'रेप ऑफ अवंतिका', 'बाहुबली' के सबसे चर्चित रिव्यू पर तमन्ना बिगड़ीं, अब क्रिटिक का जवाब आया
"बाहुबली का वो सीन दिखाता है कि महिला जो शुरुआत में छेड़खानी का विरोध कर रही है, वो बाद में उसके साथ प्रेम कर रही है. ये खतरनाक है. क्योंकि ये उसी सोच को मज़बूत करता है, कि जब महिला की ना में ही हां या शायद होता है."

SS Rajamouli की Baahubali की तारीफ़ दुनिया-जहां के फिल्म क्रिटिक्स ने की. मगर एक रिव्यू ऐसा भी था, जिस पर Tamannaah Bhatia ने तल्ख़ अंदाज़ में बात की थी. दरअसल, फिल्म क्रिटिक Anna Vetticad ने ‘बाहुबली’ के अपने रिव्यू को टाइटल दिया- The Rape of Avantika. वो लिखती हैं कि कैसे अवंतिका के कन्सेंट के बिना फिल्म का हीरो उसके बाल खोल रहा है. उसके शरीर पर टैटू बना रहा है. जब तमन्ना दी लल्लनटॉप के ख़ास कार्यक्रम गेस्ट इन द न्यूज़रूम में आईं, तो उन्होंने इस रिव्यू पर तीखी प्रतिक्रिया दी. उस रिव्यू के तमन्ना के इंटरप्रेटेशन पर अब अन्ना वेटिकैड ने अपना पक्ष रखा है. चूंकि दोनों पक्षों की बात सामने आनी चाहिए, इसलिए हम उनका बयान जस का तस साझा कर रहे हैं.
अन्ना वेटिकैड लिखती हैं,
"दी लल्लनटॉप को दिए हालिया इंटरव्यू में एक्टर तमन्ना भाटिया से स्क्रीन पर महिलाओं को दिखाए जाने के तरीके पर सवाल किया गया. खासतौर पर उस आर्टिकल के बारे में जो मैंने साल 2015 में दी हिंदू बिज़नेसलाइन में लिखा था, जिसका शीर्षक था- द रेप ऑफ़ अवंतिका." आप वो आर्टिकल यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.
क्या है ‘दी रेप ऑफ़ अवंतिका’?
ये आर्टिकल SS राजामौली की फिल्म 'बाहुबली: द बिगिनिंग' के एक सीन की आलोचना था. एक सीन में अवंतिका, प्रभास के किरदार पर हमला कर देती है. इसलिए क्योंकि वो बिना इजाज़त उसके शरीर को छू रहा था. जो आगे के सीन्स में दिखता भी है. दोनों की ये मुलाकात डांस के रूप में दिखाई गई है. जिसमें वो अवंतिका के योद्धा वाले कपड़ों को बदलकर मुलायम और सजावटी कपड़ों में बदल देता है. जबरदस्ती उसके बाल खोलता है. मेक-अप लगाता है. इस सीन के अंत में अवंतिका उससे लड़ नहीं रही होती. बल्कि अपने नए रूप से प्रभावित होकर उस आदमी से प्यार करने लगती है.
मैंने कहा था कि ये सीन यौन संबंधों में महिला की सहमति के उल्लंघन का एक प्रतिकात्मक- और रोमैंटिसाइज्ड रूप है.
'दी रेप ऑफ अवंतिका' रिव्यू फिल्म की एक आलोचना था. तमन्ना भाटिया की नहीं. हालांकि अपने हालिया इंटरव्यू में उन्होंने इस आर्टिकल का ज़िक्र उनकी आलोचना की तरह किया. इसे उन्होंने खुद पर अटैक की तरह लिया. उन्होंने कहा,
"जब लोग आपको कंट्रोल नहीं कर पाते, तो वो एक टेक्नीक इस्तेमाल हैं. वो है शर्म और ग्लानि. वो हमेशा आपको ऐसा महसूस कराते हैं कि आप जो भी करें, उसके लिए आपको शर्म आनी चाहिए. जैसे ही वो आपको ये महसूस करा देंगे, वो आप पर कंट्रोल पा लेंगे."
फिर उन्होंने भारतीय समाज में यौन दमन (sexual repression) पर लंबी बात की. उन्होंने कहा कि मेरे आर्टिकल में सेक्स को लेकर नकारात्मक सोच दिखती है. और मेरी मानसिकता ही ऐसी है कि मैं किसी भी चीज़ में सेक्स और शरीर को बुरा मानती हूं.
उन्होंने मेरे आर्टिकल को सेक्शुअल रिप्रेशन (यौन दमन) से जोड़ा. भाटिया ने मुझ पर निजी टिप्पणी करते हुए कहा-
“अगर आप किसी को कोई सबसे पवित्र चीज़ दिखाते हो, लेकिन अगर वो इंसान उसमें सेक्स को सबसे बुरी चीज़ मानता है, या आपके शरीर को बुरी चीज़ मानता है, या आपके पूरे सिस्टम को बुरी चीज़ मानता है, तो उसे वही नज़र आएगा.”
