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अमनमणि त्रिपाठी: पिता की तरह हत्या के आरोपी, जो जेल में रहकर MLA बने

पत्नी की हत्या के आरोपी, जिन्हें बसपा ने टिकट दिया है.

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बसपा में शामिल हुए अमनमणि त्रिपाठी (फोटो आजतक)
बसपा में शामिल हुए अमनमणि त्रिपाठी (फोटो: आजतक)
8 फ़रवरी 2022 (Updated: 8 फ़रवरी 2022, 18:28 IST)
Updated: 8 फ़रवरी 2022 18:28 IST
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मंगलवार 8 फरवरी को निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी की वजह से चर्चा में रहा. 2017 में यूपी के महाराजगंज की नौतनवां विधानसभा सीट से विधायक बने अमनमणि त्रिपाठी (Amanmani Tripathi) बसपा में शामिल हो गए हैं. मायावती की पार्टी ने उन्हें नौतनवां से टिकट भी दे दिया है.

कौन हैं अमनमणि त्रिपाठी?

अमनमणि त्रिपाठी यूपी के बाहुबली नेता और पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं. उनका जन्म 12 जनवरी 1982 को गोरखपुर में हुआ. अमनमणि त्रिपाठी की शुरुआती पढ़ाई सैंट जॉसेफ और DPS नोएडा में हुई. बाद में वो गोरखपुर वापस आए. यहां उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ गोरखपुर से बीए LLB की पढ़ाई की. अमनमणि के चर्चा में रहने का एक बड़ा कारण उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी हैं. वो और उनकी पत्नी मधुमिता हत्याकांड के चलते आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. अमरमणि त्रिपाठी लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं. बाद में महाराजगंज जिले की इस विधानसभा सीट का नाम नौतनवां हो गया. अमरमणि के बाद उनके बेटे अमनमणि त्रिपाठी 2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार यहीं से विधायक चुने गए थे. हालांकि ये अमनमणि का पहला विधानसभा चुनाव नहीं था. वो 2012 में सपा के टिकट पर नौतनवां से चुनाव लड़ चुके थे. तब कांग्रेस के कौशल किशोर सिंह ने उन्हें हरा दिया था. पांच साल बाद यूपी चुनाव में अमनमणि त्रिपाठी ने अपने विरोधी को 45 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. उस समय वो जेल में थे.

सपा ने काटा था टिकट

ऐसा बताया जाता है कि अमनमणि त्रिपाठी के परिवार के मुलायम सिंह के परिवार से करीबी रिश्ते रहे हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने अमनमणि त्रिपाठी को नौतनवां सीट से टिकट भी दिया था. लेकिन अपराधियों को टिकट ना देने के फैसले के बाद सपा ने उनका टिकट काट दिया था. अमनमणि ही नहीं, सपा ने मुख्तार अंसारी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था. बाद में अमनमणि ने नौतनवां से ही निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और जीता.

पत्नी की हत्या के आरोपी

अमनमणि त्रिपाठी अपनी पत्नी सारा की हत्या के आरोपी हैं. 2013 में दोनोंं की लखनऊ में मुलाकात हुई थी. वहां से हुई दोस्ती प्यार में बदली और बाद में उन्होंने शादी कर ली. दो साल बाद 9 जुलाई 2015 को फ़िरोज़ाबाद के पास एक कथित सड़क दुर्घटना में सारा की मौत हो गई. इसके 18 दिन बाद अमनमणि त्रिपाठी पर आरोप लगे कि उन्होंने अपनी पत्नी सारा की हत्या कर दी है. हालांकि हादसे में अमनमणि को भी चोटें आई थीं. लेकिन सारा सिंह की मां का कहना था कि उनकी बेटी की हत्या की गई है. वहीं अमनमणि बार-बार कहते रहे हैं कि एक्सीडेंट के कारण उनकी पत्नी की जान चली गई. उनका कहना है कि उन्हें फंसाया गया है और अभी तक उन्हें सजा नहीं हुई है. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है.

पिता का बचाव करते हैं

9 मई 2003 की घटना है. लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में मधुमिता शुक्‍ला नाम की 24 वर्षीय कवियत्री की गोली मार कर हत्‍या कर दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मधुमिता के प्रेग्नेंट होने की बात सामने आई. डीएनए जांच में पता चला कि उनके पेट में पल रहा बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का है. उन पर मधुमिता की हत्‍या का आरोप लगा. आरोप ये भी था कि इस पूरी साजिश में उनकी पत्‍नी मधुमणि भी शामिल थीं. छह महीने के भीतर ही देहरादून फास्‍टट्रैक कोर्ट ने अमरमणि, मधुमणि समेत चार लोगों को दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी. हालांकि अमनमणि त्रिपाठी अपने पिता का बचाव करते हैं. दी लल्लनटॉप को एक बार इंटरव्यू देते हुए अमनमणि त्रिपाठी ने कहा था कि ये बात साबित नहीं हो पाई कि उनके पिता ने ही मधुमिता की हत्या करवाई थी. उनके मुताबिक कोर्ट ने 400 पन्ने के जजमेंट में ये बात कहीं भी नहीं कही है. बहरहाल, बसपा में जाने से पहले ऐसी अटकलें लगाईं जा रही थीं कि अमनमणि निषाद पार्टी में जा सकते हैं. लोगों ने इस पर कहा कि अगर निषाद पार्टी अमनमणि त्रिपाठी को टिकट देती है तो इससे बीजेपी को नुकसान हो सकता था. क्योंकि इससे विपक्षी दलों को ये कहने का मौका मिल जाता कि बीजेपी और उसके सहयोगी अपराधियों को टिकट देते हैं. आखिरकार अमनमणि ने बसपा का हाथ थाम लिया.

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