‘केंद्र के आदेश को चुनौती मुमकिन तो फिर ट्रिब्यूनल के आदेश को क्यों नहीं’ PFI पर बैन के खिलाफ अर्जी सुनेगा HC
Delhi High Court में इस मुद्दे को लेकर भी बहस हुई कि आखिर ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी जा सकती है या नहीं और क्या वह सिविल कोर्ट है भी या नहीं. इस मुद्दे पर केंद्र का कहना था कि ट्रिब्यूनल को सिविल कोर्ट इसलिए माना जाता है क्योंकि उसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के मौजूदा जज करते हैं. लेकिन कोर्ट ने केंद्र के तर्क को खारिज कर दिया.

साल 2022 में केंद्र सरकार ने PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI Ban) पर 5 साल के लिए बैन लगाया था. संगठन इसके खिलाफ UAPA के ट्रिब्यूनल के पास राहत मांगने गया था. लेकिन ट्रिब्यूनल ने राहत देने से इनकार करते हुए केंद्र सरकार के बैन वाले आदेश को बरकरार रखा. अब संगठन ने ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में अपील की है. हाईकोर्ट ने संगठन की याचिका पर सुनवाई करने पर राजी हो गया है.
क्यों अलग है ये मामलायहां गौर करने वाली बात यह है कि अमूमन ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए फैसलों को चुनौती दिए जाने की गुंजाइश कम ही होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रिब्यूनलों का गठन ही खास मामलों को निपटाने और उन पर आखिरी फैसला देने के लिए किया गया है. ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट का इस मामले को सुनने में सहमति देना मामले को और दिलचस्प बनाता है. इसी बात को लेकर कोर्ट में बहस भी हुई.
दिल्ली हाईकोर्ट की ये बेंच सुनेगी PFI का केसइंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच सुनवाई करेगी. बेंच ने मामले की सुनवाई पर सहमति जताते हुए कहा कि यह मानना बेहद अजीब होगा कि हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के ऑर्डर को चुनौती दी जा सकती है. लेकिन ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती.
हाईकोर्ट ने क्या कहाबेंच ने अपने ऑर्डर में साफतौर पर लिखा कि UAPA ट्रिब्यूनल को सिविल केस जैसी शक्तियां नहीं मिली हैं. सिर्फ कुछ विशेष कामों के लिए जैसे गवाह बुलाना, दस्तावेज मंगवाना, हलफनामा लेना आदि, उसे दीवानी अदालत जैसी ताकतें दी गई हैं. इसलिए इसे पूरी तरह से सिविल अदालत नहीं माना जा सकता. साथ ही कहा कि ट्रिब्यूनल के कामों को आम सिविल लॉ के तहत सिविल कोर्ट को दिए गए कामों जैसा या उससे मिलता-जुलता नहीं कहा जा सकता.
केंद्र की क्या थी दलीलइस मामले पर केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि ट्रिब्यूनल को सिविल कोर्ट इसलिए माना जाता है क्योंकि उसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के मौजूदा जज करते हैं. इसलिए ट्रिब्यूनल की ओर से पारित ऑर्डर यह एक न्यायिक आदेश है. इसके खिलाफ हाईकोर्ट में आर्टिकल-226 के तहत याचिका नहीं दी जा सकती.
लेकिन हाईकोर्ट ने केंद्र का तर्क खारिज करते हुए कहा कि अगर सरकार के बैन के आदेश को चुनौती दी जा सकती है तो ट्रिब्यूनल द्वारा उसे वैध ठहराने वाले आदेश को भी चुनौती दी जा सकती है.
कब और क्यों लगा था PFI पर बैनPFI से जुड़े के लोगों पर टेररिज्म कैंप लगाने और मुस्लिम युवाओं को आतंकवादी कामों में शामिल होने के लिए उकसाने का आरोप है. इसी के मद्देनजर सितंबर 2022 में NIA और ED ने कई राज्यों में PFI के नेताओं के ठिकानों पर छापेमारी की थी.
27 सितंबर को 7 राज्यों की पुलिस ने PFI से कथित तौर पर जुड़े 270 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया था. अगले दिन सरकार ने संगठन पर 5 साल के लिए बैन लगा दिया था.
वीडियो: PFI पर 5 साल का बैन लगा, गृह मंत्रालय ने कहा- "वर्ग विशेष को कट्टर बना रहा है"