The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • india pakistan defense minister rajnath singh sir creek debate

सरक्रीक में ऐसा क्या है जो भारत ने पाकिस्तान को 'न भूलने की' चेतावनी दे दी?

राजनाथ सिंह के बयान के बाद 3 अक्टूबर को एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर भारतीय वायु सेना पूरी तरह सक्रिय और चौकस है. उन्होंने यह भी बताया कि यहां की स्थिति की लगातार निगरानी की जाती है और किसी भी असामान्य गतिविधि का तुरंत जवाब दिया जाएगा.

Advertisement
rajnath singh defence minister
भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह.
pic
विपिन
3 अक्तूबर 2025 (Published: 12:11 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

2 अक्टूबर को गुजरात के भुज में राजनाथ सिंह ने सरक्रीक नाम की जगह को लेकर एक बयान दिया. कहा यदि पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में कोई भी आक्रामक कदम उठाया, तो भारत की प्रतिक्रिया इतनी निर्णायक होगी कि वह इतिहास और भूगोल दोनों को बदल देगी. उन्होंने यह भी कहा, ‘पाकिस्तान को याद रखना चाहिए की कराची तक एक रास्ता सरक्रीक से होकर भी जाता है.’

राजनाथ सिंह के बयान के बाद 3 अक्टूबर को एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर भारतीय वायु सेना पूरी तरह सक्रिय और चौकस है. उन्होंने यह भी बताया कि यहां की स्थिति की लगातार निगरानी की जाती है और किसी भी असामान्य गतिविधि का तुरंत जवाब दिया जाएगा.

लेकिन सवाल यही है कि आखिर इस वक्त ये बयान क्यों सामने आए हैं. 

वजह है सरक्रीक के आसपास पाकिस्तानी सेना की लगातार बढ़ती चहलकदमी. पाकिस्तान सरक्रीक के पास मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर को लगातार दिन-ब-दिन बढ़ाता जा रहा है. CNN-News 18 की रिपोर्ट कहती है कि पाक सेना नए सैन्य ठिकाने, छोटी-छोटी छावनियां, इमरजेंसी एयर strips बना रही है. साथ ही आर्मी, नेवी और एयरफोर्स की अतिरिक्त तैनाती भी की जा रही है. साथ ही इस इलाके में पाकिस्तान ने अपने नागरिकों की मूवमेंट को रोक दिया है. वहां एंट्री लेने के लिए अब फौज की परमीशन चाहिए होती है. इन्हीं हरकतों पर भारत ने कड़े शब्दों में चेतावनी दी है.

ये केस समझने के लिए आप भूगोल जानिए. सरक्रीक एक 96 किलोमीटर लंबा जलमार्ग है, जो गुजरात के कच्छ जिले और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच पड़ता है. यह समुद्र में जाकर मिलता है. यहां जमीन दलदली है, पहुंचना आसान नहीं है. यानी यह ऐसा इलाका है जहां सुरक्षा बलों की तैनाती और निगरानी करना चुनौतीपूर्ण है. लेकिन यहीं से समुद्री सीमा की सुरक्षा और व्यापारिक मार्गों पर नज़र रखना बेहद जरूरी हो जाता है.

अब जानते हैं विवाद क्या है?

इस विवाद की जड़ दोनों देशों द्वारा अपनी समुद्री सीमा रेखा की अलग-अलग व्याख्या है. भारत की आजादी से पहले तक यह इलाका बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, लेकिन 1947 में विभाजन के बाद कच्छ भारत में और सिंध पाकिस्तान में चला गया. लेकिन पाकिस्तान को ये मंजूर नहीं था. उसने 1914 के बॉम्बे सरकारी प्रस्ताव को आधार बनाया और पूरे खाड़ी क्षेत्र को अपना बताने लगा.

दरअसल 1908 में विवाद की जड़ पड़ी. उस समय कच्छ के शासक और सिंध की सरकार के बीच इस इलाके से जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने को लेकर झगड़ा हुआ. विवाद को सुलझाने के लिए तब की अंग्रेजों की बंबई सरकार ने 1914 में एक प्रस्ताव बनाया. प्रस्ताव में सीमा को लेकर दो अलग-अलग बातें लिखी गईं. एक मानचित्र में सरक्रीक की सीमा को पूर्वी किनारे पर दिखाया गया, जिसका मतलब था कि पूरा सरक्रीक पाकिस्तान के हिस्से में जाएगा. 

