मॉनसून के मौसम में बारिश अपने साथ आफत भी लेकर आई. ये आफत गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में भी बरसी थी. चार दिनों तक हुई बारिश ने सुरेंद्रनगर के लोगों को इतना अस्त-व्यस्त कर दिया कि वो अब भी ठीक तरह से इस आफत से उबर नहीं पाए हैं. अपने नमक और कपास के लिए देश के साथ ही दुनिया भर में पहचान रखने वाले सुरेंद्रनगर की चुनावी फिजा इतनी गर्म है कि इस ठंड के मौसम में भी तपिश महसूस होती है. सुरेंद्रनगर जिले में पांच विधानसभाएं हैं. दसाड़ा, लिमबड़ी, वाधवान, चोटिला और धरंगधरा. इन पांच विधानसभाओं पर बीजेपी का कब्जा है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में जो सीट है उसका नाम है वाधवान.
वाधवान : 9 करोड़ रुपये में टिकट खरीदने की चर्चा

वाधवान से बीजेपी के टिकट पर वर्षाबेन दोषी विधायक हैं. पिछले दो बार से वो लगातार जीत रहीं हैं, लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें मौका नहीं दिया. जैन समुदाय से ताल्लुक रखने वाली वर्षाबेन का टिकट काटकर बीजेपी ने इस बार कारोबारी धनजी भाई पटेल पर दांव लगाया है. वही वर्षा का टिकट कटने पर बीजेपी के पूर्व मंत्री रंजीत सिंह झाला ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. रंजीत सिंह ने के साथ ही जैन समुदाय ने भी नाराजगी जताते हुए आरोप लगाया है कि धनजी भाई पटेल ने 9 करोड़ रुपये खर्च करके बीजेपी से टिकट खरीदा है. जैन समुदाय ने अपना प्रतिनिधित्व छिन जाने के बाद कहा है कि वो किसी स्वतंत्र उम्मीदवार को उतारेंगे, लेकिन किसी भी कीमत पर धनजी भाई पटेल को चुनाव नहीं जीतने देंगे.
वर्षाबेन ने 17558 वोटों से 2012 का चुनाव कांग्रेस के हिमांशु चिमनलाल को हराकर जीता था. 2007 में भी ये सीट वर्षा के ही पास थी. उससे पहले 2003 में भी बीजेपी के ही धनराज भाई गोविंद भाई को इस सीट से जीत हासिल हुई थी. 1998 में कांग्रेस के धनराज भाई वाधवान से चुनाव जीते थे. 2003 से ये सीट बीजेपी के पास है और इसी उम्मीद में बीजेपी ने एक नए कैंडिडेट और बड़े कारोबारी धनजी भाई पर दांव लगाया है.
वाधवान सीट पर निर्णायक भूमिका में रहने वाला पटेल समुदाय विरोध में खड़ा है, जिसकी वजह से वाधवान का चुनाव मजेदार हो सकता है. वहीं बीजेपी भी डैमेज कंट्रोल में जुटी हुई है. बीजेपी ने 9 करोड़ रुपये में टिकट बेचे जाने की बात को अफवाह करार देते हुए वर्षाबेन की ओर से एक पत्र जारी करवाया है, जिसमें धनजीभाई पटेल को वोट देने की अपील की गई है. वहीं कांग्रेस की ओर से यहां मोहनभाई डी पटेल उम्मीदवार हैं.
दसाड़ा, जिसका गांव बनाता है देश के लिए नमक

