तय किए गए हैं.
आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक, 13 अक्टूबर को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने लालू यादव से पूछा, “क्या आप अपना अपराध मानते हैं?” इस पर लालू यादव समेत राबड़ी और तेजस्वी ने अपना अपराध मनाने से इनकार किया. लालू ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि वे मुकदमे का सामना करेंगे. लालू यादव की ओर से सीनियर वकील मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है और कहा,
ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि जमीन के बदले उम्मीदवारों को नौकरी दी गई.
चूंकि सभी आरोपियों ने निर्दोष होने की दलील दी है, इसलिए मामला आगे बढ़ेगा. कोर्ट ने जिन धाराओं के तहत आरोप तय किए है, उनमें IPC 420, IPC 120B शामिल हैं. भ्रष्टाचार निरोधक कानून एक्ट की धारा 13(2) और 13 (1)(d) सिर्फ लालू यादव पर लगे है. राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव समेत सभी आरोपियों पर 120 बी और 420 IPC के तहत ट्रायल चलेगा.
क्या है IRCTC स्कैम?रेलवे में कथित रूप से नौकरी के बदले जमीन मांगने से जुड़े इस घोटाले को IRCTC स्कैम भी कहा जाता है. 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद यादव, यूपीए सरकार में रेल मंत्री थे. आरोप है कि उनके रेल मंत्री रहते हुए रेलवे भर्ती में घोटाला हुआ. आरोप लगा कि रेलवे में नौकरी लगवाने के बदले आवेदकों से जमीन और प्लॉट लिए गए थे. मामले में CBI की तरफ से दर्ज FIR में लालू यादव, तेजस्वी यादव और राबड़ी यादव का नाम है. इसके अलावा कुछ प्राइवेट प्लेयर्स को भी आरोपी बनाया गया. उन पर नौकरी के बदले जमीन देने का आरोप है.
घोटाले के शुरुआत कैसे हुई?मई, 2004 में लालू यादव यूपीए-1 सरकार में रेल मंत्री बने. इसके आठ महीने बाद फरवरी, 2005 में रेल मंत्रालय आईआरसीटीसी के दो होटल किराए पर चलाने देने का फैसला करता है. दी लल्लनटॉप से जुड़े रहे अनिरुद्ध की एक रिपोर्ट के मुताबिक लीज के फैसले के कुछ ही दिनों बाद पटना में एक जमीन बिकती है. कथित तौर पर यहीं से घोटाले की शुरुआत हुई. ये जमीन थी मेसर्स सुजाता होटल्स नाम की कंपनी की. यही कंपनी पटना में होटल चाणक्या चलाती है. रिपोर्टों के मुताबिक कंपनी ने पटना के सगुना मोड़ पर 3 एकड़ जमीन बेची. एक छोटी सी कंपनी डिलाइट मार्केटिंग को, एक करोड़ 47 लाख रुपए की कीमत पर. बताया गया कि ये डिलाइट मार्केटिंग कंपनी थी लालू के खास और राज्यसभा सांसद प्रेमचंद गुप्ता की.
नियमों में क्या बदलाव किए गए?नवंबर, 2006 में रेलवे फाइनली लीज का टेंडर निकालती है. रांची और पुरी स्थित उन्हीं दो होटलों के लिए, जिनका पहले जिक्र किया. टेंडर की शर्तें ऐसी थीं कि सुजाता होटल्स बिड के लिए योग्य नहीं थी. आरोप लगाया गया कि टेंडर निकाले जाने के कुछ ही हफ्तों के अंदर टेंडर की शर्तों में बदलाव कर दिया गया. नई शर्तों के बाद सुजाता होटल्स बिडिंग के लिए इलिजिबल हो जाती है. करीब डेढ़ महीने बाद दिसंबर 2006 में सुजाता होटल्स को रांची और पुरी वाले होटल चलाने के लिए लीज मिल जाती है.
अनिरुद्ध की रिपोर्ट के मुताबिक आठ साल बाद डिलाइट मार्केटिंग, वही कंपनी जिसे सुजाता होटल्स ने पटना की जमीन बेची थी, अपनेआपको बेच देती है. डिलाइट के सारे शेयर किसने खरीदे. लारा प्रोजेक्ट्स नाम की कंपनी ने. लारा मतलब? 'ला' से लालू, 'रा' से राबड़ी. दोनों के नाम का पहला अक्षर जुड़ा तो बना 'लारा'. आरोपों के मुताबिक इस कंपनी के मालिक हैं तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी. डिलाइट कंपनी ने महज 64 लाख रुपए में सारे शेयर बेचे. फिर लारा ने फैसला किया डिलाइट की खरीदी सगुना रोड वाली जमीन पर मॉल बनाने का. वही जमीन, जो पहले सुजाता होटल्स की थी. फिर डिलाइट की हुई और उसके बाद लारा की.
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बीजेपी के सुशील मोदी ने लालू परिवार पर गड़बड़ी करने का आरोप लगाया था. उनके मुताबिक इस जमीन की असली कीमत 94 करोड़ रुपए थी, लेकिन लालू यादव ने सुजाता होटल्स को लीज पर रेलवे के होटल देकर बदले में ये जमीन ले ली. पहले किसी और की कंपनी के जरिए, और फिर उस कंपनी को अपनी कंपनी में मिलाकर.
साल 2018 में सीबीआई और ईडी, सुशील मोदी के आरोपों के आधार पर केस फाइल करते हैं. ईडी की अदालत में मनी लॉन्ड्रिंग का केस चलता है. चार्जशीट फाइल होती है. वहीं सीबीआई की अदालत में भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश का केस शुरू होता है. रिपोर्टों के मुताबिक सारी जमीनें राबड़ी देवी और मीसा भारती के नाम पर ली गई थीं. CBI की जांच में पता चला था कि आरोपियों ने सेंट्रल रेलवे के तत्कालीन जनरल मैनेजर और CPO के साथ मिलकर घोटाले की साजिश रची थी. जांच एजेंसी का कहना था कि इन भर्तियों के लिए कोई भी विज्ञापन या पब्लिक नोटिस नहीं जारी किया गया था. बावजूद इसके, पटना में रहने वाले लोगों को मुंबई, पटना, जबलपुर, कोलकाता और हाजीपुर में अलग-अलग जोनल रेलवे सब्स्टिट्यूट के रूप में नियुक्त किया गया था.
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