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लद्दाख में पुलिस की गोलीबारी, डीएम की मंजूरी नहीं थी! कांग्रेस ने नियम गिनाकर सवाल खड़े किए

Congress का दावा है कि Ladakh Police ने फायरिंग के लिए ऑन ड्यूटी मजिस्ट्रेट से अनुमति नहीं ली थी. कांग्रेस ने अपने ज्ञापन में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के सेक्शन 149 का हवाला दिया है, जिसके मुताबिक प्रदर्शनकारियों को काबू में लाने के लिए गोली चलाने से पहले डीएम की परमिशन लेना अनिवार्य है.

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Congress accuses Ladakh police fired without DM permission during protest in ladakh
लद्दाख में सितंबर में प्रदर्शन के दौरान की तस्वीरें. (Photo: PTI)
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सचिन कुमार पांडे
27 नवंबर 2025 (Published: 08:09 AM IST)
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कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि लद्दाख में सितंबर में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने बिना डीएम की अनुमति के भीड़ पर गोली चलाई थी. कांग्रेस ने मामले की जांच के लिए बने ज्यूडिशियल कमीशन को मेमोरेंडम यानी ज्ञापन सौंपते हुए यह आरोप लगाया है. कांग्रेस का कहना है कि पुलिस ने भीड़ को हटाने के लिए आंसू गैस छोड़ने और लाठीचार्ज करने जैसे प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया, बल्कि सीधे बेगुनाह भीड़ पर गोली चला दी.

द हिंदू के अनुसार कांग्रेस का दावा है कि पुलिस ने फायरिंग के लिए ऑन ड्यूटी मजिस्ट्रेट से अनुमति नहीं ली थी. कांग्रेस ने अपने ज्ञापन में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के सेक्शन 149 का हवाला दिया है, जिसके मुताबिक प्रदर्शनकारियों को काबू में लाने के लिए गोली चलाने से पहले डीएम की परमिशन लेना अनिवार्य है. लद्दाख के सीनियर कांग्रेस लीडर नवांग रिग्ज़िन जोरा ने यह ज्ञापन कमीशन को सौंपा है.

चश्मदीदों का दिया हवाला

ज्ञापन में कहा गया है कि प्रदर्शन में शामिल लद्दाख एपेक्स बॉडी और अन्य चश्मदीदों ने पुष्टि की है कि डीएम की तरफ से फायरिंग का कोई ऑर्डर जारी नहीं किया गया था. कांग्रेस ने फायरिंग को गैरकानूनी बताते हुए कहा है कि लद्दाख पुलिस की जो प्रतिक्रिया थी, वह लोकतंत्र में पहले कभी नहीं हुई और यह मंजूर नहीं है. कांग्रेस ने ज्ञापन में कहा है कि यह प्रदर्शन लद्दाख की सांस्कृतिक विरासत, इकोलॉजी और आर्थिक हित बचाने के लिए किए जा रहे थे.

कांग्रेस ने पीड़ित परिवारों के लिए आर्थिक और मनोवैज्ञानिक मदद की भी मांग की है. साथ ही कहा है कि उसे उम्मीद है कि इस बेरहम काम के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक समेत कई निर्दोष लोग बिना किसी सबूत के हिरासत में रखे गए हैं. पार्टी ने इसे संविधान के आर्टिकल 22 का उल्लंघन बताया है.

क्या हुआ था?

मालूम हो कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते हुए सितंबर में सोनम वांगचुक समेत कई एक्टिविस्ट भूख-हड़ताल पर बैठे थे. इसी दौरान 24 सितंबर को जब विरोध प्रदर्शन चल रहा था तो भीड़ हिंसक हो गई थी. द हिंदू के अनुसार हिंसा में चार लोगों की मौत भी हो गई थी. गृह मंत्रालय ने इस पर बयान जारी करते हुए कहा था,

प्रदर्शनकारियों ने कई ऑफिसों में आग लगा दी थी, सिक्योरिटी फोर्सेस पर हमला किया और पुलिस की गाड़ी में भी आग लगाई थी. बेकाबू भीड़ ने सुरक्षा बलों पर हमला किया, जिसमें 30 से ज़्यादा पुलिस/CRPF के जवान घायल हो गए. भीड़ ने पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाना और पुलिस वालों पर हमला करना जारी रखा. अपने बचाव में, पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें बदकिस्मती से कुछ लोगों के मारे जाने की खबर है.

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क्या हैं पुलिस फायरिंग के नियम?

बता दें कि पुलिस को सामान्य तौर पर किसी भी व्यक्ति पर गोली चलाने का अधिकार नहीं होता है. वह केवल विशेष मामलों में, जैसे भागते हुए अपराधी को पकड़ने या फिर अपनी सुरक्षा या सेल्फ डिफेंस में गोली चला सकती है. लेकिन इसकी भी बाद में जांच की जाती है कि क्या वाकई में गोली चलाने की जरूरत थी. भीड़ को काबू करने के मामले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के सेक्शन 149 में बताया गया है कि पुलिस डीएम के आदेश पर ही बल का इस्तेमाल कर सकती है. अन्यथा वह लाठीचार्ज या फिर आंसू गैस के गोले छोड़ने जैसे तरीकों से भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश कर सकती है. जरूरत पड़ने पर डीएम लोगों को हिरासत में लेने या फिर स्थिति बेकाबू होने पर फायरिंग के भी आदेश दे सकते हैं. बिना डीएम के आदेश के भीड़ पर गोली चलाना गैर-कानूनी माना जाता है. हालांकि, पुलिस पर अगर हमला होता है तो वह बिना डीएम के आदेश के भी अपनी सुरक्षा में गोली चला सकती है.

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