दसाड़ा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, जहां से पूनमभाई मकवाना बीजेपी से विधायक हैं. 2012 में पूनभाई ने कांग्रेस के मनहरलाल मकवाना को 21 हजार से अधिक वोटों से हराया था. 2007 में ये सीट बीजेपी के ही पास थी और उस वक्त शंभू प्रसाद बलदेव दास विधायक थे. 2003 के चुनाव में मनहरलाल मकवाना जीत गए थे, लेकिन उसके बाद उन्हें जीत नसीब नहीं हुई है. 1998 में बीजेपी के ही फकीर भाई राघाभाई वाघेला विधायक बने थे.
पार्टी जब 2017 के चुनाव के लिए पूनमभाई मकवाना को टिकट दे रही थी, तो पूनमभाई ने टिकट के लिए मना कर दिया. इसके बाद गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष और गुजरात में बीजेपी के दलित चेहरे रमनभाई वोरा को दसाड़ा से उम्मीदवार बनाया है. रमनभाई इससे पहले सांबरकाठा की आइदर सीट से चुनाव जीते थे. कांग्रेस से यहां नौशादजी बी सोलंकी उम्मीदवार हैं. ये वही सीट है, जिसका एक गांव है खाराघोड़ा, जहां पर बनता है देश का नमक. ये कच्छ के रन का हिस्सा है. ब्रिटिश राज में ये जगह बांबे प्रेसिडेंसी के अहमदाबाद जिले में थी. अपने नमक के उत्पादन के लिए मशहूर इस जगह पर एक सरकारी फैक्ट्री लगी थी, जिसे भारत साल्ट के नाम से जाना जाता था. अब इस कंपनी का नाम बदलकर भारत साल्ट लिमिटेड हो गया है, जो नमक बनाने वाली इकलौती पब्लिक सेक्टर की कंपनी है. देश का 75 फीयदी नमक का उत्पादन खाराघोड़ा से ही होता है.
खाराघोड़ा वो जगह है जहां 2013 में रन महोत्सव आयोजित किया गया था. खाराघोड़ा की जनसंख्या लगभग 11 हजार है, जहां शिक्षा का स्तर देश की शिक्षा के स्तर से नीचे है. जहां देश की सााक्षरता दर 59.5 फीसदी है, वहीं खाराघोड़ा में मात्र 41 फीसदी है. खाराघोड़ा में नमक का काम करने वाले लोग एक खास समुदाय के हैं, जिन्हें अगियार कहा जाता है. “अगर ” नमक का एक फॉर्म है, इसलिए नमक बनाने में लगे लोग अगियार के नाम से जाने जाते हैं. अगियार लोगों को बिजली का कनेक्शन, पीने का साफ पानी, टेलीफोन, मेडिकल सेवा, मकान और रेलवे जैसी कोई सुविधा नहीं मिलती है. अगियार कहते हैं कि सरकार की ओर से उन्हें हफ्ते या 10 दिन में एक बार पीने का पानी और मेडिकल वैन आती है.

मार्च 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खाराघोड़ा गए थे. वहां उन्होंने अगियार लोगों से मुलाकात की थी. उस वक्त अगियार लोगों ने राहुल से कहा था-
“हमलोगों को रन में सलाइन वाटर और पीने का पानी चाहिए. हम लोग नमक के उत्पादन के लिए आठ महीने तक यहां रहते हैं, लेकिन हमारे पास पीने का पानी तक नहीं है. सरकार की ओर से जो पानी आता है, वो भी बेहद कम है. सरकार की ओर से जो स्कूल चल रहे हैं, वो भी सिर्फ कागजों पर हैं.”<
अगियारों ने राहुल से नमक की कीमत का भी मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि 100 किलो नमक उत्पादन के लिए उन्हें मात्र 20 रुपये ही मिलते हैं, जबकि बाजार में नमक की कीमत 10 रुपये प्रति किलो तक है. राहुल गांधी ने उस वक्त राहुल ने अगियारों को मदद का भरोसा दिया था, लेकिन उनके हालात जस के तस हैं.
इस साल 14 नवंबर 2017 को आजादी के बाद पहली बार वोटर जागरूकता अभियान चलाया गया था. दीवाली के बाद अगियार अपने घरों को छोड़कर नमक बनाने चले आते हैं और आठ महीने तक यहीं रहते हैं. ऐसे में 9 दिसंबर को होने वाली वोटिंग के लिए अगियार लोगों को 30-40 किमी दूर जाना पड़ेगा. उन्होंने आयोग से आने-जाने के लिए गाड़ियों की व्यवस्था करने को कहा है.
लिमबड़ी,जहां कांग्रेस ने अपने पुराने उम्मीदवार पर भरोसा जताया है
2012 में जब चुनाव हुए तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच बेहद नजदीकी मुकाबला था. डेढ़ हजार वोटों के मामूली वोटों से कांग्रेस के सोमाभाई गंडलाल ने बीजेपी के किरित सिंह जीतूबा राणा को चुनाव में हरा दिया था. सोमाभाई की जीत इस मायने में भी महत्वपूर्ण थी कि किरित सिंह जीतूबा राणा 2003 और 2007 में बीजेपी के टिकट से विधायक बने थे. हालांकि 2013 में जब उपचुनाव हुए तो किरित सिंह जीतूबा राणा ने एक बार फिर से जीत हासिल कर ली. उन्होंने कांग्रेस के सतीश कोली पटेल को लगभग 25,000 वोटों से हरा दिया. उससे पहले 1998 में भी जब चुनाव हुए थे तो बीजेपी ही जीती थी और वहां से भावनभाई जीवनभाई विधायक बने थे. फिलहाल यहां से बीजेपी ने फिर से किरित सिंह जीतूबा राणा को ही उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस से उनके सामने सोमाभाई जी. पटेल हैं.
चोटिला, जहां के मंदिर की 900 सीढ़ियां चढ़ गए थे राहुल गांधी

