कांतारा चैप्टर 1 : पुकारा तो पंजुरली अवश्य आएंगे (Kantara Chapter 1 Review)
2022 की अपनी बेजां फेमस फ़िल्म "कांतारा" के बाद एक्टर-डायरेक्टर-राइटर ऋषभ शेट्टी अब लेकर आए हैं उसकी अगली कड़ी - "कांताराः अ लेजेंड - चैप्टर 1." कैसी है ये हिंदी में डब माइथोलॉजिकल फैंटेसी कन्नड़ा मूवी, जानिए हमारे इस रिव्यू में, पूर्णतः स्पॉयलर फ्री.

डायरेक्टर ऋषभ भेट्टी की कन्नड़ा माइथोलॉजिकल एक्शन फ़िल्म "कांताराः अ लेजेंड - चैप्टर 1" ईश्वर का मधुबन है. कहानी में भी और सच में भी. एक ऐसी फ़िल्म, जो मानो आप पर काला जादू कर देती है. आपको आपकी सीट से बांध देती है. आप चाहकर भी हिल नहीं सकते. एक तरह से "कांतारा चैप्टर 1" सिनेमा की परिभाषा बन जाती है. यानी - वो जो आपको ओवरवेल्म कर दे, आपकी इंद्रियों पर कब्ज़ा कर ले, आपको दूसरी दुनिया में ट्रांसपोर्ट कर दे. यह सब, यह फिल्म करती है. निश्चित रूप से, मेरे लिए यह साल की बेस्ट फिल्म है, यह जानते हुए भी कि कई फिल्में अभी आनी हैं, यहां तक कि हॉलीवुड की भी. यह एक विराट फिल्म है. इन्वेंटिव. ख़ूब महत्वाकांक्षी. अल्फ्रेड हिचकॉक की इस सीख को फ़िल्म अलग ही स्तर पर लेकर चली जाती है कि - "आपका विलेन जितना सफल होगा, आपकी पिक्चर उतनी ही ज्यादा सफल होगी."
इसे देखते हुए हमारा ह्रदय, धम्म से नीचे पाताल में गिरता जाता है और अथाह उछाल भरकर अंतरिक्ष में पहुंचता जाता है. हम चकराने लगते हैं, ठीक वैसे ही जैसे पॉल थॉमस एंडरसन की अनूठी फ़िल्म "वन बैटल ऑफ्टर अनादर" के एक सीन में माइकल बॉमन की सिनेमैटोग्राफी के नशीले एक्सपेरिमेंट के चलते सच में चक्कर आने लगते हैं. "कांतारा चैप्टर 1" को भी यह शीर्षक उपहार में दिया जा सकता है - "वन बैटल ऑफ्टर अनादर". क्योंकि एक के बाद एक आनंद आता है, युद्ध सी स्थितियां आती जाती हैं. अंत में कुछ ऐसा होता है जो आप सोच भी नहीं सकते. आपकी सारी सिनेमाई चतुराई धरी रह जाती है. आप बौरा जाते हो एक तरह से. यह ऋषभ और उनके राइटर साथियों का कमाल हैं.
"कांतारा चैप्टर 1" की कहानी 2022 में आई मूल फ़िल्म से अलग है. परंतु इस फ़िल्म फ्रैंचाइज में यह खासी चतुराई बरती गई कि कहानियां एक दूसरे से कनेक्ट होते हुए भी कनेक्टेड नहीं है. बस वे एक माइथोजिकल, प्राचीन, दंतकथात्मक रूप लिए हुए हैं ("कांतारा चैप्टर 2" एक और दंतकथा के साथ शुरू होगी). इस कहानी के केंद्र में बेड़मे नाम का युवक है जिसे ऋषभ शेट्टी ने पावरफुल ढंग से प्ले किया है. सनकी, बुरे राजा कुलसेखर के रोल में गुलशन दैवय्या अच्छे हैं. उनके किरदार का एक लार्जर, अनदिखता उद्देश्य है जो फ़िल्म के अंत में ही उद्घाटित होता है. राजकुमारी कनकवती के रोल में रुक्मिणी वसंत फ्रैश, कोमल, सुंदर और हक्का बक्का करने वाली हैं.
