फतेहपुर के मकबरे में बने कमल और कलश की कहानी पता चल गई
Fatehpur Tomb Controversy: फतेहपुर में एक मकबरे को लेकर बवाल मचा है. हिंदुत्ववादी संगठनों का दावा है कि यह पहले मंदिर था, जिसे तोड़कर मकबरा बनाया गया है.

उत्तर प्रदेश में बात अयोध्या, मथुरा और काशी से बाहर निकलकर संभल और फतेहपुर तक जा चुकी है. संभल की शाही जामा मस्जिद में हरिहर मंदिर के दावे की जांच अभी चल ही रही थी कि फतेहपुर में एक मकबरे पर विवाद खड़ा हो गया है. कहानी ‘सेम-सेम’ है. हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा किया है कि फतेहपुर के अबूनगर इलाके में स्थित अब्दुल समद का मकबरा ‘असल में ठाकुर जी का मंदिर’ है. दलील दी गई कि मकबरे के अंदर त्रिशूल और कमल जैसे हिंदू प्रतीक मौजूद हैं, जिससे ये दावा सही साबित होता है.
इसे लेकर बीते दिनों फतेहपुर में खूब बवाल मचा. तोड़फोड़, पथराव और दो धार्मिक समुदायों के बीच हिंसक झड़प ने इलाके में माहौल तनावपूर्ण बना दिया. घटना के बाद 11 लोगों पर नामजद केस दर्ज किया गया है और 150 अज्ञात लोगों पर भी एफआईआर हुई है.
क्या है मकबरे का सच?इन सबके बीच, मकबरे के मंदिर होने के दावे के ‘सच’ को जानने की ख्वाहिश हर किसी को है. आखिर, इतिहास इस दावेदारी पर क्या कहता है? संरचना कितनी पुरानी है और इसमें कमल और त्रिशूल के होने का रहस्य क्या है? ये वो सवाल हैं, जो आपके भी मन में होंगे. इनके जवाब जानने के लिए इंडिया टुडे से जुड़े रिपोर्टर संतोष शर्मा ने फतेहपुर के इतिहासकार सतीश द्विवेदी से खास बातचीत की. द्विवेदी ने जो बताया उसके मुताबिक, फतेहपुर के मकबरे का संबंध मुगलकाल से है और इसे औरंगजेब के जमाने में बनवाया गया था.
सतीश द्विवेदी के अनुसार, साल 1658 से 1707 तक मुगलिया तख्त पर औरंगजेब का कब्जा था. इस तख्त को पाने से पहले औरंगजेब ने अपने ही भाइयों से जंग लड़ी और उन्हें परास्त करने के बाद बादशाहत हासिल की थी. उसका एक भाई शुजा था, जिसे औरंगजेब ने खजुआ के युद्ध में हरा दिया था. इसके बाद उसने फतेहपुर में डेरा डाला और इसे अपनी छावनी के तौर पर विकसित करने का काम शुरू कर दिया.
इतिहास के मुताबिक इस सैन्य छावनी की जिम्मेदारी औरंगजेब ने बुंदेलखंड के पैलानी के फौजदार अब्दुल समद को दी. औरंगजेब के लिए फतेहपुर पर नियंत्रण रखना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि फतेहपुर की ही अर्गल रियासत के हिंदू राजाओं ने औरंगजेब के दुश्मन भाई शुजा को मदद की थी और उसे शरण दिया था. ऐसे में शुजा को मदद न मिलने पाए और उस पर नियंत्रण रखा जा सके इसलिए औरंगजेब ने फतेहपुर में अपने फौजदार अब्दुल समद को बसा दिया था.
लेकिन साल 1699 में अब्दुल समद की मौत हो गई. इसके बाद उसके बड़े बेटे अबू बकर ने पिता के लिए यहां एक मकबरा बनवाया. सतीश द्विवेदी का दावा है कि यह वही मकबरा है, जिसे लेकर आज विवाद हो रहा है. बाद में जब अबू बकर की मौत हो गई तो उसे भी इसी मकबरे में दफनाया गया. उसकी मजार भी यहीं है.
द्विवेदी बताते हैं कि अब्दुल समद के इसी बेटे अबू बकर के नाम पर ‘अबूनगर’ भी बसा है. जिस समय अबू बकर फतेहपुर का सूबेदार बना था उस समय यहां दो ही मोहल्ले थे. एक अबू नगर और दूसरा खेलदार. सरकारी दस्तावेजों में 1850 के नक्शे में भी इस पूरे इलाके में सिर्फ यही दो मोहल्ले थे. बाकी पूरा इलाका झील था.
मकबरे पर हिंदू निशान कैसे?मकबरे को मंदिर साबित करने के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों की सबसे बड़ी दलील यही है कि मकबरे के भीतर कमल और त्रिशूल जैसे हिंदू निशान मौजूद हैं. उनका कहना है कि इससे साबित होता है कि मकबरे को हिंदू मंदिर तोड़कर बनाया गया था. लेकिन सतीश द्विवेदी इसकी अलग कहानी बताते हैं. वह कहते हैं कि मकबरे पर बनाए गए कमल और कलश जैसे हिंदू चिह्न मंदिर के प्रतीक नहीं हैं. मकबरा भले ही अबू बकर ने अपने पिता अब्दुल समद के लिए बनवाया लेकिन इसे बनाने में उस समय के हिंदू कारीगरों का ही हाथ रहा होगा. ऐसे में इमारत बनाने की कला में कमल और कलश जैसे हिंदू निशान का होना आम बात है.
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