राहुल गांधी ने जब गुजरात में चुनावी यात्रा की शुरुआत की थी, तो सबसे पहले द्वारकाधीश मंदिर पहुंचे थे. धार्मिक यात्राओं के समापन के लिए राहुल ने चोटिला के मशहूर चामुंडा माता मंदिर को चुना. माता के मंदिर की 900 सीढ़िया चढ़ने में राहुल गांधी ने 47 मिनट लगाए थे. चोटिला की धार्मिक यात्रा के साथ ही राहुल गांधी और लोगों के लिए इसके राजनौतिक मायने भी थे. 2012 में बीजेपी के शामजीभाई चौहान ने कांग्रेस के फतेहपरा गोविंदभाई को 12 हजार से अधिक वोटों से हराया था. इससे पहले ये सीट कांग्रेस के खाते में थी और पोपटभाई सवसीभाई यहां से विधायक बने थे. सवसीभाई ने लगातार दो बार बीजेपी के कब्जे में रही इस सीट को जीता था. 2003 में केवी हराजीभाई और 1998 में केबी वाश्रमभाई बीजेपी के टिकट पर यहां से विधायक बने थे. राहुल गांधी की ये यात्रा अपनी पुरानी सीट को पाने के लिए भी थी. चोटिला से बीजेपी ने जीणाभाई नाजाभाई डेडवारिया और कांग्रेस ने रत्वीककुमार एल मकवाना को उम्मीदवार बनाया है.
ध्रांगधरा, जहां बीजेपी के अपने ही नुकसान कर सकते हैं
2007 और 2012 के चुनाव में लगातार दो बार चुनाव जीतने वाली कांग्रेस के हाथ से जीत छीनकर जयंतभाई रामजी भाई ने उसे बीजेपी की झोली में डाल दिया था. बीजेपी के जयंतभाई ने कांग्रेस के जयेशभाई हरिलाल को 17 हजार से अधिक वोटों से हराया था. 1998 और फिर 2002 में बीजेपी के इंद्रविजय सिंह जडेजा लगातार दो बार चुनाव जीते थे. 2007 में जयेशभाई ने जीत छीन ली थी, लेकिन इस बार बीजेपी को अपनों की ही नाराजगी का सामना करना पड़ रह है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी प्रवक्ता आई के जडेजा ध्रांगधरा से टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनकी बजाय जयराम भाई धनजीभाई सोंगरा पर यकीन जताया. आईके जडेजा को टिकट न मिलने से नाराज उनके समर्थकों ने बीजेपी मुख्यालय के सामने धरना दिया और नारेबाजी की . बीजेपी के इन कार्यकर्ताओं की नाराजगी जयराम भाई को चुनाव में भारी पड़ सकती है. कांग्रेस ने यहां से पुरुषोत्तम भाई सागरिया को उम्मीदवार बनाया है.
बहुत सी खूबियां हैं सुरेंद्रनगर जिले की

