फिल्म रिव्यू- अतरंगी रे
'अतरंगी रे' बोरिंग फिल्म नहीं है. इसे देखते हुए आपको फन फील होगा. मगर फन के अलावा इसमें कुछ भी नहीं है.
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फिल्म 'अतरंगी रे' के एक सीन में अक्षय कुमार, धनुष और सारा अली खान.
साल की मोस्ट-अवेटेड फिल्मों में से एक 'अतरंगी रे' डिज़्नी+हॉटस्टार पर रिलीज़ हो चुकी है. इस फिल्म को लेकर काफी चर्चा थी. क्योंकि 'रांझणा' के बाद धनुष एक बार फिर आनंद एल. राय की फिल्म में काम कर रहे थे. अक्षय कुमार फिल्म में उनके को-स्टार थे. इन सीजंड एक्टर्स के साथ सारा अली खान जैसी न्यूकमर को कास्ट किया गया था. ऐसे में पब्लिक बड़ी एक्साइटेड थी कि इस बार आनंद ने क्या बनाया है. मगर 'अतरंगी रे' को देखने के बाद आपका रिएक्शन होता है- ये क्या बना दिया?'अतरंगी रे' की कहानी शुरू होती है बिहार के सिवान में. एस. वेंकटेश विश्वनाथ यानी विशू दिल्ली में मेडिकल के फाइनल ईयर का स्टूडेंट है. अगले दो दिनो में कॉलेज की डीन की बेटी मैंडी के साथ उसकी सगाई है. मगर वो अपने परम मित्र मधुसूदन के साथ सिवान जाता है. उसे स्टेशन पर एक लड़की दिखती है, जिसको पकड़ने के लिए बहुत सारे लोग आए हुए हैं. ये लड़की हैं रिंकू सूर्यवंशी. रिंकू अपने जादूगर बॉयफ्रेंड सज्जाद अली खान के साथ 21 बार घर से भाग चुकी है. मगर हर बार पकड़ी जाती है. घरवालों को नहीं पता कि कथित बॉयफ्रेंड कैसा दिखता है, क्या नाम है. क्योंकि रिंकू ने कभी बताया नहीं.

अपने प्रेमी सज्जाद अली खान के साथ 21वीं बार भागती रिंकू सूर्यवंशी.
रिंकू की हरकतों से परेशान उसके घरवाले उसकी शादी करवाने का फैसला लेते हैं. इतने शॉर्ट नोटिस पर लड़का ढूंढना मुश्किल है. इसलिए लड़का किडनैप करके रिंकू की शादी करवा दी जाती है. जिस लड़के को किडनैप किया गया है, वो है अपना विशू. विशू को भी ये शादी नहीं चाहिए और रिंकू तो किसी और के साथ प्यार में है. सीन सॉर्टेड है. विशू और रिंकू दिल्ली जाएंगे और वहां से उनके रास्ते अलग-अलग हो जाएंगे. मगर ऐसा हो नहीं पाता. क्योंकि यू नो लव ट्रायंगल के कॉम्प्लिकेशंस एंड ऑल.

विशू को लाफिंग गैस और रिंकू को नशे की दवा खिलाकर दोनों की शादी करवा दी जाती है.
'अतरंगी रे' का बेसिक प्लॉट नया है. वीयर्ड है. मगर पेपर पर जितना अच्छा लगता है, परदे पर वैसा उतर नहीं पाता. आनंद एल. राय, यूपी-बिहार बेल्ट में रूटेड कहानियों को इमोशनल डेप्थ के साथ दिखाने के लिए जाने जाते हैं. 'तनु वेड्स मनु' और 'रांझणा' जैसी फिल्में इसका उदाहरण हैं. मगर 'ज़ीरो' के बाद राइटर हिमांशु शर्मा और आनंद एल. राय की लाइन लेंग्थ बिगड़ गई है. आनंद अब एंबिशस और एक्सपेरिमेंटल फिल्में बनाना चाहते हैं. जैसा कि हमने 'ज़ीरो' में देखा. वैसा ही कुछ हमें 'अतरंगी रे' को भी देखते हुए लगता है.