लेकिन उसी प्रस्ताव के अनुच्छेद 10 में यह भी लिखा गया कि चूंकि सरक्रीक ज्यादातर समय नैविगेबल रहती है और यहां नावें चल सकती हैं, इसलिए सीमा क्रीक के बीचों-बीच (थालवेग नियम) से तय होनी चाहिए. यानी, एक ही प्रस्ताव में दो विरोधाभासी बातें थीं, और यही भ्रम आज तक इस विवाद की जड़ बना हुआ है.

अगर पाकिस्तान की सुनें, तो दोनों देशों की समुद्री सीमा खाड़ी के पूर्वी किनारे (हरी रेखा) पर है. लेकिन भारत इसे केवल सांकेतिक रेखा मानता है. 1924 में बने स्तंभों और 1925 में खींचे गए नक्शे भारत के दावे का आधार हैं. वास्तविक सीमा नहर के बीचोंबीच (लाल रेखा) है. भारत कहता है कि नदी या नहर जैसी जगहों पर सीमा वहीं से तय होती है जहां पानी का सबसे गहरा और चलने योग्य रास्ता होता है. पाकिस्तान इस सिद्धांत को सरक्रीक पर लागू नहीं मानता, जबकि भारत का कहना है कि उच्च ज्वार के समय यह चैनल नौगम्य है और मछली पकड़ने वाले जहाज इसी से समुद्र की ओर जाते हैं.

1947 : विभाजन के फौरन बाद पाकिस्तान ने  सरक्रीक पर अपना दावा ठोकना शुरू किया.

1958: भारत और पाकिस्तान के बीच पहली बार आधिकारिक वार्ता और सीमा विवादों के नोटिस में सरक्रीक का नाम शामिल हुआ.

1965: भारत-पाक युद्ध के दौरान कच्छ के रण में दोनों देशों की सेनाओं की भिड़ंत हुई थी, इसलिए यह जगह रणनीतिक (सैन्य) दृष्टि से जरूरी मानी जाती है.

1968: एक अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने भारत-पाकिस्तान के बीच कच्छ क्षेत्र की सीमा पर फैसला दिया. इसमें ज्यादातर इलाका भारत के पक्ष में गया, लेकिन सरक्रीक पर विवाद जस का तस रहा.

1990s से 2000s: कई बार बातचीत हुई, जॉइंट सर्वे हुआ, लेकिन दोनों देशों के बीच इस बात पर सहमति नहीं बन सकी कि सीमा किस तरह खींची जाए.

पाकिस्तान चाहता है कि सीमा क्रीक के पूर्वी किनारे (East Bank) से खींची जाए. भारत का कहना है कि सीमा क्रीक के बीच में (Mid Channel) से गुजरती है. यही अंतर है जो समुद्री क्षेत्र के बंटवारे को प्रभावित करता है. अगर पाकिस्तान का दावा मान लिया जाए तो उसे अरब सागर में ज्यादा जलक्षेत्र मिलेगा. इसलिए भारत इसे कभी स्वीकार नहीं करता.

अब आपको बताते हैं इसका सामरिक महत्व क्यों है?

सरक्रीक के महत्त्वपूर्ण होने के कुछ कारण हैं. जैसे - यहां कच्चा तेल मिल सकता है, प्राकृतिक गैस मिल सकती है. ये जगह एशिया के सबसे बड़े मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों में से एक है.

लेकिन इसका रणनीतिक महत्व भी है. यहां से गुजरने वाले समुद्री रास्ते बेहद महत्वपूर्ण हैं. कई बार यहां से समुद्र के रास्ते भारत में घुसपैठ की कोशिश की जाती है. खबरें बताती हैं कि कई मौकों पर यहां तस्करी और घुसपैठ के प्रयासों को काउंटर किया जाता है.

जानकार मानते हैं कि अगर पाकिस्तान ने सिंध के इलाके में बड़ा बिल्डअप कर लिया, तो भारत के पूरे वेस्टर्न फ्रन्ट पर कायरतापूर्ण हमलों का खतरा मंडराएगा. जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान के बाद इस खाड़ी वाले इलाके में भी भारत की सेनाओं को एक्स्ट्रा अलर्ट पर रहना होगा. तनाव और युद्ध की स्थिति बनी रहेगी. जानमाल का नुकसान तो होगा ही.

और पाकिस्तान इस इलाके में निर्माण शुरू ही कर चुका है. ऐसे में उसे ध्यान रखना चाहिए कि सरक्रीक से होकर ही रास्ता कराची तक जाता है.

वीडियो: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में लोग शहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ सड़कों पर, फायरिंग में 8 की मौत

Advertisement

Advertisement

()