पड़ताल: क्या 'रामचरितमानस' में चमगादड़ों से कोरोना जैसी बीमारी फैलने की बात पहले से लिखी है?
दावा है कि 'उत्तरकांड' के 121वें दोहे में लॉकडाउन को ही एकमात्र इलाज बताया गया है.
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दावा
सोशल मीडिया पर दावा
किया जा रहा है कि रामायण में कोरोना वायरस वाली त्रासदी का जिक्र पहले से मौजूद है. दावे के मुताबिक, 'रामचरितमानस' के दोहा नंबर 120 में लिखा है कि जब पाप बढ़ जाएंगे, तो चमगादड़ अवतरित होंगे. फिर उनसे संबंधित बीमारी चारों तरफ फैल जाएगी.(आर्काइव लिंक
)
दावे में इससे बचने का सिर्फ एक ही तरीका बताया गया है- प्रभु भजन और समाधि में रहना. इसके साथ एक तस्वीर शेयर की जा रही है. इसमें कुछ दोहे लिखे हैं. पन्ने के ऊपर में 'रामचरितमानस' लिखा है. हम दावे में बिना किसी बदलाव के आपको ज्यों का त्यों पढ़ा रहे हैं
श्रीरामचरितमानस के दोहा नंबर 120 में लिखा है जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादरअवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएंगी और लोग मरेंगे और दोहा नंबर 121 में लिखा है की एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन दान और समाधि में रहना यानी लोक डाउन !!!जय श्री राम!!!
दावा फेसबुक और ट्विटर
पर कई जगह शेयर किया जा रहा है. वॉट्सऐप पर भी ये खूब फॉरवर्ड किए जा रहे हैं. (आर्काइव लिंक
)
ऐसे और दावे आप यहांरामायण के दोहा नंबर 120 में लिखा है जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादरअवतरित होंगे चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएंगी और लोग मरेंगे और दोहा नंबर 121 में लिखा है की एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन दान और समाधि में रहना यानी,लॉकडाउन 🙏 pic.twitter.com/WwArzbSGTo
— संजय हिंदुस्तानी 🇮🇳 (@SanjayK86863472) April 21, 2020
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पड़ताल
'दी लल्लनटॉप' ने इस दावे की पड़ताल की. हमारी पड़ताल में यह दावा झूठ निकला. ये बात सही है कि जिस दोहे का ज़िक्र यहां हो रहा है, वो अवधी में लिखे गए महाकाव्य 'रामचरितमानस' का ही है. लेकिन इसका भावार्थ गलत बताया जा रहा है.
इसके भावार्थ सहित छपी प्रति हमें मिली. इस दोहे के भावार्थ में चमगादड़ से मौत होने का ज़िक्र नहीं है.
'रामचरितमानस' की सबसे ज्यादा प्रचारित और प्रसारित संस्करण गीता प्रेस
, गोरखपुर ने छापा है. इसके टीकाकार यानी व्याख्या करने वाले हैं- हनुमान प्रसाद पोद्दार. खोजने पर
ये दोहा 'रामचरितमानस' के 'उत्तरकांड' में मिला. (दोहा संख्या 121 क)
सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥ सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा॥इस दोहे का गीता प्रेस, गोरखपुर के मुताबिक भावार्थ है-
जो मूर्ख मनुष्य सब की निंदा करते हैं, वे चमगीदड़ (चमगादड़) होकर जन्म लेते हैं. हे तात! अब मानस-रोग सुनिए. जिनसे सब लोग दु:ख पाया करते हैं.इसमें कहीं भी चमगादड़ से मौत का ज़िक्र नहीं है.
बाईं ओर दिख रही तस्वीर (व्याख्या) गीता प्रेस, गोरखपुर की ओर से प्रकाशित श्रीरामचरितमानस से ली गई है. दाईं ओर है वायरल दावे की तस्वीर.
इसके बाद हमने 121 वां दोहा जांचा. (दोहा संख्या 121ख).
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥ काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥इसका भावार्थ है-
सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है. उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है, जो सदा छाती जलाता रहता है.गीता प्रेस, गोरखपुर की ये प्रतियां ऑनलाइन
भी उपलब्ध हैं, जिसे आप यहां क्लिक करके देख सकते हैं.
इन दोनों दोहों में कहीं भी कोरोना वायरस या महामारी का जिक्र नहीं है. एक में निंदा और दूसरी में मोह, अज्ञान की बात हुई है.
नतीजा
हमारी पड़ताल में 'रामचरितमानस' के 'उत्तरकांड' के एक दोहा में कोरोना महामारी या चमगादड़ों से होने वाली किसी बीमारी का जिक्र होने का दावा झूठा पाया गया. 'रामचरितमानस' के इस दोहे में लिखा गया है कि निंदा करने वाले लोग चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं. बीमारी फैलने जैसी कोई बात इसमें नहीं लिखी गई है.
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