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यूपी में बसपा को शून्य होने से बचाने वाला इकलौता विधायक कौन है?

लगातार तीसरी बार जीतने वाला विधायक.

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403 में से केवल एक सीट जीत पाई बसपा , बाएं - बसपा विधायक उमाशंकर , दाएं बसपा नेता मायावती (फोटो- आजतक)
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11 मार्च 2022 (Updated: 11 मार्च 2022, 11:21 IST)
Updated: 11 मार्च 2022 11:21 IST
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10 मार्च 2022 की शाम. जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे, तो टीवी चैनलों पर पार्टियों के खाने में लिखी हुई थी सीटों की संख्या. भाजपा गठबंधन के खाते में संख्या 270 के आसपास थी. सपा के पास 125 के आसपास की संख्या थी. कांग्रेस 2 सीट और अन्य प्रत्याशी 2 सीटों पर आगे थे. लेकिन एक खाना बसपा का भी था. बसपा के खाने में था एक विधायक. रिज़ल्ट पूरे हुए. बसपा उस एक पर ही रह गई. चर्चा हुई कि बसपा का ये एक विधायक कौन है, जो भाजपा गठबंधन के पौने तीन सौ और सपा के सवा सौ विधायकों के सामने विधानभवन में बैठेगा. वह सीट कौन सी थी. क्योंकि बसपा के बड़े नाम अपना बस्ता पहले ही पैक कर चुके थे. सीट थी बलिया जिले के चुनावी क्षेत्र रसड़ा की. विधायक का नाम है उमाशंकर सिंह. उमाशंकर सिंह ने बसपा की तरफ से चुनाव लड़ते हुए तीसरी बार चुनाव जीता है. उन्हें इस बार 87 हज़ार 887  वोट मिले हैं (43.82 प्रतिशत). उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी महेंद्र, जो की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ रहे थे, को 6 हज़ार 583 वोटों से हराया है. 403 में से एक सीट अपने नाम करने वाले उमाशंकर सिंह की छवि अपने इलाके में रॉबिनहुड जैसी है. सोशल मीडिया पर उनको अक्सर बाढ़ पीड़ितों, गरीब कन्याओं व प्राकृतिक आपदाओं में नुक़सान झेल चुके गरीब लोगो की मदद करते देखा जा सकता है. छात्रसंघ चुनाव से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले उमाशंकर पहली बार 2012 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेकर सक्रिय राजनीति में आए. ये वही साल था जब बसपा 206 सीटों से सीधे 80 सीट तक फिसल गयी थी. उस साल उमाशंकर को 84 हजार से अधिक वोट मिले थे. उन्होंने सपा के प्रत्याशी सनातन पांडेय को 52 हज़ार 825 वोटों से हराया था. 2017 में जहां बसपा का ग्राफ और नीचे जाते हुए मात्र 19 सीटों तक सिमट गया, तब भी उमाशंकर ने रसड़ा की सीट पर 92 हज़ार 272 वोट बटोरे थे. उस साल वे भाजपा के प्रत्याशी रामइकबाल सिंह को 33 हज़ार 885 वोटों से शिकस्त देकर दूसरी बार जीते थे. क्या कहती हैं मायावती? मायावती के पास बचा एक ही विधायक. जब चुनाव नतीजों के अगले दिन यानी 11 मार्च को मायावती ने मीडिया को संबोधित किया तो कहा कि मुसलमानों का वोट समाजवादी पार्टी में जाने के कारण बसपा को हारना पड़ा. उन्होंने कहा,
"यह नैरेटिव बनाया गया कि सपा ही बीजेपी को रोक सकती है, इससे सभी मुसलमानों का वोट समाजवादी पार्टी में शिफ्ट हो गया. "
अपने कोर वोटर बेस को धन्यवाद कहते हुए उन्होंने कहा,
"बीएसपी ने सपा पर भरोसा किया, यह हमारी सबसे बड़ी भूल थी. संतोष की बात यह है कि खासकर मेरी बिरादरी का वोट चट्टान की तरह मेरे साथ खड़ा रहा. उनका जितना भी आभार मैं व्यक्त करूं उतना कम है, मुस्लिम समाज का वोट अगर दलित के साथ मिलता तो परिणाम चमत्कारी होते."
मायावती के बयान से लगता है कि वह साल 2019 के लोकसभा चुनाव का ज़िक्र कर रही थीं. जब सपा के साथ गठबंधन के बाद बसपा चुनाव में उतरी थी. आंकड़े और जानकार ये भी कहते हैं कि 1989 से उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ रही बसपा का यह अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन है. अपने पहले चुनाव में 13 सीटें हासिल करने वाली बसपा आज एक सीट पर सिमट कर रह गयी है. 2007 में 206 सीटें जीतने वाली बसपा के ख़राब प्रदर्शन का एक बड़ा कारण मायावती का आसानी से उपलब्ध न होना बताया जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद समाज में मायावती कम दिखीं. कई बड़े मुद्दों पर उनका खुलकर न बोलना भी एक बड़ा कारण हो सकता है. एक और बड़ा कारण बसपा के जमीनी नेताओं का पार्टी से जाना है. ऐसे कई नेता या तो खुद पार्टी छोड़ गए या मायावती ने उन्हें निकाल बाहर किया. रामअचल राजभर और लालजी वर्मा को भी उन्होंने पार्टी से निकाल दिया था. ब्राह्मण-दलित की राजनीति भी इस बार कुछ ख़ास असर दिखा नहीं पायी.  हालांकि मायावती का कहना है कि जिस तरह 1977 की हार के बाद कांग्रेस ने खुद को खड़ा किया था, वैसे ही बसपा भी करेगी.

(यह खबर हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे लोकेश चौधरी ने की है.)

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