अपने प्रेमी सज्जाद अली खान खान के साथ रिंकू.
अब तक आनंद एक्टर्स के साथ काम कर रहे थे. अब वो सुपरस्टार्स के साथ काम कर रहे हैं. बड़ी फिल्म बनाने के पीछे का एक प्रेशर ये भी हो सकता है. मगर आनंद को ये समझना होगा कि बड़े सुपरस्टार्स उनके साथ इसलिए काम करना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने उनका पिछला काम देखा है. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि आनंद को कुछ नया करने से खुद को रोक देना चाहिए. मगर उन्हें इसका ख्याल रखना चाहिए कि बड़ी फिल्म बनाने के लिए उन्हें अपने क्राफ्ट या सेंसिब्लिटीज़ से समझौता न करना पड़े.
'अतरंगी रे' को देखते हुए आपको बार-बार ये महसूस होता है कि जो कहानी आपको दिखाई जा रही है, वो बहुत कन्विंसिंग नहीं है. ना ही उस विषय पर इस फिल्म को बनाने वालों का कॉन्सेप्ट क्लीयर है. इन मौकों पर ह्यूमर का सहारा लिया जाता है. क्योंकि कॉमेडी में सब चलता है. मगर एक टाइम के बाद फिल्म लॉजिक का ख्याल करना छोड़ देती है. फिल्म का पहला सीन सिवान रेलवे स्टेशन पर घटता है. जब रिंकू घर से भाग रही है और विशू ट्रेन से उतर रहा है. मगर इस बात का जवाब नहीं मिलता कि विशू बिहार में क्या करने गया था, जब दो दिन बाद चेन्नई में उसकी सगाई होनी है. ये फिल्म मेंटल हेल्थ जैसे मसले को छेड़ती है. हमने आपको पहले बताया कि इस विषय पर मेकर्स का कॉन्सेप्ट क्लीयर नहीं है. बावजूद वो इसे एक्सप्लोर करने की कोशिश करते हैं. ये चीज़ बीतते सीन्स और सीक्वेंसेज़ के साथ इग्नोरेंट, इनसेंसिटिव और अनफनी साउंड करने लगती है.

अपनी ओरिजिनल मंगेतर मैंडी के साथ सगाई करता विशू. मगर इस चेन्नई ट्रिप पर रिंकू भी उसके साथ गई हुई है.
इस फिल्म में विशू का रोल किया है धनुष ने. विशू की लाइफ ऑलमोस्ट सॉर्टेड थी. वो डॉक्टर बनने वाला था. उसके पसंद की लड़की से उसकी शादी होने जा रही थी. मगर वो बिहार जाता है और उसकी लाइफ बदल जाती है. अब वो रिंकू के साथ प्रेम में पड़ जाता है. मगर रिंकू किसी और के प्रेम में है. धनुष का कैरेक्टर अंडररिटन है. मगर फिर भी इस फिल्म की हाइलाइट वही साबित होते हैं. उन्हें स्क्रीन पर पूरी ईज़ के साथ एक भाव से दूसरे भाव तक की दूरी तय करते देखना कमाल का एक्सपीरियंस है. अक्षय कुमार का निभाया सज्जाद अली खान का किरदार फिल्म के नैरेटिव के लिए बहुत ज़रूरी है. मगर उसमें अक्षय के करने लायक कुछ खास है नहीं. ऊपर से अक्षय का सुपरस्टार होना, हर बार उनके एक्टर होने पर भारी पड़ जाता है.

धनुष का किरदार एक ही टाइम पर खुश और दुखी दोनों होता है. क्योंकि इसके लिए उसके पास वाजिब वजहें हैं. मगर जब वो दुख से खुशी में फूटते हैं, तो फील आ जाती है.
ये फिल्म सारा अली खान के निभाए रिंकू सूर्यवंशी के कैरेक्टर के बारे में है. सारा को शायद इस रोल के लिए इसीलिए चुना गया क्योंकि वो अपने सोशल मीडिया और रियल लाइफ में रिंकू के काफी करीब हैं. बबली, लाउड, फन लविंग. मगर अब उन्हें ये समझना चाहिए कि हर कैरेक्टर, हर सीन में उनसे लाउड या ओवर द टॉप होने की डिमांड नहीं करता. आशीष वर्मा ने विशू के मेडिकल कॉलेज फ्रेंड मधुसूदन का रोल किया है. वो बेसिकली फिल्म का कॉमिक रिलीफ डिपार्टमेंट संभालते हैं. मगर मुझे एक चीज़ समझ नहीं आती कि हिंदी सिनेमा में हीरो के दोस्त की लाइफ हीरो के इर्द-गिर्द ही क्यों घूमती रहती है. उसकी अपनी भी कुछ कहानी होगी, फिल्में कभी उसे एक्सप्लोर करने की कोशिश ही नहीं करतीं.

विशू के मेडिकल कॉलेज फ्रेंड मधुसूदन के किरदार में आशीष वर्मा. मधुसूदन की पूरी लाइफ उसके दोस्त के आसपास घूम रही है. मानों उसकी अपनी कोई लाइफ ही नहीं है. इन्हें आप बोल सकते हैं- गेट अ लाइफ ब्रो!
जब 'अतरंगी रे' का म्यूज़िक रिलीज़ हुआ, तो उसमें बड़ी डेप्थ वाली फीलिंग आई थी. ऐसा लगा था कि रहमान और आनंद की जोड़ी एक बार फिर 'रांझणा' टाइप कुछ क्रिएट करेगी. मगर ये फिल्म अपने एल्बम की भी लाज नहीं रख पाती. 'अतरंगी रे' बोरिंग फिल्म नहीं है. इसे देखते हुए आपको फन फील होगा. मगर फन के अलावा इसमें कुछ भी नहीं है. फिल्म खत्म होने के बाद आपको वो वजह ध्यान नहीं आएगी, जिसके लिए इस फिल्म को याद रखा जा सके. बस यहीं सारा खेल खत्म हो जाता है.