ब्रिटिश साम्राज्य में गुजरात के सुरेंद्रनगर को हिल स्टेशन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. झाला राजपूतों का वर्चस्व होने की वजह से इस शहर को झालावाड़ के नाम से भी जाना जाता था. सुरेंद्रनगर जिले का जो माहौल है, उसे गुजरात में ट्यूबरक्यूलोसिस (टीबी) के मरीजों के लिए बेहतर माना जाता है. इस जिले से कई अखबार भी प्रकाशित होते हैं. इस जिले से कन्फेक्शनरी (एक तरह की मिठाई) सेरेमिक्स, फॉर्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग, और नमक का उत्पादन होता है.

सुरेंद्रनगर पूरी दुनिया में अपने कॉटन के लिए जाना जाता है. कॉटन की एक क्वालिटी होती है शंकर, जो सिर्फ सुरेंद्रनगर में ही होता है. इसी खासियत को देखते हुए 1964 में ही सरकार ने द सुरेंद्रनगर कॉटन ऑयल एंड ऑयल सिड्स असोसिएशन लिमिटेड बनाया था, जिसके जरिए कॉटन एक्सपोर्ट किया जाने लगा. सुरेंद्रनगर शहर में कपड़ा और खासतौर पर साड़ियों का बड़ा बाजार है. यहां पर राज राजेश्वरी मंदिर में ब्रह्मा विष्णु और महेश के मंदिर हैं. इस मंदिर का ऑर्टिकल्चर खास है और ये अपनी तरह का गुजरात का इकलौता मंदिर है. इसके अलावा सुरेंद्रनगर में रणकदेवी का मंदिर है. पश्चिमी भारत का राजा जयसिम्हा सिद्धराजा रा खिंगार की रानी रणकदेवी के प्यार में पड़ गया था. उसने जूनागढ़ पर हमला कर राजा रा खिंगार को मार दिया और राज्य पर कब्जा कर लिया. जब उसने रानी को हासिल करना चाहा तो रानी वहां से भाग गई और जब खुद को बचाने में असफल रही तो सती हो गई.

मुद्दे जो हावी हैं
1. सुरेंद्रनगर कपास के उत्पादन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन कपास उत्पादकों को किसी तरह ही सुविधा नहीं मिल रही है. कपास उत्पादकों को अपना माल बेचने के लिए सूरत और अहमदाबाद जाना पड़ता है. इस वजह से उनका जो मुनाफा होता है, उसका अधिकांश हिस्सा माल ले जाने-ले आने में खर्च कर देता है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने सुरेंद्रनगर के किसानों से कपास के लिए प्रोसेसिंग फैक्ट्री लगाने का वादा किया था, लेकिन वादा अब तक पूरा नहीं हो पाया है.
2.नमक के लिए पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखने वाले सुरेंद्रनगर के नमक उत्पादकों की हालत बेहद खराब है. नमक उत्पादन के काम में लगे मजदूरों की रोजी किसी तरह से चल पाती है. देश को 25 फीसदी अकेले नमक देने वाले इन लोगों के लिए रहने-खाने की दशा बेहतर नहीं कही जा सकती है.
3. नर्मदा नहर गुजरात के सुरेंद्रनगर से होकर गुजरती है. जिले में डैम भी हैं, लेकिन यहां के किसानों को सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं है. नहर में पानी भरा रहता है, डैम भी ओवरफ्लो होते हैं, लेकिन पानी के ठेकेदारों और सरकारी उपेक्षा की वजह से लोगों को 10-10 दिन तक पीने का भी पानी नसीब नहीं होता है.
4. सुरेंद्रनगर में एक भी सड़क ऐसी नहीं है, जिसे कहा जा सके कि ये अच्छी है. पूरे जिले की सड़के टूटी-फूटी हैं और लोग इसकी वजह से सरकार से खासे नाराज बताए जा रहे हैं.
5. सरकार ने सुरेंद्रनगर के लोगों के लिए जो अच्छा काम किया है, वो है इसका मूर्ति उद्योग. सरकार की वजह से सुरेंद्रनगर का मूर्ति उद्योग फल-फूल रहा है.
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