जब 'दी रेप ऑफ अवंतिका' पब्लिश हुआ था, तब मुझे बहुत से पाठकों ने लिखा कि वो इस सीन को लेकर पहले से असहज महसूस कर रहे थे. मगर उन्हें लगा कि शायद वो अकेले हैं, जिन्हें ऐसा लगा. कई लोगों ने बताया कि ये लेख उनके अनुभवों से मेल खाता है. कुछ लोगों ने कहा कि वो ये मान रहे थे कि वो ही 'बाहुबली' का वो सीन देख कर अहसज हुए हैं. इसके साथ ही मुझे बहुत गंदे, भद्दे कमेंट भी मिले. महिला-विरोधी बातें कही गईं. सांप्रदायिक गालियां भी मिलीं.
जब ‘द रेप ऑफ अवंतिका’ नाम का ये आर्टिकल पब्लिश हुआ, तब मुझे कई पाठकों के संदेश आए कि उन्हें भी वैसा महसूस हुआ. उनमें से बहुत सारे लोगों ने मुझे ये भी कहा कि मेरे आर्टिकल को पढ़ने से पहले उन्हें लगा कि ‘बाहुबली’ के उस सीन से शायद वही असहज हो रहे हैं. अश्लील और यौन हिंसा भरी बेहूदी टिप्पणियों, साम्प्रदायिक और स्त्री विरोधी बातों के साथ मुझ पर अटैक किया गया.
ये सब देखते हुए मैं कह सकती हूं कि तमन्ना भाटिया का ये इंटरव्यू शायद सबसे अजीब और बेतुका जवाब है, जो मैंने बीते 10 सालों में देखा है.
उस लेख में मैंने सिर्फ इतना कहा था कि फिल्म में एक महिला की सहमति के बिना उसके शरीर के साथ जो होता है, उसे रोमैंटिक तरीके से दिखाया गया है. और ये गलत है. मैंने ये लिखा कि ये प्रतीकात्मक रूप से रेप का खूबसूरत चित्रण है. जिसे तमन्ना ने ऐसे समझा कि मैं उन्हें कंट्रोल करना चाहती हूं. मैं ऐसे इंसान को क्यों कंट्रोल करना चाहूंगी, जिससे मेरा कोई निजी संबंध ही नहीं है.
हालांकि ये मेरे बारे में नहीं है.
यहां मुद्दा है, हमारे समाज में गहरे तक बैठी मिसोजिनी. जिस वजह से भाटिया ने फिल्म में स्टॉकिंग, हैरसमेंट और सेक्शुल हिंसा को प्रेम स्वीकृति मानते हुए इसे नॉर्मलाइज़ करने की तरफदारी की.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 51 केस रजिस्टर होते हैं. भारत में महिलाओं पर एसिड अटैक होते हैं. रेप होते हैं. उन्हें जान से मार दिया जाता है. क्योंकि उन्होंने किसी लड़के को रिजेक्ट कर दिया.
'बाहुबली' फिल्म का वो सीन दिखाता है कि महिला जो शुरुआत में छेड़खानी का विरोध कर रही है, वो बाद में उसके साथ प्रेम कर रही है. ये खतरनाक है. क्योंकि ये उसी सोच को मज़बूत करता है, कि जब महिला की ना में ही हां, या शायद होता है. सच्चा प्यार वही है, जो आपको खारिज करे, तब भी आपको कोशिश करते रहना चाहिए. और ये एक पुरुष पर निर्भर करता है कि वो स्त्री को बताए कि वो कितनी सुंदर है.
ऐसे में मुझे मेरे लिए भाटिया की तरफ से की गई अपमानजनक टिप्पणी की परवाह नहीं है. उन्होंने कहा कि वो मुझे या मेरे बारे में जानती नहीं. फिर भी तकरीबन एक दशक से मेरा वो आर्टिकल उनके जेहन में घर किए बैठा है. मुझे उनके अभिनय के ढोंग से फर्क नहीं पड़ता. मुझे फर्क इस बात से पड़ता है कि लोगों की सोच पर असर डालने वाली एक मशहूर हस्ती होते हुए भी उन्होंने ऐसी बात कही. जिनके शब्दों का असर लाखों लोगों पर पड़ता है. उन्होंने उस आर्टिकल को ग़लत तरीके से पेश किया और लोगों को गुमराह किया. उन्होंने सेक्स और सेक्शुअल वायलेंस को एक ही बता दिया. उन्होंने समाज की उस पुरुष प्रधान मानसिकता को बल दिया, जिसने महिलाओं को ही नहीं, पुरुषों को भी नुकसान पहुंचाया है.
मीडिया के बड़े हिस्से ने भाटिया का इंटरव्यू जस का तस छापा है. बिना उनसे कोई सवाल पूछे. उनकी बातों पर सवाल किए बग़ैर मीडिया ने उनका इंटरव्यू छाप दिया. इसलिए मैं ये जवाब लिखने को मजबूर हो गई हूं.
मैं एक आम मध्यमवर्गीय इंसान हूं. मेरे पास करोड़पति एक्टर तमन्ना जैसा बड़ी पीआर टीम नहीं है. मेरे पास वो संसाधन नहीं है कि मैं अपनी बात बड़े वर्ग तक पहुंचा सकूं. मैं सिर्फ मीडिया और आम लोगों से उम्मीद करती हूं कि वे मेरी ये प्रतिक्रिया पढ़ें, समझें और फैलाएं.
मैं फिर कह रही हूं कि यहां बात मेरी या तमन्ना का नहीं, बल्कि उस सोच की है, जो महिलाओं को कमजोर और पुरुषों को ताकतवर दिखाने की कोशिश करती है. और अफसोस की बात ये है कि अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए कुछ महिलाएं भी इस सोच का हिस्सा बन जाती हैं."
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