लॉकडाउन में खेती-बाड़ी करने चले गए थे ऋषभ शेट्टी, वहीं से मिला 'कांतारा' का आइडिया
'कांतारा' को अपना पूरा समय देने के लिए ऋषभ शेट्टी शहरी जीवन छोड़ पिछले 5 सालों से गांव में रह रहे हैं. उनके बच्चे भी गांव के स्कूल में पढ़ते हैं.
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Rishab Shetty ने Kantara फ्रैंचाइज़ की शुरुआत क्रिएटिविटी में नहीं, बल्कि मजबूरी में की थी. Covid-19 Pandemic के दौरान पूरी दुनिया घरों में बंद हो गई थी. ऋषभ पर भी इसका गहरा असर पड़ा. एक वक्त पर तो वो अपने गांव खेती करने चले गए थे. मगर इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिसने उन्हें 'कांतारा' बनाने के लिए प्रेरित कर दिया.
ऋषभ और रुक्मिणी वसंत इन दिनों 'कांतारा: चैप्टर 1' का प्रमोशन कर रहे हैं. इसी दौरान उन्होंने आज तक चैनल से बात की. इस इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि 'कांतारा', जिसका अर्थ जंगल होता है, इसका बीज कैसे पड़ा. जवाब में ऋषभ ने कहा,
"दूसरे लॉकडाउन का समय था. तो उस वक्त हम आपस में चर्चा कर रहे थे कि दो-दो लॉकडाउन हो चुका है. आगे हम कुछ कर नहीं सकते. इसलिए खेती-बाड़ी करते हैं. एग्रीकल्चर में चले जाते हैं. फिल्ममेकिंग फिलहाल बंद कर देना चाहिए. तो हम मेरे गांव कुंडापुर, केराडी में चावल और बाकी चीजों को लेकर प्लानिंग कर रहे थे."

'कांतारा' की ओरिजिन स्टोरी बताते हुए वो आगे कहते हैं,
"उस दौरान खेती को लेकर मेरे एक दोस्त ने एक जोक मार दिया. उसके पापा को कोई दिक्कत हुई थी इस काम में. पहले लॉकडाउन में मैंने एक लॉकडाउन फिल्म (हीरो) की थी. वो भी केवल 24 क्रू मेंबर्स के साथ. तो इस बार भी करते हैं, उसने मुझे ऐसा कहा. तो मैंने भी हामी भर दी."
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ऋषभ कहते हैं,
"इस तरह दूसरी लॉकडाउन फिल्म की तरह इस पर (कांतारा) काम शुरू हुआ. मैंने खेती और हमारे जन-जीवन को और एक्सप्लोर करना शुरू किया. उसमें जान डालने की कोशिश की. जंगली सुअर और दैवा का कनेक्शन- ये सब फ़्लो में कनेक्ट होता रहा. जो बुल रेसिंग, जिसे आप कंबला कहते हैं, उसका एक कॉन्सेप्ट मैंने लिख रखा था. उसे भी इसमें शामिल किया गया. फिर 3-4 महीने में हम प्री-प्रोडक्शन खत्म कर सीधे शूट पर चले गए. कांतारा ऐसे शुरू हुआ."

ऋषभ ने 'कांतारा' के ज़रिए तुलु क्षेत्र की लोकल कहानी को ग्लोबल स्केल पर ला खड़ा किया. मगर इसके लिए उन्हें शहरी जीवन से दूरी बनानी पड़ी. चूंकि ये फ्रैंचाइज़ उनके गांव और उसके आसपास की लोक कथाओं पर आधारित है, इसलिए उन्होंने इसे रियल लोकेशन पर ही शूट करना सही समझा. इस वजह से वो पिछले 5 सालों से अपने गांव कुंडापुर में रह रहे हैं. यही नहीं, उनका पूरा परिवार भी उनके साथ गांव शिफ्ट हो चुका है. ऋषभ के मुताबिक, उनके बच्चे गांव के ही एक स्कूल में पढ़ते हैं. मगर अब वो उन्हें बैंगलोर शिफ्ट करने के बारे में सोच रहे हैं.
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