फाइट कोरियोग्राफर टोडोर लैज़रोव का एक्शन इतना आविष्कारशील है कि दिमाग सोचेगा, क्या इसके एक्शन पीस "आरआरआर" और "बाहुबली" से भी आगे निकल गए हैं? हालांकि तुलना करना ठीक नहीं लेकिन शायद निकल भी गए हैं कुछ मायनों में. ऐसा लगने की एक वजह यह भी है कि लैज़रोव ने ही "आरआरआर" के स्टंट किए थे. वे "ट्रॉय", "गेम ऑफ थ्रोन्स" के एक्शन का भी हिस्सा थे. उनका एक्शन, ऋषभ का डायरेक्शन और बी. अजनीश लोकनाथ का बैकग्राउंड म्यूजिक मिलकर हमें निचोड़ देते हैं. हमारा ह्रदय ख़ून को इतनी बदहवासी से पंप कर रहा होता है, और कहीं कोई अंत नजर नहीं आता.
बी. अजनीश का बैकग्राउंड स्कोर और म्यूजिक माटी की धुनों की खुशबू लिए है. वे माइथोलॉजी, जंगल, कबीलाई संस्कृति और कंटेंपरेरी आवाजों, यंत्रों का इस्तेमाल ताकतवर ढंग से करते हैं. म्यूजिक इतना फ्यूचरिस्टिक भी है कि यह जब बजेगा तो बर्निंग मैन फेस्टिवल में भी कुछ और न बजेगा. बीजीएम फ़िल्म की सबसे बड़ी मज़बूतियों में से है. कभी रुला देता है और कभी प्रलय सा ला देता है. अनहद. आसमान छूने वाला. आपको मूल "कांतारा" के बेहतरीन म्यूजिक की कमी नहीं खलती है. यह और बात है कि इस बार कहानी ज्यादा बड़ी हो गई है और ज्यादा एम्बीशियस है. इसकी गति तेज़ है.
इस बार फ़िल्म रूपकों, इशारों, प्रतीकों से बाहर आ गई है. अब यह खुलकर एक धार्मिक फ़िल्म है जो दर्शकों को यकीन दिलाती है कि यदि कोई बिपदा आन पड़ी और ईश्वर को पुकारा तो वे मदद को अवश्य आएंगे. कन्नड़ा सिनेमा में पहली बार पंजुरली देवता को दिखाने वाली 1975 में आई फ़िल्म "चोमना दुड़ी" में अस्पृश्य चोमा पर दुखों के अंगार बरसते रहते हैं, और वो हारा, निराश, ढोल बजाता-बजाता मर जाता है लेकिन पंजुरली नहीं आते. परंतु "कांतारा चैप्टर 1" में मनुष्यों पर जब अत्याचार होता है तो पंजुरली और गण जरूर आते हैं. वैसे इस फ़िल्म को बनाने वाले "पंजुरलियों" में ऋषभ, टोडोर, बी अजनीश के अलावा अरविंद एस. कश्यप भी है जिन्होंने असंभव सी लगने वाली स्थितियों और पागल एक्शन के बीच सिनेमैटोग्राफी को साधा है. उनका कैमरावर्क और अजनीश का म्यूजिक फ़िल्म के वीर रस, शृंगार रस, रौद्र रस और भक्ति रस को कई गुना प्रभावशाली बना देते हैं. एडिटर सुरेश संकलन, प्रोडक्शन डिजाइनर बंगलन, आर्ट डिजाइनर धरणी गंगेपुत्रा और दर्जनों लोगों की विजुअल इफेक्ट्स की टीम ने परफेक्शन की हद तक काम किया है.
एक विरली फ़िल्म. निर्विवाद रूप से, न तो ऐसी फ़िल्म कभी देखी है, न देखेंगे.
Film: Kantara: A Legend – Chapter 1 । Director: Rishab Shetty । Cast: Rishab shetty, Rukmini Vasanth, Jayaram, Gulshan Devaiah । Writer: Rishab Shetty, Anirudh Mahesh, Shanil Gowtham । Editor: Suresh Mallaiah । Director of Photography: Arvind S Kashyap । Music & Background Score : B Ajaneesh Loknath । Production Designer : Banglan । Costume Designer : Pragathi Shetty । Art Director: Dharani Gangeputra । Stunt Choreographers : Arjun Raj, Todor Lazarov (Juji), Ram - Laxman, Mahesh mathew, Mithun Singh Rajput । Run Time: 168 minutes । Watch at: Cinemas (Release - 2 October, 2025)
वीडियो: कैसी है नीरज घेवान की फिल्म 'होमबाउंड'?