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क्या दिल्ली धमाके में 'शू बम' का इस्तेमाल हुआ?

Delhi Car Blast: सेना में TATP का इस्तेमाल बहुत ही कम हो गया है. इसकी बड़ी वजह इसका वोलेटाइल नेचर है यानी बिलकुल अस्थिर. माने भरोसा करना मुश्किल है कि कब फट जाए.

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दिल्ली कार ब्लास्ट में NIA को TATP मिला है.
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अरविंद ओझा
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17 नवंबर 2025 (Published: 12:09 AM IST)
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दिल्ली कार ब्लास्ट की जांच में एक नया अपडेट सामने आया है. नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) के मुताबिक, जिस Hyundai i20 कार में धमाका हुआ था, उसमें TATP के अंश पाए गए हैं. कार में ड्राइवर की सीट के पास एक जूता मिला था. इस जूते और कार के दोनों टायरों पर TATP पाया गया है. TATP मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियों को ब्लास्ट में शू बम यानी जूता बम के इस्तेमाल का शक है.

क्या है ये TATP?

अमेरिका की जॉइंट काउंटरटेररिज्म असेसमेंट टीम के मुताबिक, TATP का पूरा नाम Triacetone Triperoxide है. इसे Acetone Peroxide भी कहते हैं. Acetone, Hydrogen Peroxide और Acid को मिलाकर ये कंपाउंड बनता है. Acetone और Hydrogen Peroxide दोनों ही हमारे रोजमर्रा की इस्तेमाल होने वाली चीजों में मिल जाते हैं.

Acetone नेल पॉलिश रिमूवर में मिल जाएगा. जबकि Hydrogen Peroxide एक ब्लीचींग-क्लीनिंग एजेंट हैं. इन तीनों के कॉम्बिनेशन से TATP बनता है. TATP का निक नेम भी है- 'Mother of Satan' यानी 'शैतान की मां'. जानकार बताते हैं कि ये दिखने में वाइट क्रिस्टल, पाउडर, स्टिकी लिक्विड या एमॉरफस फॉर्म में भी हो सकता है. एमॉरफस यानी जिसका कोई तय शेप नहीं होता.

सेना ने TATP का इस्तेमाल बहुत ही कम कर दिया है. इसकी बड़ी वजह इसका वोलेटाइल नेचर है यानी बिलकुल अस्थिर. माने भरोसा करना मुश्किल है कि कब फट जाए. आपने TNT बम का नाम सुना होगा. TATP इससे कई गुना ज्यादा स्ट्रांग है. जानकार इसके बारे में क्या कहते हैं सुनिए?

इंडिया टुडे से जुड़े अरविंद ओझा की रिपोर्ट के मुताबिक, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में फॉरेंसिक मेडिसिन डिपार्टमेंट के HOD डॉ. मनोज पाठक कहते हैं,

“TATP एक होममेड विस्फोटक है, जो बहुत ज्वलनशील और बेहद अस्थिर ऑर्गेनिक कंपाउंड है... यह मिलिट्री ग्रेड एक्सप्लोसिव नहीं, बल्कि इम्प्रोवाइज्ड विस्फोटक है, जिसे आसानी से घर पर बना सकते हैं. इसका इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों में होता है क्योंकि यह बेहद खतरनाक है. इस पर सरकार का कंट्रोल होता है. कई देशों में इससे हमला किया जा चुका है.”

उन्होंने आगे बताया,

"TATP की करीब 10 किलोग्राम की मात्रा से 10 किलोमीटर तक नुकसान पहुंचा सकता है. इसकी अस्थिरता और ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही विस्फोट करने की क्षमता इसे बहुत खतरनाक बनाती है. इसे एक्टिवेट करने के लिए खास डिटोनेटर की जरूरत नहीं होती. रगड़, इम्पैक्ट या जलने से भी यह फट सकता है. यह सफेद रंग के पाउडर, लिक्विड या एमॉर्फस फॉर्म में पाया जाता है. इसे बनाना बहुत आसान है, जिससे कोई भी केमिस्ट्री की जानकारी रखने वाला व्यक्ति इसे कहीं बना सकता है."

इसे बनाने से लेकर एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाने तक का काम बहुत रिस्की होता है. क्योंकि थोड़ी सी भी कोताही बरती तो ये फट सकता है. हल्की सी गर्मी, झटका या रगड़ाव विस्फोट के लिए काफी है.'मदर ऑफ सैटन' यानी TATP एक ऐसा विस्फोटक है जिसमें नाइट्रोजन नहीं होता है. इसलिए आउटडेटेड डिटेक्शन स्कैनर (यानी जो पुराने तकनीक वाले डिटेक्शन स्कैनर) इसे ट्रेस नहीं कर पाते हैं.

फॉरेंसिक एक्सपर्ट और कंसल्टेंट निशा मेनन बताती हैं,

TATP एक बेहद संवेदनशील और शक्तिशाली विस्फोटक कंपोनेंट है... TATP को विस्फोट के लिए डेटोनेटर की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि यह बहु हाई इम्पैक्ट, रगड़, बिजली या गर्मी से आसानी से फट जाता है. TATP की छोटी मात्रा में भी भारी नुकसान करने की क्षमता रहती है. इसका आविष्कार करीब 1885-1895 के दौरान एक जर्मन साइंटिस्ट ने एक्सप्लोसिव टेस्टिंग के समय किया था, लेकिन इसके बहुत ज्यादा सेंसिटिव होने की वजह से इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया."

उन्होंने आगे बताया,

"मौजूदा दौर में 2000 के बाद इसको आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाने लगा. 2000 में इससे एक शू बॉम्ब की कोशिश की गई थी, जो फेल हो गया था. TATP का इस्तेमाल पेरिस, लंदन और ब्रुसेल्स के धमाकों में हुआ था. TATP को अकेले एक्सप्लोसिव के रूप में नहीं, बल्कि अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल ऑयल जैसे अन्य पदार्थों के साथ मिलाकर इसके धमाके का दायरा और बढ़ाया जाता है."

10 नवंबर के CCTV फुटेज में ब्लास्ट से पहले कार धीरे-धीरे ट्रैफिक सिगनल की तरफ बढ़ती है. इसी कार में आरोपी उमर उन नबी बैठा था. कुछ रिपोर्ट्स में ये बात भी सामने आ रही है कि उमर धीरे-धीरे कार ड्राइव कर रहा था, ताकि TATP पहले ही ना ब्लास्ट हो जाए. क्योंकि ब्लास्ट के लिए एक माइनर झटका काफी था.

जो एक्सप्लोसिव इतना घातक है. उसे बनाया कैसे गया? इसका इतिहास क्या है? ये भी जान लेते हैं. इसे 1895 में जर्मन केमिस्ट रिचर्ड वोल्फेंस्टीन (Richard Wolffenstein) ने बनाया था. अस्थिर होने की वजह से बाद में इस पर रोक लग गई. लेकिन आतंकवादी इसे हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे.

इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या दिल्ली धमाके में भी शू बम का इस्तेमाल हुआ था? इस केस में सुरक्षा एजेंसियां जांच में जुटी हैं. NIA ये साफ कर चुका है कि डॉ. उमर नबी जो धमाके वाली कार में बैठा था सुसाइड बॉम्बर था.

वीडियो: जम्मू-कश्मीर में दिल्ली ब्लास्ट के आरोपी डॉक्टर आदिल के पड़ोसी ने आत्मदाह की कोशिश की

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