यूपी चुनाव में इस बार 73 सीटें संवेदनशील घोषित, लेकिन ये तय कैसे होता है?
संवेदनशील सीटों की लिस्ट में सबसे ज्यादा सीटें प्रयागराज जिले की हैं.
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यूपी में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद शुक्रवार 14 जनवरी से पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस बार यूपी पुलिस ने 403 विधानसभा सीटों में से 73 सीटों को संवेदनशील घोषित किया है. 2017 के विधानसभा चुनाव में 38 सीटों को संवेदनशील घोषित किया गया था. इस बार के चुनाव में और 35 संवेदनशील सीटें बढ़ी हैं.
चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद यूपी पुलिस ने कहा था कि 95 विधानसभा क्षेत्रों की पहचान "संवेदनशील" के रूप में हुई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि कानून-व्यवस्था और सुरक्षा बलों की तैनाती से संबंधित हालिया घटनाओं को ध्यान में रखते हुए इस संख्या को संशोधित कर 73 किया गया है.
सांकेतिक फोटो- PTI
हाल ही में कन्नौज के तीन इत्र व्यापारियों के घर छापा पड़ा था. इनमें से एक पीयूष जैन के यहां से 197 करोड़ कैश और 23 किलो सोना मिला था. इसके बाद सपा एमएलसी पुष्पराज जैन के भी छापा पड़ा था. इसलिए कन्नौज विधानसभा क्षेत्र को भी संवेदनशील घोषित किया गया है. इसी तरह मुख्तार अंसारी के विधानसभा क्षेत्र मऊ जिले की सदर सीट और भदोही जिले की ज्ञानपुर सीट को भी संवेदनशील घोषित किया गया है जो निषाद पार्टी के विधायक विजय मिश्रा का क्षेत्र है. कैसे तय होता है कि कौन सी सीट संवेदनशील है? किसी विधानसभा क्षेत्र को "संवेदनशील" घोषित करने के पीछे कई कारण होते हैं. इनमें राजनीतिक दलों के बीच कड़ी प्रतिद्वंद्विता, अपराधी तत्त्वों की मौजूदगी, सांप्रदायिक और जातिगत तनाव, उग्रवाद, पहले की कानून-व्यवस्था का इतिहास, कौन चुनाव लड़ रहा है जैसे कारण शामिल होते हैं.
इस बारे में और जानने के लिए दी लल्लनटॉप ने बात की रिटायर्ड IPS अधिकारी राजेश कुमार पांडेय से. वो उत्तर प्रदेश एसटीएफ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं. 2017 के चुनाव में वो अलीगढ़ के SSP थे. उन्होंने हमें बताया,
जब हम लोग संवेदनशील सीटों का निर्धारण करते थे, तो देखते थे कि किसी विधानसभा क्षेत्र में प्रधानी के इलेक्शन में कितने विवाद हुए थे. प्रधानी के इलेक्शन का विवाद ऐसा है कि जो जीतता है वो दूसरी पार्टी में होता है. वहीं हारने वाला उसकी अपोजिट पार्टी में होता है.
हमने देख लिया कि किसी विधानसभा क्षेत्र में 10-15 जगह विवाद हुआ था, इसका मतलब है कि पोलिंग के दिन विवाद होने की संभावना है. क्योंकि दो पक्ष ऐसे हैं जिनमें कशीदगी (मनमुटाव, तनाव) है. पंचायत के इलेक्शन में ऐसा हो चुका है.
राजेश कुमार पांडेय ने आगे बताया,
दूसरा हम ये देखते हैं कि उस विधानसभा क्षेत्र में क्या कोई सांप्रदायिक हिंसा तो नहीं हुई पिछले कुछ दिनों में. इसके अलावा पॉलिटिकल पार्टी के कैंडिडेट्स कौन हैं. इनमें से कोई ऐसे बैकग्राउंड से है जिसका क्रिमिनल रिकॉर्ड रहा है. इसके अलावा पिछले 4-5 सालों में People Representation Act के तहत कहां-कहां कितने मुकदमें कायम हुए. उस विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले थानों में कितने मुकदमे कायम हुए. मोटा0माटी ये छह-सात क्राइरेटरिया हैं जिसके आधार पर संवेदनशील सीटों को निर्धारित किया जाता है.पूर्व आईपीएस ने ये भी बताया कि पुलिस अधिकारी और मैजिस्ट्रेट दोनों मिलकर सीटों की रिपोर्ट भेजते हैं. इलेक्शन कमिशन इसकी मॉनिटर करता है. संवेदनशील सीटों पर कितनी फोर्स तैनात होती है? एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने बताया था कि संवेदनशील सीटों पर सुचारू रूप से चुनाव कराने के लिए सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की जाएगी. इस बारे में हमने राजेश कुमार पांडेय से पूछा तो उन्होंने बताया,
संवेदनशील सीटों पर मोबाइल फोर्स ज्यादा तैनात किया जाने लगा है. अब ऐसा नहीं है कि संवेदनशील क्षेत्र है तो अलग से PAC तैनात होगी. एरिया कम कर देते हैं. जैसे मान लीजए कि एक सेक्टर मैजिस्ट्रेट या सेक्टर पुलिस अधिकारी के पास 10 पोलिंग सेंटर हैं तो उसे 5-5 में बांट देंगे.2017 की 32 सीटें इस बार भी संवेदनशील 2017 के विधानसभा चुनाव में जिन 32 सीटों को संवेदनशील घोषित किया गया था, उन्हें इस बार के चुनाव में भी बरकरार रखा गया है. वहीं 6 सीटों को इस लिस्ट से हटा दिया गया है. ये सीटें हैं जौनपुर जिले की मड़ियाहू और शाहगंज, गाजियाबाद की लोनी, प्रयागराज में इलाहाबाद नॉर्थ, संभल जिले की गुनौर और औरैया जिले की दिबियापुर सीट.
इस बार की संवेदनशील सीटों की लिस्ट में सबसे ज्यादा सीटें प्रयागराज जिले की हैं. यहां की 12 में 8 सीटों को सेंसिटिव घोषित किया गया है. इसके बाद बलिया की पांच, बागपत, सहारनपुर, सिद्धार्थ नगर, बहराइच, जौनपुर, अंबेडकर नगर और आजमगढ़ जिलों के तीन-तीन निर्वाचन क्षेत्रों को भी संवेदनशील घोषित किया गया है.