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गांव में पादरियों और ईसाईयों की एंट्री रोकने का पोस्टर लगा, HC ने कहा- 'ये असंवैधानिक नहीं'

राज्य सरकार ने कहा कि होर्डिंग का मकसद केवल दूसरे गांवों के ईसाई धर्म के उन पादरियों पर प्रतिबंध लगाना है जो आदिवासियों का अवैध धर्म परिवर्तन कराने के मकसद से गांव में एंट्री कर रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कन्वर्टेड ईसाइयों की एंट्री रोकने के होर्डिंग को असंवैधानिक नहीं माना. (फाइल फोटो: ITG)
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मौ. जिशान
1 नवंबर 2025 (Published: 08:13 PM IST)
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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक याचिका निपटारा करते हुए आठ गांवों में 'पादरियों' और 'कन्वर्टेड ईसाइयों' की एंट्री रोकने के लिए लगे होर्डिंग को ‘असंवैधानिक’ नहीं माना है. कोर्ट ने कहा कि ये होर्डिंग आदिवासी समुदाय और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए लगाए गए हैं.

इस मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभू दत्ता गुरु की बेंच ने 28 अक्टूबर के आदेश में कहा,

"लगता है कि संबंधित ग्राम सभाओं ने जनजातियों और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत के हितों की रक्षा के लिए एहतियाती तरीके के तौर पर होर्डिंग लगाए हैं."

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कांकेर जिले के रहने वाले दिगबल टांडी ने इन होर्डिंग को हटाने के लिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. अपनी याचिका में उन्होंने ईसाई समुदाय और उनके धार्मिक नेताओं को ग्रामीण आबादी से अलग-थलग करने का आरोप लगाया था.

टांडी ने याचिका में आरोप लगाया कि पंचायत विभाग ने जिला पंचायत, जनपद पंचायत और ग्राम पंचायतों को एक सर्कुलर जारी कर 'हमारी परंपरा, हमारी विरासत' का शपथ पत्र पास करने के लिए निर्देशित किया. टांडी ने दावा किया कि इस सर्कुलर का असल मकसद ईसाई पादरियों और धर्म परिवर्तन करने वाले ईसाइयों की गांवों में एंट्री पर रोक लगाना था.

दिगबल टांडी ने यह भी आरोप लगाया कि इस फैसले से ईसाई समुदाय के बीच धार्मिक नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि ईसाई समुदाय के सदस्यों के खिलाफ धार्मिक नफरत फैलाने के लिए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र तक विस्तार) एक्ट (PESA), 1996 के प्रावधानों का गलत इस्तेमाल करके सर्कुलर पास किया गया था.

राज्य सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) यशवंत ठाकुर ने इस मामले में दलील दी कि PESA के नियम ग्राम सभा को अपनी स्थानीय सांस्कृतिक विरासत, जैसे देवी-देवताओं के स्थान, पूजा पद्धति, संस्थाएं (जैसे गोटुल और धुमकुड़िया) और मानवतावादी सामाजिक परंपराओं को बचाने का अधिकार देते हैं.

उन्होंने दलील दी,

"संबंधित ग्राम सभा के लगाए गए होर्डिंग का मकसद केवल दूसरे गांवों के ईसाई धर्म के उन पादरियों पर प्रतिबंध लगाना है जो आदिवासियों का अवैध धर्म परिवर्तन कराने के मकसद से गांव में एंट्री कर रहे हैं."

उन्होंने आगे कहा कि होर्डिंग में कहा गया है कि आदिवासियों को बहला-फुसलाकर अवैध धर्मांतरण कराना उनकी संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है. AAG ठाकुर ने यह भी कहा कि इससे पहले कुछ जगहों पर कानून-व्यवस्था की समस्याएं पैदा हुई थीं. उन्होंने 2023 में नारायणपुर जिले में हुए दंगे का जिक्र किया, जहां आदिवासियों ने कथित तौर पर एक चर्च को अपवित्र किया और पुलिस अधीक्षक (SP) समेत पुलिस वालों पर हमला किया.

हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि इन होर्डिंग को अवैध रूप से धर्मांतरण रोकने के मकसद से लगाना 'असंवैधानिक' नहीं है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर फैसला सुनाया,

"…लालच या धोखाधड़ी के जरिए जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए होर्डिंग लगाना असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है."

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले किसी भी दूसरे कानूनी उपाय का इस्तेमाल नहीं किया. आदेश में कहा गया कि किसी भी शिकायत के निपटारे के लिए हाई कोर्ट का रुख करने से पहले किसी भी पक्ष को उपलब्ध वैकल्पिक कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करने का चाहिए.

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